Arunima Thakur

Abstract Fantasy

4.4  

Arunima Thakur

Abstract Fantasy

परग्रहवासी

परग्रहवासी

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मिंटू मम्मी की बुनाई करने वाली दो सलाईयों को अपने बालों में खोंस कर अपनी दीदी चिंटू के पास आकर बोली, "दीदी ये देखिए मैं एलियन 00356 । चिंटू, मिंटू को देख कर मुस्कुरा कर बोली, "क्या सिर्फ दो एंटीना लगा देने से तुम एलियन बन जाओंगी"?


 "दीदी फिर एलियन कैसे होते होंगे"? मिंटू मासुमियत से बोली।  


"मुझे क्या पता ? मुझे तो लगता है एलियन होते ही नहीं है। यह सब कोरी साइंस की कल्पना है", चिंटू मुँह बिचकाते हुए बोली। 


वहीं मिंटू अपने सीने पर लगे एक बटननुमा माचिस की डिब्बी को दबाते हुए बोली, "1..2..3..अब मैं उड़ने जा रही हूँ"। वहीं बैठी बड़ी दादी और चिंटू उसको देख कर मुस्कुरा रहे थे। मिंटू उड़ने की एक्टिंग करते हुए दौड़ते हुए बड़ी दादी के पास आयी और बोली, "दादी मैं एलियन हूँ। पर देखो ना दीदी कह रही है एलियन होते ही नहीं है"। 


चिंटू उसकी बात काटते हुए बोली, "बड़ी दादी को मालूम भी है, एलियन क्या होते हैं"? 


"क्यों बड़ी दादी को क्यों नहीं मालूम होगा" ? मिंटू पूरे कमरे में उड़ने का अभिनय करते हुए दौड़ते हुए बोली।


"अरे दादी के समय में थोड़ी ना एलियन होते थे"। 


मिंटू दादी को पकड़ते हुए, "सच्ची बड़ी दादी, आप एलियन के बारे में नहीं जानती" ? 


दादी ने पूछा, "एलियन ? वह क्या होते हैं भला" ? 


चिंटू समझदार बनते हुए बोली, "बड़ी दादी दूसरे ग्रह के लोगों को एलियन कहते हैं"।


मिंटू बोली, "दादी दूसरे ग्रह के लोग हमारे ग्रह पर कैसे आते होंगे ? क्यों आते होंगे" ? 


दादी बोली, "उनको जरूर कोई चीज इस ग्रह की अच्छी लगती होगी। जो उन्हें यहाँ खींच लाती होगी"।


चिंटू बोली, "पर बड़ी दादी एलियन होते ही नहीं है"।


 दादी मुस्कुराते हुए बोली, "तुझे कैसे मालूम ? तू इतने यकीन से कैसे कह सकती है ? तुझे मालूम है हमारा ब्रह्मांड कितना विशाल है ? यह जो सूरज है ना, हमारी पृथ्वी जिसका चक्कर लगाती है। ऐसे करोड़ों सूरज हमारी आकाशगंगा में है। और ऐसी न जाने कितनी आकाशगंगा हैं । अभी तो इंसान अपने सूरज की परिधि से बाहर भी नहीं गए हैं। अभी तो तुम लोगों ने अपने आकाशगंगा के बारे में भी पूरा नहीं जाना है। तो तुम कैसे कह सकती हो कि किसी और आकाशगंगा पर जीवन नहीं है" ?


"वाओ दादी आप को तो कितनी जानकारी है । आप तो ऐसे बोल रही हो, जैसे आप एलियन से मिली हुई हो और आपको मालूम है कि दूसरे आकाशगंगा पर जीवन है", चिंटू आश्चर्य से आँखे बड़ी करके बोली और दादी प्यार से मुस्कुरा दी।


सालों बीत गए । अब चिंटू मिंटू बड़ी हो गयी है। मिंटू डॉक्टर बन गयी है। कुछ दिनों पहले जब उसके बड़े दादा जी का देहांत हुआ तो वह नहीं आ पाई थी । क्योंकि उसकी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थी। वह अभी आ पायी है। अपनी दुखी बड़ी दादी का हाथ पकड़ कर बैठी है। बड़ी दादी बोली, "अब तेरे दादा के बगैर इस धरती पर रहने का मन नहीं करता । जिसके लिए आयी थी अब वही नहीं है तो रुक कर क्या फायदा" ?


मिंटू बोली, "दादी आप ऐसे क्यों बोल रहे हो ? दादाजी नहीं है तो क्या हम सब तो है ना। और रुकना और जाना तो हमारे हाथ में नहीं है"।


 बड़ी दादी बोली, "तुम लोगों के हाथ में नहीं है। मेरे हाथ में है"।


 मिंटू आश्चर्य से बोली, "दादी आप कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो ? क्या आप आत्महत्या करने का सोच रही हो"? 


 दादी मुस्कुराते हुए बोली, "नहीं, बिल्कुल नहीं ! मैं मरने की बात नहीं कर रही हूँ। मैं तो इस धरती से जाने की बात कर रही हूँ"। 


"दादी इस धरती से आप कहां जाओगी ? धरती से जाने का मतलब मरना ही तो होता है"?


