कहानी की कहानी
कहानी की कहानी
आज शहर के सबसे पुराने पुस्तकालय में प्रदर्शनी लगी हुई थी।बहुत से पाठक और लेखकगण वहाँ पहुंचे हुए थे।उन्ही में कॉलेज का एक ग्रुप भी शामिल था जिसमे राहुल ,रघु ,निशा और उनके चार दोस्त थे ।उनलोगो को नए जमाने के लेखकों में ज्यादा रुचि थी और वो उनकी ही किताबे देख रहे थे।
कुछ देर बाद वो साइंस और फिक्शन वाले सेक्शन की और बढ़ गए।वहाँ पर उन्होंने नए नए साइंस गल्प की पुस्तकें पसंद की और कुछ खरीदारी भी की ।
रघु को पुराने साहित्य में काफी रूचि थी।पुरानी किताबो का संग्रह थोड़ा हटकर कोने की तरफ थे वहाँ पर रघु और उसके दोस्त पहुंच गए और वहाँ सजाई गई किताबो पर नजर डालने लगे।
रघु की नजर एक किताब को देखकर ठहर गयी ।वो किताब एक पुराने चमड़े के बने कवर में बहुत पुरानी कलाकृति की तरह लग रही थी।रघु उस किताब को उठाकर उलट पुलट करके देखने लगा।किताब के शीर्षक देख कर रघु अचंभीत था किताब का शीर्षक था "कहानी की कहानी"।
रघु को ये पुस्तक पसंद आयी उसे लेकर वो काउंटर पर बिलिंग करवाने गया । काउंटर पर बैठी लाइब्रेरियन ने उस किताब को देखा और उस किताब की जानकारी अपने कंप्यूटर में सर्च करने लगी लेकिंन उसकी लिस्ट में ये किताब मिली ही नहीं।उसने कहा सर यह बुक तो हमारी इन्वेंट्री में मिल नहीं रही है।आप इसे नहीं खरीद सकते। रघु थोड़ा निराश हो गया।उसने बड़े आदर सहित कहा "मैंम थोड़ी कोशिस करें शायद इस परेशानी का कोई हल निकल जाये" थोड़ा उल्ट पुलट करने के बाद लाइब्रेरियन ने कहा सर आप चाहे तो इसके प्रिंट रेट पर मैं इसे आपको दे सकती हु पर ये थोड़ी महंगी है ।इसका रेट कुछ ११११ लिखा है
इसके साथ पता नहीं ये सिम्बल क्या बना हुआ है।पर आप इस किताब की आफ्टर डिस्काउंट १९११ रूपये में ले जा सकते है।
रघु खुश हो गया उसने भुगतान के बाद उस किताब को ले लिया।उसके सारे दोस्त इस किताब को लेने पर उसकी खिचाई कर रहे थे पर रघु इस किताब को लेकर बहुत खुश था अब जल्द से जल्द घर जाकर इस किताब को पढ़ना चाह रहा था।
सारे दोस्त उस प्रदर्शनी से कॉलेज की और निकल पड़े।कॉलेज की क्लासेस खत्म करने के बाद वो अपने अपने घरो को निकल पड़े।रघु घर पहुंचने को बहुत ही उत्सुक था ।वो जल्द से जल्द घर पहुंच कर उस पुस्तक को पढ़ना चाहता था।
रघु घर पहुंचा और खाना खाने के बाद उस पुस्तक को पढ़ना शुरू कर दिया ।पहले वो किताब का शीर्षक और प्रस्तावना इत्यादि को पढ़कर उस किताब के बारे में जानना चाहता था।क्युकी वो किताब उसे बहुत ही रहस्य्मय लग रही थी।उसने उस किताब के पब्लिशिंग ईयर को देखा उसमे १६०५ मा य. लिखा था
रघु इतनी पुरानी किताब को पाकर बहुत खुश था उसे लग रहा था की इस एन्टीक किताब के रूप में उसे कोई नायाब तोहफा मिल गया हो ।
उसने किताब के लेखक और प्रस्तावना इत्यादि के बारे में पढ़ा और थककर सो गया
सुबह रघु की माँ ने रघु को जगाने के लिए जब दरवाजा खटखटाया तो अंदर कुछ गिरने की आवाज़ सी आयी ।उसकी माँ रघु रघु की आवाज़ लगती रही मगर अंदर से उसे कुछ खटर पटर की आवाज़ आती रही पर दरवाजा नहीं खुला।जब उसके पिताजी आकर दरवाजे को दो तीन धक्का लगाये तो दरवाज़े की कुण्डी टूट गयी और दरवाज़ा खुल गया।
कमरे के अंदर सारा सामान अस्त व्यस्त था ।रघु एक कोने में डरा् हुवा बैठा हुआ था माँ जब उसके पास गयी तो रघु उन्हें देखकर डर के मरे चिल्लाने लगा "नहीं मेरे पास मत आओ,मुझे अकेला छोड़ दो,मुझसे दूर चले जाओ" माँ उसकी चीखो से डर कर बाहर आ गयी उसके पिताजी जब उसके पास जाने की कोशिस करते तब रघु का चिल्लाना और खतरनाक हो जाता।
रघु के पिताजी के समझ मे कुछ नहीं आ रहा था।रात तक तो सब ठीक था अब क्या हो गया।उन्होंने अपने फैमिली डॉक्टर को बुलाया डॉक्टर साहब भी रघु के पास जाने लगे तो रघु वैसे ही चीखता रहा।डॉक्टर साहब ने रघु के माता पिता की मदद से रघु को नींद का इंजेक्शन दे दिया और कुछ दवाइयां देखर बोले "रघु की हालत अच्छी नहीं है इसे जल्द से जल्द किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी है।नहीं तो मानसिक ब्रेकडाउन का खतरा है।इसकी हालत और आंखे देखकर ये लग रहा है मानो किसी बहुत बड़े दर्द से गुजरा हो।"
"पर डॉक्टर साहब ये तो रात में अपने कमरे में आराम से पढ़ाई कर रहा था" रघु की माँ ने कहा। " कई बार ये लक्षण अचानक ही दिखने शुरू होते है।आपलोग इसका ख्याल रखे और किसी अच्छे अस्पताल में जल्द से जल्द ले जाये"डॉक्टर ने बताया।
उसी शाम तक रघु को एक नामी गिरामी अस्पताल के आई सी यू में भर्ती कर दिया गया।सारे टेस्ट किये गए मगर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।रघु का चीखना चिल्लाना और भी बढ़ गया था।अब वो अपने आपको नोंचने काटने की कोशिश भी करने लगा था।डॉक्टर और नर्स उसकी इन हरकतों से परेशान हो गए थे।कभी कभी तो रघु खुद को मारने की भी कोशिश करता लेकिन नर्स या वार्डबॉय के सतर्कता के वजह से बच गया था।
