छोटी तारा
छोटी तारा


तारा अपनी कक्षा में सबसे कम हाइट की लड़की थी, पूरी कक्षा उसको छुटकी छुटकी बोलकर चिढ़ाते थे। 1 दिन तारा जब स्कूल से घर लौटी तो देखा आंगन में मां ने बहुत सारे कपड़े सुखाए हुए थे, तारा गुस्से से लाल पीली हुए जा रही थी और उन कपड़ों को चीरते हुए आगे की और बढ़ रही थी, "मां मैं इतनी छोटी क्यों हूं ? सब मुझे स्कूल में चिढ़ाते हैं, मुझे भी बड़ा होना है मैं कब बड़ी होउंगी" तारा ने कहा। "पर तारा छोटे बच्चों को तो अक्सर ज्यादा लाड प्यार मिलता है, उतना बड़ों को नहीं मिलता" मां ने तारा को समझाते हुए कहा। "लेकिन मां छोटा होना भी तो अच्छी बात नहीं है ना, मुझे हमेशा कक्षा में आगे बैठना पड़ता है और परीक्षा के समय में भी मुझे आगे बैठा देते है, परीक्षा के समय भी मुझे सबसे आगे की सीट ही मिलती हैं, यह सब तो ठीक है कभी-कभी मुझे कुछ याद नहीं होता जो टीचर याद करने के लिए बोलते हैं तब भी सबसे आगे खड़ा होना पड़ता है, सबकी नजरों से बच के रहना पड़ता है सभी अध्यापकों के नजर सबसे आगे वाले बच्चे पर ज्यादा होती है"तारा ने मायूस होते हुए कहा। मां ने कहा "ठीक है हाथ में धोकर खाना खा लो फिर उसका उपाय सोचते हैं"। मां ने तारा को कुछ व्यायाम बताएं और उसको सुबह जल्दी उठने को कहा। तारा अपने कद को लेकर इतनी ज्यादा परेशान थी की वह ठीक से सो भी नहीं पा रही थी। 11 साल की तारा अपने भविष्य के के लिए इतना परेशान थी। तारा ने सुबह उठते ही व्यायाम, योग और कद बढ़ाने के लिए उसे जो भी जरूरी जानकारी मिली उसने वो सब किया। ग्यारहवीं कक्षा तक आते-आते इन कुछ सालों में उसका कद थोड़ा बढ़ गया था और अब कोई उसे परेशान भी नहीं करता था लेकिन वो फिर भी परेशान थी, ना जाने भविष्य की ऐसी कौनसी बात उसको खाए जा रही थी। छोटी तारा के ख्वाब तो बड़े बड़े थे। उसने अपने सभी ख्वाबों को एक डायरी में सजा रखा था, और हर दिन एक नया ख्वाब उसमें जुड़ जाता।
स्नातक की पढ़ाई खत्म होते होते तारा ने वो डायरी पूरी तरह से भर दी थी लेकिन कभी उसको खोल कर दोबारा पढ़ा नहीं। एक जाॅब इंटरव्यू के लिए जब तारा के पास फोन आया तो वो थोडा उलझी हुई महसूस कर रहीं थी, उसके मन में हजारों सवाल आ रहे थे, "क्या मुझे यहां जाना चाहिए ? वो खुद से ही बड़बड़ाने लगी और मां ने कहा "हां ज़रूर जाओ", "कुछ नया सिखने को ही मिलेगा"। "लेकिन मां उन्होंने मेरे कद को लेकर मजाक बनाया तो", मां ने कहा "तब तुम छोटी बच्ची थी", "बचपन में सब ऐसे ही होते हैं और वैसे भी अब तुम पहले से ज्यादा लंबी लग रही हो"। "सच्ची मां ? तारा ने खुश होकर मां को गले लगाकर कहा। "ठीक है फिर ये बताएं की कल क्या पहन कर जाऊ" ? तारा ने मां से पूछा। मां ने एक नीले सूट की तरफ इशारा करते हुए कहा "ये ज्यादा अच्छा लगेगा"। सुबह तैयार होकर नीला सूट पहन कर घर से निकल ही रही थी की उसको एक सुझाव आया की क्यों ना ऊंची एड़ी वाले सैंडल पहन लिए जाए थोडा लंबी लगूंगी। उसने सैंडल पहन तो लिए लेकिन चलने में बहुत परेशानी हो रही थी, फिर भी जैसे तैसे वो बस स्टैंड तक पहुंच ही गई। "ज़रा सुनिए समय क्या हुआ है ? एक अनजान आवाज ने उसका बैलेंस बिगाड़ दिया। "अरे अरे संभालिए खुद को" एक अनजान लड़के ने तारा को संभालते हुए कहा। "मैं ठीक हूं मैं ठीक हूं" तारा ने अपने सैंडल्स की ओर देखते हुए जवाब दिया। "मेरा नाम ध्रुव है मुझे एक जगह जल्दी पहुंचना है क्या आप मुझे समय बता देंगी ?