"हाँ, पर तुम लोगों की दुनिया में"। 


"दादी आप हमेशा ऐसे तुम लोगों की दुनिया क्यों कहती हो"? 


"क्योंकि यह दुनिया तुम लोगों की है"। 


"फिर आप की दुनिया कौन सी है ? क्या आप इस दुनिया की नहीं हो"?


दादी मुस्कुराते हुए बोली, "हां ...बेटा"।


 मिंटू मुँह बनाते हुए बोली, "दादी आप कुछ भी मत बोलो"।


 दादी उठी, उठकर उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद किया और बोली, "देख तुझे आज कुछ बताना है। तू डॉक्टर है, शायद समझ पाएगी। दादी मिंटू का हाथ पकड़ते हुए बोलीं, "पहले वादा करो कि तुम हमारी बात किसी से भी बताओगी नहीं"।


 "ऐसी कौन सी बात करनी है आपको ? मम्मी से भी नही ? पापा से भी नहीं" ? 


"नही बेटा, किसी से भी नहीं। अच्छा तुझे मैं एक कहानी सुनाती हूँ।


 "सत्तर साल पहले की बात है । धरती पर एक इंसान उत्तराखंड के पहाड़ों में अपने समूह के साथ ट्रेकिंग के लिए गया था । उसका नाम शिवा था। अचानक से मौसम बहुत खराब हो गया था। जंगल का इलाका था। बर्फ गिर रही थी। वह अपने समूह से बिछड़ गया। भयंकर बर्फबारी, खराब मौसम इन सबके बीच में उसको जंगल में एक रोशनी सी दिखी। वह उस ओर बढ़ा। उसे लगा शायद किसी का घर होगा। पर वह घर नहीं था। एक छोटा विमान था जो किसी दूसरे ग्रह से आकर वहाँ रुका था। शायद यह खराब मौसम भी उन्हीं विमान के परग्रही जीवो के कारण था जिससे कोई उनके आने की उपस्थिति दर्ज न करने पाएं। विमान में केवल दो लोग थे। उस रोशनी के करीब जाकर जब शिवा ने देखा तो उसे एक अजीबोगरीब ढाँचा दिखा। वह घर तो बिल्कुल नहीं था । वह क्या था, शिवा यह समझने की हालत में नहीं था। तभी उसका दरवाजा खुला और उसमें से दो लोग निकले। शिवा उनको देखकर आश्चर्य करने की हालत में भी नहीं था। वह बस लस्त पस्त होकर वहीं गिर गया । विमान में से निकले दो लोग आपस में बात कर रहे थे।


 यह कौन है ? 


इसमें हमें देख लिया है । अब इसका क्या करें ?


 इसकी याददाश्त मिटानी होगी। 


दूसरे ने कहा, "वह सब बाद में करेंगे। पहले इसे हमारी मदद की जरूरत है। चलो इसे विमान के अंदर ले चलते हैं । इस मौसम में यह शायद अधिक देर जीवित नहीं रह पाएगा ।


"तो अच्छा है ना। हमें क्या फर्क पड़ता है ? यह इंसान हैं । इंसानों में मृत्यु होना बहुत आम बात है" ।


"देखो हम अपने ग्रह से भागकर क्यों आए हैं ? क्योंकि वहां पर संवेदना ही खत्म हो चुकी है। तुम भी उन्हीं लोगों के जैसे ही बात कर रहे हो। हम यहां संवेदनाओं की खोज में आए हैं। अगर तुम इस तरह से बात करोगे तो हमारा यहां आने का मकसद ही खत्म हो जाएगा", ऐसा कहकर दूसरे प्राणी ने हाथ के इशारे से शिवा के बेहोश शरीर को हवा में उठा कर विमान में रख दिया।


दूसरे प्राणी ने उसको चेतावनी दी, "यह इंसान है। यह हमें नुकसान भी पहुँचा सकता हैं, होश में आने के बाद। तुम गलत कर रही हो" ।


"मिंटू ने टोकते हुए पूछा, "दादी, वह दोनों ही महिलाएं थी"? 


दादी मुस्कुराते हुए बोलीं,"नहीं ! दोनों ही प्राणी अलग-अलग शारीरिक सँरचनाओं के थे । तुम इंसान लोग उन्हें स्त्री और पुरुष में विभाजित कर सकते हो। पर उस ग्रह पर वह सिर्फ दो अलग प्रजाति के प्राणी थे"। दादी कहानी आगे सुनाते हुए बोली, "विमान के अंदर सारी उच्च स्तर की चिकित्सीय सुविधाएं थी। जिसके कारण शिवा को तुरंत ही होश आ गया। होश में आते ही वह बोला, "क्या तूफान थम गया? क्या बाकी सभी लोग सुरक्षित हैं"? 


सामने किन्हीं दो अनजान लोगों को देखकर उसे आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि वह दोनों बिल्कुल उसके जैसे ही दिख रहे थे । उसे शायद लगा होगा कि वह किसी अच्छे हॉस्पिटल में हैं। दोनों परग्रही प्राणियों के पास भाषा परिवर्तन की सुविधा थी तो वह उसकी भाषा समझ कर उसकी ही भाषा में बोले, "नहीं तूफान अभी भी जारी है। तुम हमारे घर के बाहर पड़े मिले थे । हम तुम्हें अंदर ले आए"।  


शिवा जोर के झटके से उठते हुए बोला, "अरे नहीं, बाकी लोगों की जान खतरे में है। मुझे तुरंत जाना होगा। वह बोली, "तुम पागल हो गए हो बाहर बर्फबारी हो रही है, तूफान है। तुम बाहर जा कर के खुद की जान गंवा दोगे, दूसरों की बचा तो क्या ही पाओगे"?