रघु जब भी होश में आता उसकि नजरे इधर उधर कुछ ढूंढती रहती।किसी खास दिशा में देखते ही उसकी आंखें खौफ से फैल जाती।शरीर के रोये रोये खड़े हो जाते।फिर जबतक उसे होश रहता कुछ मन्त्र जैसा बुदबुदाते रहता।
आखिर एक दिन रघु को अपने खौफ से मुक्ति मिल ही गयी।या यूं कहें रघु अपने खौफ से हार गया था। उस दिन रघु टॉयलेट जाने के बहाने बेड से उठा और गैलरी की तरफ चला गया वहीं गैलेरी में से नीचे को छलांग लगा दी।उसके साथ ही उसकी इहलीला समाप्त हो गई।
उसके दोस्त और जानने वाले सभी सदमे में थे किसी को समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो गया।रघु की अंतिम क्रिया कर्म में उसके सारे दोस्त शामिल हुए थे।राहुल की कुछ किताबें रघु मांग कर अपने पास ले आया था।राहुल ने रघु की माँ से बताया तो उन्होंने रघु के कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा" बेटा किताबे तो उसके कमरे में ही है जाकर ले लो" राहुल रघु के कमरे में पहुँचा और अपनी किताबो को निकालने लगा।उसे बेड पर पड़ी वही किताब नजर आयी।ना जाने किस आकर्षण से बंध कर राहुल ने वो किताब भी उठा ली।
कुछ दिनों तक सबकुछ सामान्य चलता रहा।एक दिन कॉलेज से लौटने के बाद राहुल अपने कमरे में गया।कमरे में जाकर उसने उसी कहानी की किताब को उलट पुलट कर देखना चालू कर दिया। उस किताब में लिखा पब्लिशिंग डेट और प्राइस का सिम्बल उसे अजीब सा लगा।उसने इंटरनेट पर उस सिम्बल को सर्च किया।घण्टो की खोजबीन के बात उसे उन सिंबल्स का मतलब पता चल गया।वो सिम्बल मायन ईयर और उनकी मुद्रा का था।इस हिसाब से वो पुस्तक 1500 ई. पूर्व की थी मतलब उस समय से लगभग 3500 साल पुरानी।अब उसे इस किताब में इंटरेस्ट आने लगा था।वो इसे पढ़ना चाह रहा था।
अगली सुबह जब राहुल के पिताजी ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे तो उन्हें खयाल आया राहुल अभी तक सो रहा है कहीं उसकी तबियत तो खराब नहीं हो गई है।राहुल के पिताजी राहुल को जगाने उसके कमरे में गये।कमरे की हालत देख कर उनको धक्का लगा।बेड पर राहुल की हालत देखकर तो उनके होश ही उड़ गए।
बेड पर राहुल किसी नमन की मुद्रा में बैठा हुआ था।उसका शरीर बिल्कुल काला पड़ चुका थे।उसके शरीर पर बहुत सारे चोट के निशान भी थे।ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने उसके शरीर पर बहुत शक्ति से वार किया है।पास जाकर देखने पर पता चला उसकी सांसे हमेशा के लिए बन्द हो गई थी।राहुल के पिताजी को ये देखकर चक्कर आने लगा और वहीं गिरकर बेहोश हो गए।
कुछ देर में उनका नौकर श्याम उन्हें ढूढ़ता हुआ उस कमरे में आया और ये सब देखकर चिल्लाते हुए बाहर भाग गया।अगल बगल के पड़ोसी श्याम की आवाज़ सुनकर बाहर निकल आये और श्याम से पूछा ""क्या हुआ।क्यों इतना शोर मचा रहे हो?"श्याम खून खून बोलता और घर की तरफ इशारा कर रहा था।पड़ोसी अंदर आये और कमरे में मृत राहुल और बेहोश शर्मा जी को देखकर पुलिस को खबर कर दिये।थोड़ी ही देर में पुलिस वहाँ आ चुकी थी और शर्मा जी को भी होश आया गया था।
पुलिस कर्मी अपना काम कर रहे थे।उन्हें इस तरह की लाश मिलने पर बहुत ही आश्चर्य हो रहा था।इंस्पेक्टर राज इनका लीडर उसके पूरे कैरियर में इस तरह की मौत घटना से कभी रूबरू नहीं हुआ था।उन्होंने शर्माजी उनके पड़ोसियों और नौकर श्याम का बयान लेना शुरू किया। "शर्मा जी आपको किसी पर शक है।राहुल की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी" इंस्पेक्टर ने पूछा।
"नहीं इंस्पेक्टर साहब राहत को तो पढ़ाई के अलावा अन्य कोई जुनून ही नहीं था।उसकी भला किसी से कोई दुश्मनी कैसे हो सकती है।मुझे किसी पर शक भी नहीं है।पता नहीं किसकी नजर मेरे बेटे को लग गई" सिसकियों के साथ शर्मा जी ने बताया।
नौकर श्याम और पड़ोसियों से भी इंस्पेक्टर राज ने दो चार सवाल किए और कहा "ये कमरा हम शील कर रहे है और बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज रहे है।पोस्टमार्टम के बाद ही कुछ पता चल पाएगा"
इसके बाद कुछ फॉरमैलिटी कर मृत बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।और कमरे को शील करके सारे पुलिस वाले चले गए।
अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद राहुल का शव उनके परिवार जनों को सौंप दिया गया।दूसरे दिन इंसपेक्टर राज के टेबल पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट थी।इंस्पेक्टर राज उस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद अपना सर खुजा रहें थे।उनकी समझ मे नहीं आ रहा था ये मर्डर है या किसी घातक बीमारी की वजह से जान गई है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सदमे की वजह से मृत्यु बताई गई थी उसके साथ थी किसी भारी हथियार से शरीर पर चोटों के निशान भी पाये गए थे।डेड बॉडी के रक्त में थयरोक्सिन की मात्रा बहुत बढ़ी हुई थी साथ ही साथ रक्त की मात्रा में बहुत कमी पाया जाना किसी मर्डर प्लान की ओर इशारा कर रहे थे।फॉरेन्सिक रिपोर्ट में घर मे जबरन घुसने का कोई निशान नहीं मिला।किसी दूसरे के न कोई फिंगरप्रिंट मिले न ही कुछ और संदिग्ध।