तारा ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा
"हम्म…छोटी सुई ८ पर और बड़ी सुई १० पर"। क्या क्या क्या ? ध्रुव ने हंसते हुए कहा "ये क्या छोटे बच्चों की तरह बता रही हो"। तारा को गुस्सा आ गया और वो वहां से थोड़ा दूर जाकर खडी हो गयी और बस का इंतजार करने लगी। वो अभी भी गुस्से में ध्रुव को घूर रही थी। बस आते ही ध्रुव झट से भाग कर बस में चढ़ गया लेकिन तारा को हाई हिल्स में चलने में परेशानी हो रही थी और ऊपर से इतनी भीड़। ध्रुव ने अपना बैग सीट पर रखा और बस से निचे उतर कर तारा के पास आकर खड़ा हो गया। "क्या मैं कुछ मदद करूं ? ध्रुव ने पूछा। "वैसे मैं भी समय ऐसे ही बताता था बचपन में, तुमने मुझे मेरा बचपन याद दिला दिया" ध्रुव ने मदद के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा। तारा हल्के से मुस्करा कर बस में चढ़ गयी लेकिन कहीं सीट नहीं थी। ध्रुव ने अपना बैग सीट से उठाया और कहा "तुम यहां बैठ सकती हो मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना इसलिए तुम बैठ जाओ"। "शुक्रिया" तारा ने अपना बैग संभालते हुए कहा।
अगले ही स्टाॅप पर उतरते हुए ध्रुव ने तारा को मुस्कुराती हुई आंखों से देखा। तारा भी अपने स्टाॅप का इंतजार करते हुए बार बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को घूर रही थी। "ना जाने इन हाई हील्स में मैं कैसे वहां तक पहुंच पाऊंगी" तारा ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा। ऑफिस पहुंच कर सबसे पहले जो तारा ने काम किया वो था, सबको अपनी हाईट से मैच करना कि कौन कितना छोटा है और वो सबसे कितनी लंबी लग रही है, "सैडल उतार दूं शायद यहां आई लड़कियां इतनी भी लंबी नहीं है" तारा ने फिर खुद से कहा। तभी अंदर से आवाज़ आती है, "मिस तारा कौन हैं यहां" तारा ने जवाब दिया "जी मैं" "आपको अंदर बुलाया है" मैनेजर ने कहा। अंदर पहुंचते ही जो देखा तो तारा खुद की हंसी रोक नहीं पा रहीं थी जैसे तैसे उसने खुद को संभाला और कुर्सी पर बैठ गई। बाॅस तारा से भी कम हाईट का एक नौजवान लड़का था। "तुम शायद किसी बात पर हंस रहीं थी, शायद मेरी हाईट पर" बाॅस ने कहा। "नहीं नहीं वो तो मैं बस कुछ याद आ गया था' तारा ने बात को घुमाते हुए कहा। "असुविधाजनक महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है" यहां इंसान को उनकी हाईट या रंंग रूप देखकर नहीं बल्कि उसकी काबिलियत देखकर रखा जाता है"मेरा नाम सात्विक है और ये मेरे पापा का कारोबार मैं पिछले ३ साल से संभाल रहा हूं, और मैं सबको एक दोस्त की तरह यहां चाहता हूं, किसी बाॅस की तरह हुकुम चलाना मेरे बस में नहीं" सात्विक ने कहा। तारा मन ही मन बहुत ज्यादा खुशी महसूस कर रही थी, सात्विक ने तारा के दस्तावेजों को देखा और ज्यादा सवाल ना करते हुए उसे अगले हफ्ते से काम पर आने को कहा। "थैंक्यू सर"तारा ने खुश होकर कहा। "मैंने कहा मेरा नाम सात्विक है और यहां कोई सर नहीं है" सात्विक ने कहा। तारा बाहर जाने लगी तभी सात्विक ने उसे रोकते हुए कहा "ये लंबा होने के लिए इन हाई हील्स की जरूरत नहीं है, जैसी हो वैसी रहो।