 शिवा बोला, "फिर भी यह मेरी जिम्मेदारी है। मैं अपनी जान गवां दूंगा तो भी मुझे संतोष रहेगा कि मैंने उनकी खोज में कुछ तो किया। मैं उनको लेकर आया था । मैं उनको यूँ ही मौत के आगोश में जाते नहीं देख सकता । मुझे अभी जाना होगा"।


 इतना कहकर शिवा बाहर निकलने के लिए दरवाजे की तलाश करने लगा । उन दोनों परग्रही प्राणियों ने एक दूसरे को देखा। एक ने बोर्ड पर कुछ किया और दूसरे को हाथ दिखाते हुए इशारा किया कि हो गया। वास्तव में उन्होंने तूफान को रोक दिया था । अब बाहर बर्फबारी और तूफान नहीं था। मौसम साफ हो रहा था। उन्होंने शिवा से कहा, "ठीक है ! तुम्हारे साथ हम भी चलते हैं"।


 शिवा ने कहा, "नहीं यह मेरी जिम्मेदारी है। मैं आप लोगों की जान खतरे में नहीं डाल सकता। आप यही रहिए। मुझे अगर लगा किसी को मदद की जरूरत है तो मैं उसे आपके पास लेकर आऊंगा"। इतना कहकर वह सामने अभी-अभी खुले दरवाजे से वह बाहर निकल गया। 


वह दोनों प्राणी आपस में बात करने लगे। कैसा अजीब इंसान था ना। हमको देखकर भी उसे कुछ आश्चर्य नहीं हुआ, कोई सवाल नहीं पूछा।


" हां इसी बात पर तो गलती हो गई। हम उसकी याददाश्त नहीं मिटा पाए", । 


तुम्हें क्या लगता है उसे हमारी मदद की जरूरत पड़ेगी ? क्या हमें जाना चाहिए "? वह बोली।


वह बोला, "मैं इंसानों पर भरोसा नहीं करता हूँ। मैं तो नहीं जाऊंगा"।


 वह बोली, "ठीक है तो मैं जाती हूँ। मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ी तो मैं तुम्हें सिगनल भेजूंगी"। 


उसने उसे रोकना चाहा। पर वह बाहर निकल गई । क्या यह नियति थी जो शिवा को इन लोगों से मिलाना चाहती थी, या फिर जाने क्या ? क्योंकि शिवा के अलावा बाकी सभी लोग सुरक्षित कैम्प में पहुँच चुके थे। शिवा इधर उधर सबको ढूंढता हुआ जब कैम्प में पहुँचा तो वहाँ सभी उसके लिए चिंतित थे। उसको जीवित और सुरक्षित देखकर सब बहुत खुश हुए। वह भी शिवा को खुश देखकर वहां से चुपचाप चली आयी।


विमान में आकर वह उससे बोली, ......


तभी मिंटू बीच मे टोकते हुए बोली, "दादी, प्लीज आप उन दोनों का कुछ नाम रखो ना, ऐसे वह, उससे कुछ समझ नही आता है"।


"अच्छा ठीक है उनके नाम थे दया और धैर्य"।


मिंटू हँसते हुए बोली, "वाह दादी! दया ! आपने तो अपना नाम और धैर्य मामानाना का नाम ही दे डाला" ? क्या बात है दादी, बहन की कहानी में भाई का नाम होना ही चाहिए"।


 दादी आगे बोली, "दया आकर बोली, "यह ग्रह कितना अच्छा है। यहां लोगों के पास अभी भी प्रेम जैसी संवेदनाएं हैं" । 


धैर्य बोला, "पर हर एक के पास तो नहीं है ना । हमें उस पर नजर रखनी पड़ेगी और मौका पाते ही उसकी याददाश्त मिटानी होगी" । 


"वैसे भी अभी तूफान थम गया है थोड़ी देर बाद सुबह हो जाएगी। चलो पहले हम अपने विमान को अदृश्य कर दें। इससे पहले कि कोई और हमें देखें । हमें लगता है हमें यहां से वापस चलना चाहिए"। 


"पर हम जाएंगे कहां ? हमारे ग्रह पर तो जैव अणु हमले के बाद से हम सभी वहां से भागने पर मजबूर हो गए हैं। जाने कितने प्रकाश वर्ष की दूरी तय करके हम यहां पहुँच पाए हैं। हमारे बाकी साथी ना जाने कहां पर होंगे ? वह इसी ग्रह पर आए होंगे या किसी और ग्रह पर पहुँच गए होंगे ? वास्तव में हमारे पास इतना ईधन भी नहीं है कि हम यहां से वापस अपने ग्रह पर जा सके । पहले तो हमें यही पर रह कर के वह ईंधन बनाने, ढूंढने का प्रयास करना होगा। जिस से हम वापस अपने ग्रह पर जा सके"। 