इंस्पेक्टर राज ने राहुल के कमरे का फिर से एक मुआयना करने का सोचा और निकल पड़े अपने अर्दली मनोज को लेकर।श्याम उन्हें दरवाजे पर ही मिल गया।राज ने श्याम से पूछा "शर्मा जी कहाँ हैं?"श्याम राज को लेकर शर्मा जी के कमरे में गया।राज ने शर्मा जी से कहा "शर्मा जी हम राहुल के कमरे का एक मुआयना करना चाहते है।आप भी हमारे साथ रहे" शर्मा जी राज को लेकर राहुल के कमरे में चले गए।राज ने सरसरी निगाह पूरे कमरे में दौड़ाई लेकिन उसके मतलब का कुछ नजर नहीं आया।
राज ने हर तरफ देखा।अलमारी बेड, टेबल सबकुछ पर उसके काम की कोई भी चीज नज़र नहीं आ रही थीं।राज ने सोच रखा था आया हूँ तो कुछ न कुछ तो ढूंढकर ही जाऊंगा।उसकी नज़र बेड पर पड़े उस किताब पर पड़ी।किताब उसे कुछ अजीब सी लगी।उसने शर्मा जी से उस किताब। के बारे में पूछा तो शर्माजी ने अनभिज्ञता जाहिर की।उस किताब को देख राज के दिमाग में कुछ खटका हुआ।उसने शर्मा जी से उस किताब को ले जाने की अनुमति माँगी।शर्मा जी ने राज को किताब ले जाने की अनुमति दे दी।
राज उस किताब को लेकर थाने पहुँचा और उसे अपनी ड्राअर में रख दिया उसके बाद अपने नियमित काम करने में उलझ गया।
कुछ दिन वो किताब राज के ड्राअर में ही पड़ी रही।एक दिन राज को उस किताब की याद आयी।शाम का समय हो चुका था राज ने सोचा इस किताब को घर लेजाकर ही देखता हूं।बड़ी अजीब किताब है।पता नहीं इस लड़के को ये किताब कहाँ से मिली होगी।
अगले दिन राज ऑफिस नहीं पहुँचा।उसके अर्दली मनोज ने राज का फोन भी कई बार ट्राय किया लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया।थक हार कर मनोज राज के घर पहुँचा।वहाँ पहुचने पर मनोज को कुछ तो असमान्य लगा।राज का घर अंदर से बंद था। आज का अखबार और दूध का पैकेट बाहर ही पड़ा था।
मनोज ने कई बार राज को आवाज़ लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।मनोज के मन मे किसी अनिष्ट की आशंका हुई।उसने तुरंत आफिस फोन करके अपने सहयोगियों को यहां के हालात से अवगत करवा दिया।
थोड़ी ही देर में कुछ पुलिसकर्मी वहाँ पहुँच गये।उन्होंने राज के घर का दरवाजा धक्के मारकर तोड़ दिया।उसके बाद सब लोग राज के कमरे में पहुंचे।वहां के हालात बिल्कुल राहुल के घर जैसी थी।उसी प्रणाम की मुद्रा में राज बैठा हुआ था।उसकी भी जान जा चुकी थी।उसके शरीर का रंग काला पड़ चुका था।पुलिस वाले ये सब देखकर शन्न रह गये।उन्होंने एम्बुलेंस बुलवाया और राज की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।कुछ छानबीन करने के बाद उन्होंने राज के परिजनों को इस दुर्घटना की खबर कर दी।राज के घर को शील करने के बाद पुलिस अधीक्षक को खबर कर दी गयी।
इंसपेक्टर राज की मौत के बाद सारे पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ था।कुछ लोग दबी जबान में उस किताब को ही इसका कारण मान रहे थे।उस किताब को मनहूस मानकर उसे थाने के स्टोर रूम में पड़ी पुरानी अलमारी में रख दिया गया था।सबको हिदायत थी कि न ही कोई इसके बारे में बात करेगा न ही किसी को कुछ बताएगा।वैसे भी मीडिया में पुलिस की बहुत ही थू थू हो चुकी थी।
जब अपराधों के रोकने वाले ही अपराधियों के शिकार हो जाये और पुलिस के पास कोई जबाब भी न हो तो डिपार्टमेंट की किरकिरी होना स्वाभाविक ही था।
हेडक्वार्टर में बहुत ही गहन बैठक चल रही थी।इन हत्याओं का कोई सुराग तो मिल नहीं रहा था ऊपर से बहुत प्रेसर भी था।मीडिया भी हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई थी।हर अफसर अपने अपने हिसाब से कुछ सलाह देते लेकिन कोई ठोस उपाय नहीं निकल पा रहा था। काफी देर खामोश रहने के बाद कप्तान तलपड़े ने कहा "मुझे लगता है इंस्पेक्टर सुव्रत को यह केस सौपना चाहिए" बाकी लोग उसकी तरफ घूरकर देखने लगे आखिर ये कौन सी बला है।
"बिल्कुल नास्तिक, जांबाजों का जांबाज,मर्दानों में मर्द,कभी हार न मानने वाला है ये सुव्रत।इसने उन केसेस को हल किया है जिसको उनसोल्व समझकर छोड़ दिया जाता है।बस इसकी एक ही कमी है।अकड़ू और झक्की है थोड़ा सा।सारा काम अपने हिसाब से करता है।किसी की नहीं सुनता" तलपड़े ने बताया।
सारे लोग अंधा क्या मांगे की स्तिथि में थे उन्होंने सुव्रत को केस सम्भालने पर सहमति दे दिया।अगले ही दिन सुव्रत का ट्रांसफर इस थाने में कर दिया गया और तत्काल प्रभाव से जॉइनिंग भी करवा दिया गया।