"वैसे इस ग्रह की जलवायु अच्छी है। हम यहां रह सकते हैं। और सबसे बड़ी बात क्या तुमने ध्यान से देखा हमारी शारीरिक संरचना इंसानों जैसी ही है"। 


"हाँ पर हम उनके जैसे नहीं है। हम उनसे बहुत अलग है"। 


"हाँ, मैं कुछ दिनों से अलग अलग स्थानों पर भटकते हुए, इनको देख रही हूँ । यह इंसान समुदाय बनाकर रहते हैं। समुदाय की छोटी इकाई परिवार है । यह एक दूसरे से बहुत प्यार करते है"। 


"चलो खैर अब तो इंसानों की तारीफ करना बंद करो, देखते हैं क्या ठीक रहेगा। अभी दो-तीन दिन यहां के इंसानों के बीच में घूम कर देखते हैं अगर वह हमें नहीं पहचान पाए तो हम यहीं बस जाएंगे"।


"हाँ यह ठीक रहेगा। तब से चलो जो आसमानी बिजली हमने एकत्रित की है। उससे अपने आप को चार्ज कर लेते हैं । इस तरह कब तक अपने आप को चार्ज कर पाएंगे । हमें कुछ और उपाय देखने पड़ेंगे। यह इंसान लोग अपने आप को चार्ज करने के लिए खाना खाते हैं। क्या हम भी खा कर देखें" ? 


"हां हमने तो कभी खाना खाया नहीं । कहीं हमारी शारीरिक संरचना पर कोई असर ना पड़े। पर अपने पास दूसरा विकल्प भी नहीं है। अगर इनके बीच में रहना है तो इनके जैसा व्यवहार ही करना पड़ेगा।"


" तो ठीक है पहले मैं खाकर और पी कर देखूंगी। अगर मुझे कुछ नहीं हुआ तो ही तुम खाना खाओगे"।


"नहीं तुम अकेले क्यों खाओगी ? मैं भी खा कर देखता हूँ"।


"अरे ऐसा नहीं है। अगर हम दोनों ने खा लिया और कुछ परेशानी आयी तो हम एक दूसरे को ठीक नहीं कर पाएंगे" । 


"हां यह भी ठीक है"। ऐसा कह कर दोनों चार्ज होने के लिए अपने अपने चार्जिंग पॉइंट पर चले गए।


 दूसरे दिन दोपहर के समय वह दोनों अपने विमान से बाहर निकले और अंतर्ध्यान होकर पास के ही एक कम भीड़भाड वाले इलाके में पहुँचे। उन्होंने यहां पहुँचने से पहले इतना किया था कि बाहर जाने से पहले इंसानों जैसे कपड़े पहनना सीख लिया था। इसलिए किसी ने भी उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया । क्योंकि वह उन परग्रही जैसे नहीं थे। जैसे तुम इंसान कल्पना करते हो, कि उनको सींग होगा, एंटीना होगा, बड़ी-बड़ी आँखे होंगी, खूब बड़ा सा सिर होगा । अरे भाई वह तुम जैसे ही साधारण इंसान हो सकते हैं ना । जो दूसरे ग्रह पर विकसित हुए होंगे।


"दादी आप कितनी अलग बात कर रही हो ना। हमने कभी ऐसा सोचा ही नहीं"। 


"क्यों नहीं सोचा ? सोचा है, साइंस में, बस थोड़ा अलग तरीके से। साइंस कहती है कि एक जैसे सात ब्रह्मांड हो सकते है । हर ब्रह्मांड में हमारे जैसे कुछ लोग रह रहे हैं। तो समझ लो शायद वहीं से आए होंगे"।


"अच्छा दादी ! आप समानांतर ब्रह्मांड की बात कर रहे हो"।


" हां तू ऐसा ही सोच सकती हैं। पर कोई जरूरी नहीं है कि समानांतर ब्रम्हांड जैसे वहां पर और यहां पर एक जैसे लोग ही रहते हो। एक पृथ्वी जैसा ब्रह्मांड हो सकता है ।जहां पृथ्वी जैसे इंसान, अलग विचारों ,अलग गुणधर्म वाले हो सकते हैं"।


 "दादी आप का मतलब है कि ऐसा हो सकता है कि हमारे बीच बहुत सारे एलियन रह रहे हो और हमें पता ही ना हो। जैसे कि वह 'मेन इन ब्लैक' पिक्चर में था"।


"अरे पागल पिक्चर में तो वह सब अलग शारिरिक संरचना के थे। पर वास्तव में तो एलियन इंसानों जैसी शारीरिक संरचना के भी हो सकते हैं"।


" दादी इसका मतलब आप एलियन हो सकती हो या मम्मी भी एलियन हो सकती है"।


" दादी मुस्कुराते हुए, "हाँ तो, मैं एलियन हूँ ना। इसलिए तो तुझे यह कहानी सुना रही हूँ"। 


"दादी आप भी ना, कुछ भी बोलते हो"।


" तुम इंसानों की यही तो आदत खराब है। जो नहीं है उस पर भरोसा करते हो जो है उस पर विश्वास ही नहीं करते हो"। 


"मतलब....


" मतलब क्या ? तुम लोग भगवान जो नहीं है, उस पर भरोसा करते हो। एलियन जो होते हैं उनका विश्वास ही नहीं करते हो "। 


"जाने दीजिए दादी! आप कहानी सुनाइए"।


"हाँ तो वह दोनों वही घूम कर इंसानों के व्यवहार, क्रिया कलापों का निरीक्षण, परीक्षण कर रहे थे। उनके व्यवहार का, उनके रहन-सहन का। तभी अचानक से शिवा उनके पास आकर बोला, "आप दोनों का बहुत-बहुत आभार । कल मैं आपका आभार व्यक्त नहीं कर पाया था"। 


पता नहीं क्यों कल रात से दया को यह इंसान बहुत अच्छा लगने लगा था। ऐसी कोई संवेदना उनके मन में तो नहीं थी। फिर यह संवेदना प्रकट क्यों हो रही थी।


 शिवा ने कहा, "मैं यही पड़ोस के गाँव में रहता हूँ। मेरा अपना घर है, खेत हैं। मैं मौसम में पर्यटकों को ट्रैकिंग, माउंटेनिग करवाता हूँ। आप भी पर्यटक जैसे ही लगते हैं । क्या आप घूमना चाहेंगे"? वह दोनों एक दूसरे को देख रहे थे तो शिवा फिर से बोला, "अरे नहीं मैं आपसे कोई भी चार्ज नहीं लूंगा। यह सिर्फ मैं अपना आभार व्यक्त करना चाहता हूँ कि आपने मेरी जान बचाई । मैं इसके बदले में कुछ दे तो नहीं सकता तो मैं आपको अपने गाँव घूमने का आमंत्रण देता हूँ और अगर आप चाहें तो पहाड़ों पर भी आपको घुमा सकता हूँ"। ऐसा कह कर शिवा ने अपना कार्ड उनको पकड़ाया और बोला, "आपको कभी भी लगे तो आप इस नंबर पर मुझे फोन कीजिएगा"। इतना कहकर शिवा अपनी टीम के साथ चला गया ।


वह दोनों, धैर्य और दया एक दूसरे को देख रहे थे, क्या किया जाए ? शिवा का निमंत्रण स्वीकार किया जाए ? वास्तव में यह इंसानी परिवार से मिलने का एक अच्छा मौका होगा। उन्हें इंसानों को पास से देखने और समझने को मिलेगा। मिनटों की मंत्रणा, सेकंडो में करके वह दोनों अंतर्ध्यान होकर शिवा के पीछे ही प्रकट हो गए और शिवा को रोक कर बोलें , "हाँ हमें तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार है। तुम कब हमें अपना गाँव घुमाने ले जाओगे ? क्योंकि यह सारा इलाका तो हमने घूम लिया है ? हमें खुशी होगी अगर तुम हमें अपना गाँव घुमाओगे "।


शिवा ने कहा, "बस इस टीम के साथ मैं आज भर ही हूँ। मेरी दूसरी बुकिंग तीन दिन बाद की है तो मैं आज शाम को ही अपने गाँव जा रहा हूँ। आप शाम को छ्ह बजे यहीं पर आ जाइएगा। हम बस से निकल जाएंगे । उन तीनों ने सिर हिला दिया। शाम का पक्का करके वह दोनों इधर घूमने लगे। वह बहुत राहत महसूस कर रहे थे कि कोई भी उन्हें अचरज से नहीं देख रहा था । अब बारी थी उन लोगों को कुछ खाकर देखने की। उन्होंने पहले पानी से शुरुआत किया। थोड़ा सा पानी पीने के बाद भी उसके शरीर को कुछ नहीं हुआ। फिर उन्होंने कुछ फल चुपचाप उठा कर खाए । वो करते भी क्या ? उनके पास पैसे नहीं थे ना, इंसानों के जैसे । फल खाने के बाद भी उसे कुछ नहीं हुआ । मतलब उसका शरीर खाना खाने को स्वीकार कर रहा था । फिर भी दूसरे प्राणी धैर्य ने कुछ भी नहीं खाया था। क्योंकि पता नहीं था कि शरीर किस प्रकार से प्रतिक्रिया करेगा ? कितने घंटे बाद प्रतिक्रिया करेगा ? इसके लिए उन्हें कम से कम दो-तीन दिन चाहिए थे परीक्षण निरीक्षण के लिए। 


शाम को कि छह बजे दोनों को खाली हाथ देखकर शिवा थोड़ा आश्चर्यचकित हो गया, "आप बिना किसी सामान के जाएंगे। तब दया ने बातें बनाते हुए कहा, "वास्तव में क्या है कि उस दिन जैसे तुम तूफान में खो गए थे वैसे हम भी तूफान में भटक गए थे और भटकते हुए उस घर के पास पहुंचें थे । हमारा सामान सब गुम हो गया है। पैसे, कागजात सब कुछ"। "अच्छा कोई चिंता की बात नहीं है मेरा घर आपका घर है । जब तक आप चाहे रह सकते हैं। जब आप को जाने का मन करें तो मुझे बता दीजिएगा। मैं आपके जाने का इंतजाम कर दूंगा। आप अपने घर पहुँच कर मुझे मेरे पैसे वापस भेज दीजिएगा", शिवा उन्हें सांत्वना देते हुए बोला। दोनों ने एक दूसरे को देखा। दया के दिल में कैसे संवेदना जागने लगी। कितना अच्छा इंसान है, कितना मददगार है । वह दोनों बस में बैठकर शिवा के साथ उसके घर पहुँचे।