पहले दिन जैसे ही सुव्रत ने पुलिस स्टेशन में कदम रखा सारे पुलिस कर्मी उसे देखते ही रह गए।लम्बे ऊंचे कद का बलिस्ट इंसान।चौड़ी छाती में लगे हुए मेडल्स और सपाट चेहरे के साथ ।जितनी तारीफ सुनी थी इंस्पेक्टर सुव्रत बढ़कर ही निकला।आते ही अपने काम मे जुट गया।यूँ लगा मानो बरसों से इसी थाने में काम कर रहा हो।कुछ भी नयापन या अजनबी पन नहीं झलक रहा था।एक एक को उसके नाम से एक ही मुलाकात में पहचान बना लिया था।
सुव्रत ने इंसपेक्टर की मौत की फ़ाइल मंगवा लिया था और गहन अध्यन में व्यस्त हो गया।फिर उसने राहुल की भी केस फ़ाइल मंगवाया और काफी देर फाइलों में डूबा रहा।उसने शुरुआत राहुल के मौत से ही करने की सोची क्योंकि दोनों मौतों की कड़ी आपस मे जुड़ी हुई थी।दोनो ही फाइलों में उस रहस्यमयी किताब के बारे में कुछ भी अंकित नहीं था।और सुव्रत महोदय को इनसब बातो पर यक़ीन भी नहीं था इसलिए किसी ने उनसे इसकी चर्चा करना भी उचित नहीं समझा।
अगले दिन सुव्रत , शर्मा जी के घर पहुँचा वहाँ जाकर उसने शर्मा जी से कुछ सवाल किए।नौकर श्याम से भी बहुत कुछ पूछा।श्याम ने बताया "साहब पुराने इंस्पेक्टर साहब यहाँ से राहुल बाबा की कोई किताब ले गए थे।सुना है उनकी भी मौत राहुल बाबा की तरह ही हो गयी।मुझे तो वह किताब ही मनहूस लगती है।"
"कौन सी किताब?"इंस्पेक्टर ने श्याम से पूछा।श्याम ने कहना शुरू किया "साहब पुराने इंस्पेक्टर साहब को राहुल बाबा की बेड पर एक अजीब सी किताब मिली थी।जिसे लेकर वो थाने गए थे।कहते है जब उनकी मौत हुई उनके बेड पर भी वही किताब थी"।सुव्रत ने उसे डपटते हुए कहा"क्या बकवास करते हो।ऐसा कहीं होता है।" श्याम ने कहा "साहब हम तो निपढ हैं जो सुना था आपको बता दिया।कोई गलती की हो तो क्षमा करें" सुव्रत ने उससे कुछ और जानकारी ली और शर्मा जी से राहुल के कुछ दोस्तों के नाम और पते लेकर वहाँ से चला गया।
वहाँ से निकलने के बाद सुव्रत ने अपनी गाड़ी का रुख निशा की घर की तरफ कर दिया।निशा उसे घर पर ही मिल गई।सुव्रत ने अपना परिचय देने के बाद निशा से राहुल की मौत के बारे में कुछ सवाल किए।निशा ने बताया "सर राहुल की मौत तो हम दोस्तो के लिए एक बहुत बड़ा सदमा है।राहुल की किसी के साथ कोई दुश्मनी भी नहीं थी।और उसका इतना प्यारा स्वभाव है कि कोई उसे मारने की सोच भी नहीं सकता।पर एक अजीब बात जरूर मैंने भी सुना है की राहुल के पास से रघु की कहानियों की किताब मिली थी।"
रघु कौन है ये रघु ?इंस्पेक्टर ने पूछा।तब रघु और उसकी किताब की सारी जानकारी एक एक करके निशा ने इंस्पेक्टर को दे दी।सारी बात सुनकर सुव्रत कुछ सोच में पड़ गया और निशा से उस लाइब्रेरी का पता लेकर लाइब्रेरी की तरफ निकल गया।
लाइब्रेरी पहुँचकर उसने रिसेप्शन पर थोड़ी पूछताछ की ।रिसेप्शनिस्ट ने उसे लाइब्रेरियन के पास पहुच दिया।सुव्रत ने अपना परिचय और केस की सारी जानकारी उस लाइब्रेरियन लड़की को दी और पूछा "मैंने सुना है यहाँ से खरीदी किताब का हर मौत से कुछ न कुछ सम्बन्ध है।क्या आप मुझे उस किताब के बारे में कुछ बता सकती है?"लाइब्रेरियन ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा "सर उस किताब की कोई भी एंट्री हमारे कंप्यूटर में नहीं थी।बच्चे बहुत रिक्वेस्ट कर रहे थे तो मैंने उन्हें वो किताब दे दी थी।उस किताब के बारे में हमारे रिकार्ड्स में कुछ भी नहीं है।पता नहीं कैसे वह किताब हमारे प्रदर्शनी में आ गयी।मुझे क्या इस लाइब्रेरी के किसी भी स्टाफ़ को उस किताब के बारे में कोई जानकारी नहीं है"
सुव्रत वहाँ से भी खाली हाथ निकल गया।फिर बीच मे अन्य काम निबटाते हुए वो थाने पहुँचा। थाने पहुँचकर उसने उस किताब के बारे में पूछताछ की।उसके अर्दली ने बताया "सर किताब को स्टोर रूम में रख दिया गया है।हर कोई उस किताब से खौफजदा है उसके बारे में बात करना भी मना है।"
सुव्रत ने कहा "मुझे इन ढकोसलो पर यक़ीन नहीं है।जाओ और उस किताब को लेकर आओ।"
अर्दली भुनभुनाता हुआ उस किताब को लाने चला गया।थोड़ी ही देर में वापस आया और किताब सुव्रत की मेज़ पर रख दिया और बोला "सर एक बार फिर से सोच लीजिए।दो लोगो की मौत इसके कारण हो चुकी है"सुव्रत ने बिना उसकी ओर देखे कहा "दो नहीं तीन।रघु की मौत भी इसी किताब की वजह से हुई थी ।" और अर्दली की तरफ देखकर कहा "अब तुम जाओ मैं इस किताब की जानकारी लेता हूं।सबसे कहना कोई मुझे डिस्टर्ब न करे" अर्दली वहां से चला गया ।लेकिन उसने सोच लिया था वो सुव्रत पर नजर रखे रहेगा।
सुव्रत ने उस किताब को पढ़ना शुरू किया।पढ़ते हुए उसे अजीब सा महसूस होने लगा।उसके सिर में अजीब सा दर्द और बदन में अजीब सी सिहरन होने लगी।उसे लगा उसकी तबियत खराब हो रही है।किताब को वहीं थाने में छोड़कर वह घर चले गया।सारे रास्ते भर उसे महसूस हो रहा था जैसे उसका ब्लड प्रेशर बढ़ गया हो।कोई उसके सिर को इतनी जोर से दबा रहा है मानो सिर फट जाए।