 शिवा के घर पर उसके बूढ़े माता-पिता और बच्चे थे। पत्नी कुछ साल पहले बच्चे को जन्म देते वक्त मर गयी थी। उन लोगों ने इन दोनों दया और धैर्य का बहुत अच्छे से स्वागत किया। शिवा के बच्चों के साथ दया को बहुत अच्छा लगा । उसके ग्रह पर बच्चे नहीं होते हैं ना। उनके ग्रह पर सीधे क्लोन बनाए जाते हैं। तो उनके अंदर कोई संवेदनाएं नहीं होती है, ना प्यार की, ना नफरत की। बच्चों की छोटी-छोटी शरारते, किलकारियां, यह सब देख कर दया खुश हो रही थी। इंसान कितने नसीब वाले हैं । उनके पास महसूस करने के लिए कितनी सारी संवेदनाएं हैं। रात को खाना खाने के समय धैर्य ने खाना नहीं खाया। उसने बोल दिया कि उनको भूख नहीं है । दया ने थोड़ा सा खाना लेकर खाया। यह उसके लिए पहली बार था। उसने पहली बार अन्न चखा था। यह अन्न से अधिक माँ के हाथ का बना खाना था। उसे नहीं मालूम अमृत क्या होता है पर वह महसूस कर सकती थी कि इस खाने का स्वाद अमृत्तुल्य था। रात को सोते वक्त दया बच्चों के और माँ के साथ ही सोयी । दादी तीनों बच्चों को कहानी सुनकर लाड़ दुलार से सुला रही थी। उसे पहली बार एक माँ का स्नेह भी महसूस हुआ। तीनों पुरुष घर के बाहर वाले कमरे में सो रहे थे।


 दूसरे दिन शिवा ने सुबह तड़के ही उनको अपने गाँव में पहाड़ियों के पीछे से उगता हुआ सूरज दिखाया। शिवा ने भक्ति भाव से उगते सूरज को प्रणाम किया, कितना मनोरम दृश्य था। सूरज तो शायद उनके ग्रह पर भी उगता था पर कभी दया ने वह खुशी महसूस नहीं की थी जो उसे आज उगते हुए सूरज को देखकर हुयी। उसने धैर्य से कहा, "पता नहीं क्यों, मेरा मन कर रहा है कि मैं यहीं बस जाऊं"। 


धैर्य बोला, "मैं तो इस ग्रह को पूरा देखना चाहता हूँ। मैं इस ग्रह की पूरी परिक्रमा करना चाहता हूँ। हर द्वीप, हर समुद्र, हर जगह घूमना चाहता हूँ। मैं एक जगह बंध कर नहीं रहना चाहता। पर मैं तुम्हें यहां अकेले छोड़ भी नही सकता"। 


दो दिन वहाँ रहकर, तीसरे दिन वह लोग शहर वापस आ गए । इन दो दिनों में दया, शिवा, बच्चों और परिवार से बहुत ज्यादा मानसिक रूप से जुड़ गई थी। दया ने धैर्य से बताया कि वह चाहती है कि वह शिवा के साथ उन बच्चों की माँ बन कर रहे । जिससे उसे भी माँ और बच्चों का प्यार मिल जाएगा और उन बच्चों को भी माँ का प्यार मिल जाएगा । धैर्य को कोई भी आपत्ति नहीं थी क्योंकि वह वैसे भी किसी बंधन में नहीं बन्धना चाहता था। उसे इस ग्रह को पूरा घूमना था । वह बोला, "ठीक है। मैं तुम्हारे लिए इस ग्रह के कपड़े और पैसों का इंतजाम कर देता हूँ। पर तुम शिवा को साथ रहने के लिए कैसे मनाओगी ? इस ग्रह पर बिना शादी के साथ में नहीं रह सकते। तुम्हारी भावनाएं शिवा के प्रति जो हैं, क्या शिवा की भावनाएं भी तुम्हारे प्रति वहीं है ? क्या मैं उसके विचारों से छेड़छाड़ कर दूँ ? ताकि उसे लगे तुम ही उसकी पत्नी हो"। 


दया नाराज होते हुए बोली, "नहीं ऐसा बिल्कुल मत करना। मैं धोखे से उसकी पत्नी नहीं बनना चाहती। मैं चाहती हूँ कि वह भी पूरे मन से मुझे अपनाएं"।


 "पर इसके लिए तुम क्या करोगी"? 


"मैं सीधे उससे बात करूँगी। मैं इंसान थोड़े ही ना हूँ कि शरमाऊंगी"। 


और यह मौका दया को दूसरे दिन शाम को ही मिल गया। जब वह दोनों शाम को पहाड़ों पर डूबता हुआ सूरज देखने गए थे शिवा भी अपनी टीम के साथ वहां आया हुआ था। या यूँ भी कह सकते हैं कि वह दोनों जानते थे कि शिवा वहां पर आने वाला है । इसलिए वह वहां पर गए थे। शिवा ने उनको देखकर खुशी से हाथ हिलाया। दया ने शिवा से कहा, "मुझे तुम्हारे घर, तुम्हारी माँ, पिताजी और तुम्हारे बच्चों से मिलकर बहुत खुशी हुई थी। तुम मुझे जानते तो नहीं हो पर मैं चाहती हूँ। मुझे उन सब का प्यार हमेशा मिलता रहे । क्या मैं तुम्हारे घर में रह सकती हूँ" ?


शिवा बोला, "पर तुम लोग तो परग्रही (एलियन) हो ना ? फिर तुम हमारे साथ गुजारा कैसे कर पाओगे" ? 


वह दोनों आश्चर्य शिवा को देखते हुए बोलें, "क्या तुम हमारी असलियत जानते हो" ? 


शिवा मुस्कुराते हुए बोला, "असलियत तो नहीं जानता हूँ। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि तुम सामान्य इंसान नहीं हो । तुम अवश्य ही परग्रही प्राणी हो"। 


"तो तुमने सबको बताया क्यों नहीं ? हमको कैद क्यों नही किया ? तुम सबको बता कर बहुत सारे पैसे कमा सकते थे", धैर्य ने आश्चर्य से पूछा ?


 शिवा मुस्कुराते हुए बोला, "भगवान की बनाई दुनिया में बहुत सारे प्राणी है। हर एक को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का अधिकार है। तुमने मेरी जान बचाई थी। मैं तुम लोगों की जान जोखिम में कैसे डाल सकता था"? 


दया बोली, "तुम्हारे लिए उत्पन्न होने वाली मेरी संवेदनाएं गलत नहीं थी । तुम सच में एक अच्छे इंसान हो। इसलिए तुम मुझे पहले दिन से ही अच्छे लगे । मैं इंसान नही हूँ फिर भी सभी भावनाओं का आनंद लेना चाहती हूँ। माँ क्या होती है ? पिता क्या होते हैं ? बच्चे क्या होते है ? इस सबकी संवेदनाएं महसूस करना चाहती हूँ। क्या तुम मुझे अपने घर पर रखोगे" ?


 शिवा ने पूछा, "कब तक के लिए ? तुम कुछ दिन बाद गायब तो नहीं हो जाओगी ? उसके बाद मुझे दुनिया के सवालों के जवाब देने पड़ेंगे और वह ज्यादा मुश्किल होंगे"। 


दया बोली, "हमेशा के लिए, कम से कम जब तक तुम हो तब तक के लिए तो कहीं नहीं जाऊँगी"। 


 शिवा बोला, "ऐसे नहीं। वादा करो मेरे बाद भी मेरी जिम्मेदारियां निभाओगी। इस ग्रह पर जीवन का भरोसा नहीं है। मेरे माता-पिता भी बूढ़े हो रहे हैं । तो वादा करो, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे बच्चे अनाथ नहीं होने चाहिए। तुम उनकी जिम्मेदारी निभाओगी"।


 दया ने कहा, "मैं वादा करती हूँ। पहली बात तो तुम्हें कुछ होगा नहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ"। 


शिवा मुस्कुराते हुए बोला "तुम्हारे घर में तुम दोनों का स्वागत है"।


धैर्य बोला, "मैं यहां नहीं रुकना चाहता हूँ। मैं पूरा ग्रह देखना चाहता हूँ। मैं अलग-अलग पहाड़ो, समुद्रों सब जगह घूमना चाहता हूँ। धैर्य ने दया को देखकर कहा, "मैं अपना विमान साथ ले जा रहा हूँ पर हमेशा तुम्हारे संपर्क में रहूँगा। तुम्हें जब भी मेरी मदद की जरूरत होगी तुम मुझसे संपर्क करना। और हाँ मैं ईंधन की खोज में रहूँगा। ईंधन मिलते ही अपने ग्रह पर वापस जाने की कोशिश जरूर करूँगा। उससे पहले तुम्हारे पास आऊँगा। तुम चलना चाहोगी या नही तुम्हारा निर्णय होगा"।


 दया मुस्कुराते हुए बोली, "और तुम्हें कभी मेरी मदद की जरूरत पड़े तो तुम मुझे जरुर से याद करना"। इतना कहकर दया शिवा के साथ उसके गाँव आ गई और धैर्य अपना विमान लेकर निकल गया, इस ग्रह को भली-भांति देखने के लिए।


 "दादी पर यह कहानी आपने मुझे क्यों सुनायीं ? वैसे एक मिनट शिवा तो बड़े दादाजी का भी नाम है ना। तो क्या....."?