घर पहुँच कर उसने कुछ दवाइयां खाई और सो गया।रात के दो बजे के लगभग सुव्रत को महसूस हुआ
जैसे उसके कमरे में कोई है।उसने अपनी आंखे खोली तो सामने उसे एक काला साया नजर आया जो उसे ही घूर रहा था।सुव्रत ने झट से अपनी रिवॉल्वर निकली और उस साये ओर दो गोलियां चला दी।साया वहाँ से गायब हो गया।सुव्रत अब सच मे पड़ गया कौन था ये साया ।यहाँ क्या करने आया था।
सुव्रत की आंखों में अब नींद नहीं थी।वो अपने बिस्तर पर लेटा उसी साये के बारे में सोच रहा था।थोड़ी देर बाद सुव्रत को महसूस हुआ मानो एक धुंए का बादल उसके कमरे में छाने लगा है।सुव्रत अपने बिस्तर से उठना चाह रहा था लेकिन वह तो हिल भी नहीं पा रहा था।धीरे धरे धुंए का वो बादल छटने लगा ।अब बदलो के पीछे चलचित्र सी कुछ घटनाये दिखाई देने लगी थीं।
इंस्पेक्टर राज उसे अपने कमरे में नजर आए ।राज उस किताब को अपने बेड पर लेटकर पढ़ता हुआ नजर आ रहा था।थोड़ी देर में राज के सिर में भारी दर्द उठने लगा।राज उठकर बैठ गया।राज बेड के सिरहाने रखी दवाओं को लेकर खाने लगा।फिर भी दर्द कम होने का नाम नही ले रहा था।राज का ध्यान उस किताब की तरफ गया।उस किताब में से एक काला साया बाहर आया।जिसे देखकर राज डर के मारे काँपने लगा।उस काल साये ने राज के सिर पर हाथ रखा ।राज एक विषेेस मुद्रा में बैठ गया।उसके बाद उस काले साये ने राज के शरीर पर एक मोटी जंजीर से चोट करना शुरू कर दिया।राज टस से मस नहीं हो रहा था।उसी मुद्रा में बैठा रहा।जब उसके प्राणों का अंत हो गया तो वह काला साया पुनः उस किताब में समा गया।
एक घटना के बाद कमरे में सबकुछ सामान्य हो गया।सुव्रत को राज और राहुल की मौत का रहस्य पता चल चुका था।अब उसे इस किताब के रहस्य को जानना था।
अगली सुबह उठकर सुव्रत थाने पहुँचा।वहाँ से उसने किताब को लिया और तीन दिन की छूट्टी की अर्जी देकर निकल पड़ा।उसने विध्याचल के लिए बस पकड़ी शाम होने से पहले वो विंध्याचल पर्वत पर पहुँच चुका था।विंध्याचल पर्वत पर जंगलों में बढ़ते हुए झाड़ियों में एक गुफा नुमा संरचना उसे नजर आयी।उसी के अंदर वह चला गया।ऊपर से सकरी दिखने वाली गुफा अंदर बहुत चौड़ी हो गयी थी।वहीं एक सिद्धपुरुष बैठे तपस्या में लीन थे।
सुव्रत उनके सामने जाकर बैठ गया।थोड़ी देर में सिद्धपुरुष ने आंखे खोली और सुव्रत को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा।अब कौन सी समस्या आन पड़ी पुत्र।सुव्रत ने हाथ जोड़कर उस किताब को उनके समीप रख दिया।सिद्ध पुरूष उस किताब ओर अपना बायां हाथ रखकर ध्यानमग्न हो गए।थोड़ी ही देर में झटके से उन्होंने अपना हाथ उस पुस्तक पर से हटा लिया और सुव्रत से बोले "कहाँ से तुम ये मुसीबत उठा लाये।ये एक बहुत बड़ी मुसीबत है।इससे छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है"
सुव्रत ने किताब की सारी कहानी गुरुजी को बताई और कहा गुरुजी इससे निपट पाना इतना आसान होता तो मैं कभी आपको तकलीफ़ नहीं देता।आप ही अब इस मुसीबत से दुनियावालो को छुटकारा दिलवाए।गुरुजी ने कहा ठीक है पहले इसकी गति देखनी होगी।जो इसने सदियों से भुगती है।उसके बाद ही कोई उपाय किया जा सकता है।इसके लिए तुम्हे निमित्त बनना पड़ेगा।बहुत कष्ट भरा होगा क्या तुम तैयार हो इसके लिए।
" गुरुजी आपका साथ हो तो मैं हर मुसीबत के लिए तैयार हूं।क्या करना होगा मुझे कृपया मार्गदर्शन करें" सुव्रत ने कहा।
"तुम इस पुस्तक को पढ़ना शूरु करो।मैं ध्यान लगाकर इसके नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव को संतुलित करता हूं।कितनी भी पीड़ा से गुजरने पर भी किताब पढ़ना बन्द मत करना अन्यथा सारे काम बिगड़ जएँगे।इस तरह की नकारात्मक ऊर्जा बहुत शक्तिशाली होती है।अगर इनका मकसद पूरा नहीं हो तो ये संसार मे कहर ढा देती है।इसके यहाँ होने का कोई बहुत बड़ा प्रयोजन अवश्य होगा।अन्यथा ये अपने आप को प्रकट नहीं करती हैं।" गुरुजी ने बताया।
जी गुरुजी अवश्य मैं इस बात का पूरा खयाल रखूंगा।कहकर उस किताब को लेकर सुव्रत बैठ गया और पृष्ठ पलटते हुए पढ़ने लगा।
जैसे जैसे सुव्रत उस किताब को पढ़ता जा रहा था वैसे वैसे गुफा के किनारे सारे रहस्य चलचित्र के समान दिखते जा रहें थे।बहुत पुरानी माया नगरी के राजदरबार का दृश्य उभरकर सामने आया।राजा अपने दरबार मे बैठे हुए एक लेखक जिसका नाम तैत्रय था उससे एक कविता सुन रहे हैं कविता में राजा के सौंदर्य और वीरता का बखान हो रहा है।राजा ये सुनकर बहुत खुश हुए उन्होंने कवि से मनचाही मुराद पूरी करने की बात कही।कहा मांगो जो भी मांगना है।लेकिन एक शर्त है।एक ऐसी कविता सुनाओ जिसे सुनकर हम रो पड़े अन्यथा तुम्हारे सिर को काट दिया जाएगा।राजा अपने पास बैठे सुंदरियों से चुहल कर रहा था।आमोद प्रमोद में लीन राजा को अपनी कविता से आकर्षित करना ही कठिन होता यहाँ शर्त उसे रुलाने की थी।कवि को तो अपने जीवन की ये आखरी घड़ी महसूस हो रही थी।