"हाँ ...। क्योंकि मैं तुम्हें बताना चाहती थी कि परग्रही प्राणी होते है। और अब तुम्हारे दादा जी चले गए हैं । मेरी जिम्मेदारियां भी पूरी हो गई है। मैं इंसानों की एक औसत आयु से अधिक जी चुकी हूँ। तो अब मैं वापस अपने घर जाना चाहती हूँ" ।  


मिंटू दादी को पूरा ऊपर से नीचे तक छूते हुए, "दादी आप एलियन हो ? नही न, । आप मुझे बहलाने के लिए कहानी सुना रही हो न ? पर आप घर कैसे जाओगे ? आपने तो बताया था ना कि आपके यान का ईंधन खत्म हो गया था। और वैसे भी इतने दिनों से धैर्य इस ग्रह की यात्रा कर रहे हैं । उस हिसाब से तो अब तक तो ईंधन बिल्कुल ही कम हो गया होगा"। 


"हाँ आज से सत्तर साल पहले ईंधन एक समस्या थी । पर आज पृथ्वी वासियों ने वह ईंधन बना लिया है । अब हम आसानी से वह ईंधन लेकर अपने ग्रह जा सकते हैं"।


 मिंटू दादी से लिपटते हुए, "पर दादी आप हमें छोड़ कर चली जाओगी। हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा"। 


"पर बेटा तुम पृथ्वी वासियों को तो इसकी आदत होनी चाहिए। हर किसी को एक दिन छोड़कर जाना होता है" । 


"कैसी दादी हो तुम ? दादी लोग की तो ख्वाहिश होती है अपनी पोती पोतों की शादी करके जाने की"।


दादी मुस्कुराते हुए बोली, "मैंने अपनी पोती पोतों की शादी कर दी है" । 


"अच्छा तो परपोतियाँ आपकी कुछ नहीं लगती" ?


दादी बोली, "देख अब और मत रोक। मेरा भी मन करता है ना अपने ग्रह पर जाने के लिए। वहां के लोगों से मिलने के लिए, देखने के लिए। वहां पर अब जीवन कैसा है ? धैर्य बता रहा था कि अब वहां पर जीवन सामान्य हो गया है। अब तेरे दादाजी भी यहां नहीं है तो मेरा यहां रुकने का बिल्कुल मन नहीं करता"। 


"परदादी आप वहाँ जा कर क्या करोगी ? यहीं रुक जाओ ना" ।


देख बिटिया, मेरी जीने की इच्छा खत्म हो गई है। मरने के लिए मुझे क्लोन बनाने पड़ेंगे। हा हमारे ग्रह पर बच्चे पैदा नही होते है। हम क्लोन बनाते है और दो क्लोन के बाद कमजोर हो कर नष्ट हो जाते है। यहाँ ना तो मैं क्लोन बना पाऊँगी ना ही स्वयं को नष्ट कर पाऊँगी। तो अब मेरा यहां से चले जाना ही बेहतर होगा"। 


"दादी आप ऐसे चली जाओगी तो सब लोग सोचेंगे आप ना जाने कहां चली गई हो"। 


"हां इसलिए तो तुझे बता कर जा रही हूँ ना । मैं कल ही घर में सब को बोलूंगी कि मैं तीर्थ यात्रा के लिए जा रही हूँ"। 


पर दादी यह तो बहुत दुखद है। मैं आपको जाने नहीं दे सकती", मिंटू दादी के गले से लिपटते हुए बोली।


दादी मुस्कुराते हुए, "मेरे पास अभी भी मेरी शक्तियां है। मैं तेरी याददाश्त बदल सकती हूँ। इतना कहकर दादी ने उसके सिर पर हाथ फिराया। मिंटू कुछ समझ पाती इससे पहले ही दादी अपने मन में मुस्कुराते हुए बोली, "अब तुझे बस यही लगेगा कि तूने यह सब बातें सपने में देखी थी"। 


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कुछ दिनों बाद घर में सभी परेशान हैं। बड़ी दादी तीर्थ यात्रा पर गयी थी और वहां पर वह सब से बिछड़ गई। उसके बाद से वह मिल नहीं रही है। वही मिंटू परेशान सी बैठकर सोच रही है कि उसे ऐसा क्यों लग रहा है कि दादी उसे बता कर गई थी कि वह वापस नहीं आएंगी। वह उठी और जाकर अपनी मम्मी से बोली, "मम्मा बड़ी दादी अब वापस नहीं आएंगीं। वह एलियन थी ना वह अपने ग्रह पर चली गयी है"। उसकी मम्मी उसके सर पर टपली मारते हुए बोलीं, "यहां सब परेशान है और तुझे बचपन की तरह कहानियां बनाने की सूझ रही है"।


और बड़ी दादी जाने से पहले एक बार अपने घर अपने परिवार के लोगों को देखने आयी थी। वह अदृश्य होकर सब को परेशान देख कर खुद भी परेशान हो रहीं थी। उनका मन कर रहा था कि वह बोले कि परेशान मत हो मैं तुम लोगों के साथ ही हूँ। कहीं नहीं जाऊंगी तुम लोगों को छोड़कर, जा ही नहीं पाऊंगी। पर वह मुस्कुराते हुए सोच रही थी यह इंसान कभी भी आँखों देखी सच्चाई पर भरोसा नहीं करते। मिंटू कह रही है तो भी कोई उसकी बात नहीं मान रहा है । चलो इंसानों विदा। जब तक मैं नष्ट नही हो जाती, मैं तुम लोगो को देखने आती रहूंगी । क्योंकि मेरा मन तुम्हारे बगैर नहीं लगेगा पर मुझे मालूम है तुम लोग मेरे बगैर जीने की आदत डाल लोगे।


वही मिंटू भ्रमित सी अपने आस पास बड़ी दादी की उपस्थिति को महसूस कर पा रही थी क्योकि बड़ी दादी जाने से पहले उसके गले लगकर उसे आशीर्वाद दे रही थी।


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