वो कवि मन ही मन राजकुमारी को बहुत प्रेम करता था।राजकुमारी भी उससे प्रेमभाव रखती थी लेकिन राजघराने की नीतियों की वजह से कभी अपने प्रेम का इजहार नहीं किया था।
खैर कवि महोदय ने राजकुमारी से विरह की कल्पना कर कविता की जो तान छेड़ी की राजा जी का ध्यान न चाहते हुए भी कविता ने खिंच लिया।इधर कविता खत्म हुई उधर राजा की आंखों से झरने के समान आँसू निकल पड़े।
राजा उस कवि से बहुत प्रसन्न हो गए और कहा "मांगो कविवर क्या मांगते हो।कवि महोदय ने हिम्मत करके राजकुमारी का हाथ मांग लिया।
यह सुनते ही महाराज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुच गया।उसने कवि को बंदी बनाकर काल कोठरी में डालने का हुक्म दे दिया।उसी काल कोठरी में कवि महोदय ने राजकुमारी की विरह में इस कहानी को लिखा।उसमे उन्होंने अपना सारा हुनर छलका दिया।
कुछ दिनों बाद राजकुमारी का ब्याह एक राजा के साथ कर दिया गया।जब उस राजा को इस कवि महोदय के बारे में पता चला तो उसने अपने ससुर जी को खत लिखकर उस कवि को अपने पास भेजने का आग्रह किया।कवि को बेड़ियों में जकड़कर उसके सामने पेश किया गया।
राजा ने अपनी पत्नी से प्यार करने के जुर्म में कवि की बीच चौराहे पर पत्थरों से मारकर हत्या करने की सजा सुनाई और रानी की उपस्थिति वहाँ अनिवार्य कर दी।फिर उस कवि की हत्या उसकी प्रेयसी के सामने ही पत्थर मार मार कर कर दी गयी।कवि के मरने के बाद रानी ने भी विषपान कर अपने प्राणों को त्याग दिया।
उस कवि की लिखी इस किताब में उस कवि की सारी भावनाएं और दर्द कैद हो गए।कवि की रूह भी उसी किताब में फंस गयी।जिसने भी इस किताब को पढ़ने की कोशिश की वो भावनाओं से आहत होकर और कवि की रूह के द्वारा मार दिया जाता था।कई लोगों ने इस किताब से मुक्ति पाने के लिए इसे जलाने फाड़ने या नस्ट करने की कोशिस किया मगर सब व्यर्थ हो गया।इस पुस्तक पर किसी भी चीज का कोई असर नहीं होता था।
इधर सुव्रत ने पूरी किताब पढ़कर खत्म किया लेकिन उस किताब की भावनाओं से आहत होकर बेहोश हो गया।
सुव्रत ने गुरुजी की ओर जिज्ञासा भरी नजरों से देखा।गुरुजी ने कहा "पुत्र संसय की कोई बात नहीं है।इस किताब से जुड़ी जो भी आत्मा और नकारात्मक भावनायें है।उनको इस किताब से मुक्त करने के लिए हमे एक आराधना करनी होगी।हमे इस अतृप्त आत्मा की इच्छा पूर्ति करनी होगी ।तभी इस पुस्तक की शुद्धि हो पाएगी और उस आत्मा की मुक्ति।"
ठीक है गुरुजी जैसा आप उचित समझे।सुव्रत ने कहा।गुरुजी उस पुस्तक को लेकर ध्यानमग्न हो गए।थोड़ी ही देर बाद वहां पर काफी हलचल होने लगी।गुफा के अंदर ही बवंडर सा चलने लगा। कुछ देर बाद जब ये बवंडर शांत हुआ तब गुरुजी ने आंखे खोली और मुस्कुराते हुए सुव्रत की तरफ देखा और कहा "तुम्हारे जन्म का प्रयोजन सिद्ध होने वाला है पुत्र।तुम सदा यही पूछा करते थे न कि तुम्हारे निरर्थक जीवन का क्या महत्व है।क़यू तुम्हे संसार द्वारा त्याग दिए जाने के बाद भी इन जंगलों में पाला गया।अब इस मुसीबत से छुटकारा पाने में इस धरा को तुम्हारी जरूरत है।"
लेकिन इस पुस्तक के अंत करने मे मैं क्या सहायता कर सकता हूँ।सुव्रत ने कहा। "देखो पुत्र इस शक्ति के पुनः सक्रिय होने का कारण है इसकी प्यारी राजकुमारी का पुनर्जन्म।जो इस दुनिया में कही न कहींं हो चुका है।उसकी चाहत ने ही इस पुस्तक की शक्ति को उग्र कर दिया है।इसकी मुक्ति का मार्ग उस राजकुमारी से होकर जाता है।तुम्हे उस राजकुमारी को ढूढना होगा ।और किसी तरह लेकर यहाँ आना होगा।"
परन्तु गुरुदेव मैं उस राजकुमारी को पहचानूंगा कैसे?सुव्रत ने पूछा गुरुजी ने पुस्तक की आखरी पृष्ट पर बनी कलाकृतियों की ओर इशारा करते हुए कहा" पुत्र इन कलाकृतियों को ध्यान से देखो तुम्हे इसमे उस राजकुमारी का अक्स दिखाई देगा।"
सुव्रत ध्यान लगाकर उस कलाकृतियों को देखने लगा थोड़ी देर बाद ही उस कलाकृतियों में एक चेहरे का अक्स सामने आया।उसे देखकर सुव्रत को यकीन नहीं हो रहा था।वो अक्स निशा का था।
गुरुजी इस चेहरे को तो शायद मैं पहचानता हुँ।ये तो निशा है मैं इससे , इसी पुस्तक के सिलसिले में मिल चुका हूँ।इस पुस्तक के शिकार हुए बच्चों की दोस्त है ये। सुव्रत ने बताया।
"पुत्र तुम्हे इस कन्या को लेकर जल्द से जल्द यहाँ आना होगा।अन्यथा दिन ब दिन इसकी शक्तियां बढ़ती जाएंगी और इसपर काबू पाना असंभव हो जाएगा।" गुरुजी ने कहा ।सुव्रत ने स्वीकरोक्ति में सर हिला दिया और वहाँ से निकल पड़ा।
सुव्रत वहाँ से निकलकर निशा को लाने चल पड़ा।निशा उसके साथ यहाँ आने को तैयार होगी या नहीं, इसी सोच से सुव्रत घिरा हुआ था। कुछ समय पश्चात उसे अपने जीवन की सार्थकता का खयाल आया।गुरुजी ने ऐसा क्यों कहा ।सोचते हुए सुव्रत पुरानी यादों में खो गया।
जबसे उसने होश संभाला था उसे ये जंगल औऱ ध्यान में बैठे ये गुरुजी ही नजर आते थे।उसका पालन इस जंगल के गुफाओं में ही हुआ था।उसने ना कभी अपने माता पिता को देखा था ना ही उनके बारे में कुछ जानता था।
इन जंगलों में रहते हुए उसे हमेसा कुछ न कुछ अजीबोगरीब चीजो से पाला पड़ता।सुरु में तो डरकर वह गुरुजी की गोद मे दुबक जाया करता था।धीरे धीरे उसे इन सब बातों की आदत पड़ गयी थी।
गुरुजी ने ही उसका पालन पोषण किया।उन्होंने अध्यात्म की शिक्षा देने की बहुत कोशिश की लेकिन सुव्रत तो मानो किसी और मिट्टी का बना था।उसे कभी भी इन बातों पर आस्था नहीं हुआ।वो अपनी ही धुन में मग्न रहता था।गुरुजी ने अपने एक सेवक से कहकर इसकी शिक्षा दीक्षा का प्रबंध बोर्डिंग में करवा दिया।बाहरी दुनिया मे रमकर सुव्रत का गुरुजी से मिलना जुलना कम हो गया।
कई बार सुव्रत को बहुत अजीब अजीब सपने आते।जब से गुरुजी से सुव्रत ने इस बारे में चर्चा की हमेशा गुरुजी मुस्कुरा कर टाल देते।
बचपन मे सुव्रत सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग थलग ही रहता था ।उसे बच्चों के खेल तमासे में कोई रुचि नहीं थी।
तभी एक झटके से सुव्रत की तंद्रा टूटी।उसने देखा बस शहर के स्टैंड पर पहुँच चुकी है।यात्रीगण उतरने लगे थे।सुव्रत भी बस से उतर गया।
वहाँ से सीधा वो निशा जी के घर पहुँचा।और निशा से सारी बाते बताने के बाद मदद की आस में पूछा क्या आप अभी गुरुजी के पास चल सकती हैं?निशा ये सब सुनकर भयाक्रांत हो गई।उसने कहा "सुव्रत जी मेरी जिंदगी में ऐसे ही बहुत सारी परेशानियों के जंजाल हैं।मैं इसमे क्या मदद कर सकती हूं।मैं तो खुद बचपन से बुरे सपनों से परेशान हुँ पता नहीं कब उनसे मेरा पीछा छुटेगा।आपने एक और परेशानी लाकर मुझे उलझन में डाल दिया है"।
सुव्रत ने निशा को बताया "अगर उस पुस्तक को नष्ट नहीं किया गया तो हो सकता है आपके लिए वही एक बड़ी मुसीबत बन कर खड़ी हो जाये।हमसब मिलकर शायद उसका अंत कर सके"।
निशा डरी सहमी तो थी लेकिन और मौतों को रोकने के लिए न चाहते हुए भी तैयार हो गई।सुव्रत ने निशा से कहा मेरे साथ चलने के पहले आप अपने माता पिता को खबर कर दीजिए।ये सुनकर निशा की आंखों में आँसू आ गए।निशा ने बताया वह अनाथ है उसका बचपन अनाथालय में गुजरा है।बड़े होने पर अपने पैरों पर खड़ी हो कर अब यहाँ रहती है।अनाथ होने का दर्द सुव्रत से ज्यादा कौन समझ सकता था।लेकिन उसने इस बारे में कुछ बोलना उचित न समझा और निशा को अपने साथ लेकर चल पड़ा विंध्याचल पर्वत की ओर।
निशा की बातों ने उसके मन को कहीं न कहीं झकझोर दिया था।उसे भी तो अपने बचपन मे माता पिता का प्यार कहाँ नसीब हुआ था।उसने कई बार गुरुजी स इस बारे में पूछा भी था लेकिन वो कुछ भी कहाँ बताते थे।हमेशा ही कुछ न कुछ श्लोक सुना कर ध्यानमग्न हो जाते।सामान्य इंसान हो तो उनसे जिद भी किया जा सके लेकिन इनसे हठ का मतलब पत्थर पर सर पटकना ही था।
मैंने भी तो कितना दुख पहुँचाया उन्हें। कितनी कोशिस की थी इन्होंने मुझे तंत्र और योग की शिक्षा देने की लेकिन पता नहीं किस भावना से वसीभूत होकर मैं सब ठुकराता रहा।गुरुजी ने भी कभी बहुत गम्भीरता से कोशिश नहीं की।मुझे भेज दिया होस्टल पढ़ाई करने।कितना खुशनुमा माहौल था उस होस्टल का।सारे बच्चे अनुशासन में रहते हुए पढ़ाई करते परन्तु मुझे उस अनुशासन की कोई परवाह नहीं होती।जब जहाँ जाना चाहता वहाँ चला जाता।जो भी करना चाहता वो कर लेता।
इधर निशा अपने बचपन से आने वाले बुरे ख्वाब के बारे ने सोचे जा रही थी।कैसे बचपन से ही वो एक ही डरावना ख्याब देखती चली आ रही थी।पहले तो कभी कभी ये डरावने ख्वाब आते थे।अब तो हर दिन आने लगे थे।ख्वाब में उसे कोई अपना दर्द से तड़पता हुआ महसूस होता।लगता कोई उसे दूर से घुटी घुटी आवाज़ मे पुकार रहा हो।कभी कभी एक आकृति उसके पास भी चली आती जिसका शरीर सर से लेकर पाव तक जख्मी होता और वो उसे पुकारता रहता।निशा की हालत इस स्वप्न को देखकर बहुत खराब हो जाती थी।आज उसे लग रहा था शायद उसके सारे सवालों के जबाब उसे मिल जएँगे।
रात होने से पहले वे दोनों गुरुजी तक पहुँच चुके थे।गुरुजी ने निशा को देखा और अचम्भित रह गए बिल्कुल वही रूप वही रंग।उन्होंने दोनो को एक वेदी के किनारे बिठाया और कुछ तैयारियां करने लगे।
वेदी के चारो तरफ उन्होंने एक गोल घेरा बनाया और उन दोनों से कहा "कुछ भी हो जाये हवन खत्म होने से पहले इस घेरे से बाहर मत निकलना।यदि मैं भी कहूं तब भी नहीं।"
दोनो ने सहमति से अपना सर हिलाया।
गुरुजी ने पुस्तक के चारो ओर भी एक घेरा बनाया और कुछ हवन से शूरु कर दिया।थोड़ी देर हवन चलता रहा।अब गुरुजी ने जल का छिड़काव उस पुस्तक पर करने लगे।कुछ ही देर में वो पुस्तक खुद ही खुलने लगी।उसके अंदर से एक काला साया बाहर आया।उस काले साये ने क्रोधित होकर गुरुजी को फिर सुव्रत को देखा।उसके बाद जैसे ही उसकी नजर निशा पर गयी उसकी आँखों मे क्रोध की जगह वेदना ने ले ली।अब वह साया वही खड़े होकर किताब को पढ़कर निशा को सुनाने लगा।धीरे धीरे निशा को अपने पूर्व जन्म की याद आ गई।उसे उस कवि और उसकी लिखी कविताएं भी याद आ गई।प्रेमपाश में फंसकर निशा खड़ी हो गई और उस काले साये की तरफ बढ़ती गई।
गुरुजी और सुव्रत उसे आवाज़ लगाते रहे लेकिन निशा किसी सम्मोहन में बंधी सी उस काले साये के पास पहुँच गयी।गुरुजी अब असहाय हो चुके थे सबकुछ उनकी सामर्थ्य से बाहर हो चुका था।
उस काले साये ने निशा के सर पर हाथ रखा। निशा प्रार्थना की मुद्रा में बैठ गई।गुरुजी असहाय होकर ये दृश्य देख रहे थे।सुव्रत ने गुरुजी से कहा।गुरुजी मुझे तो इन तंत्र मंत्र में कभी यकीन तो रहा नहीं।कभी आपने अपनी शक्तियों का प्रयोग मेरे सामने किया भी नहीं।अब आपके बस का कुछ रहा नही तो अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।
गुरुजी ने सुव्रत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा और कहा पुत्र तुम्हारे लिए सदा से ये योग माया,यंत्र तंत्र तुक्ष ही थे।तुम्हारे पास होने मात्र से इन शक्तियों की ऊर्जा खत्म हो जाती है।सदियों से तुम इस धरा पर जीते आये हो हर बार तुम्हारा स्थान और पालन पोषण भर बदलता रहा है।तुम्हारे इस जीवन का उद्देश्य तुम्हारे सामने है जाओ और विजय हासिल करो।
सुव्रत को गुरुजी की कही कोई बात समझ तो नहीं आ रही थी पर वो निशा को बचाने कूद पड़ा।उस साये ने सुव्रत को जोर का धक्का दिया उस धक्के से सुव्रत बहुत दूर जाकर गिरा।गुस्से के वजह से सुव्रत की आंखे लाल हो गयी।उसने पुनः साये के पास आकर उसे रोकने की कोशिस करी।
साया निशा को छोड़कर अब सुव्रत की तरफ मुड़ गया उसने कुछ मन्त्र बुदबुदाते हुए सुव्रत को अपने आगोश में ले लिया।अब सुव्रत का दम घुटने लगा था।उसके सारे शरीर पर फफोले उग आए।जलन के मारे सुव्रत जोर जोर से चीख रहा था।
गुरुजी नम आंखों से ये सब देख रहे थे।उनहोने निशा को अपनी तरफ खिंच लिया और अपने पास उस घेरे में बिठा लिया।इधर सुव्रत के शरीर मे हुए फफोलो से आग निकलने लगी थी।दर्द के मारे सुव्रत चीखते हुए बेहोश हो गया।
काला साया अब निशा की ओर बढ़ रहा था।तभी पीछे से किसी के गुर्राहट की आवाज आई।गुरुजी ने देखा सुव्रत जलते हुये शरीर के साथ उठकर खड़ा हो गया था अब उसके शरीर की आग में बड़ी ऊंची ऊंची लपटे उठ रहीं थीं।
सुव्रत को अब इस आग से कोई भी तकलीफ नहीं हो रही थीं।गरजते हुये वो आगे बढ़ा और उस काले साये को पकड़कर अपनी देह में समा लिया।इसी के साथ उस कहानी की पुस्तक से निकलकर सारे शब्द सुव्रत के अंदर समा गए।
उस पुस्तक पर समय का असर होने लगा और गलकर वो मिट्टी बन गया।जैसे उसका कोई वजूद ही नहीं था।
सुव्रत वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।धीरे धीरे उसके शरीर मे लगी आग शांत हो गयी।गुरुजी ने उसके चेहरे पर जल छिड़का।जल छिड़काव करने के थोड़ी देर के बाद सुव्रत को होश आया गया।सुव्रत ने होश में आते ही इधर उधर देखना शुरू कर दिया।और उस साये को ढूंढने लगा।
पुत्र शांत हो जाओ सबकुछ अपनी नियति के अनुसार सम्पन हो चुका है।तुम थोड़ा आराम करलो।
सुव्रत को समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ।उसके बदन का हर हिस्सा लग रहा था जैसे तप रहा हो।बहुत जलन की पीड़ा हो रही थी उसे।गुरुजी ने उसे एक द्रव्य पीने को दिया।उसे पीते ही सुव्रत को राहत महसूस हुई।
निशा जो अब सामान्य हो चुकी थी सुव्रत को ऐसे देख रही थी जैसे ये कोई अजूबा हो।सुव्रत ने उसकी ओर देखा और पूछा "ऐसे क्या देख रही हो मेरी ओर?" निशा ने उसको देखकर पूछा "कौन हो तुम?"
सुव्रत के पास इस सवाल का कोई जबाब नहीं था।उसने गुरुजी की तरफ प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा।गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा "पुत्र समय आने पर तुम खुद समझ जाओगे।अभी के लिए इतना भर जान लो ।कालो के काल महाकाल के शापित अंश हो तुम।जिसे चराचर जगत में शाप मुक्त होने के लिए भेजा गया है।समय समय पर तुम्हारा रूप बदलता रहा है।कई जिंदगियां तुम जी चुके हो कई जिंदगी जीनी अभी बाकी है।किसी भी ज़िन्दगी में जब भी तुमसे कोई पाप होता है पुनः तुम्हे बचपन से शुरुवात करनी पड़ती है।श्राप के कारण ही भक्ति मार्ग अपनाकर तुम मुक्ति नहीं पा सकते।तुम्हे सांसारिक कष्ट सहकर ही मुक्ति मिलेगी"
सुव्रत मुस्कुराते हुए "गुरूजी आपने फिर वही राग छेड़ दी।कितनी बार मैंने कहा इस पूजा पाठ तंत्र मंत्र के तरफ मुझे खींचने की कोशिस ना करें।"
गुरुजी ने ये सुना और एक रहस्यमयी मुस्कान से बात खत्म कर दी।