भूत का क़त्ल
भूत का क़त्ल


राजेश तेज़ी से राजमहल की तरफ़ चल रहा है, उसके दिमाग़ में कल खेले जाने वाले शिकार को लेकर योजनाएँ बन रही है। पिता जी से मिल कर सीधा गाँव निकल जाऊँगा। चतुर, दौलत, महेन्द्र सभी मिल कर शिकार पर जाएँगे। बंदूक़ को कन्धे पर टाँगे राजमहल के दरवाज़े पर खटखट की। खिड़की खोल उजागर सिंह ने पूछा " किधर भटक रहे हो मास्टर जी की बंदूक़ लिये "? सुबह आने वाले थे, दरवाज़ा खोलते हुए उजागर ने उसे घूरा। देर हो गयी चाचा, पिताजी किधर है ? गाँव निकलना है अभी। मास्टर जी, महाराज के पास गये हैं, टाइम लगेगा उनको, तब तक तू रसोई में जाकर कुछ खा ले।
बिल्लु महाराज ने राजेश को देखते ही गोला दाग दिया" किधर से आ रहे हो चिड़ीमार, बंदूक़ लटकाये, और चेहरा क्यों लटका है ?खाना खायेगा ना। "खाना तो महाराज जी खिला ही दीजिये, गाँव भी निकलना है, "सोचते हुये राजेश ने जवाब दिया।इतनी रात में ? भूत / प्रेत घूमते हैं रात में। खाना खा कर सो जाओ,सुबह जाना।
देखता हूँ ! खाना खा लूँ पहले, आप के हाथ का खाना रोज़ थोड़ी मिलता है।
जानकी ! बेटा, राजेश की थाली लगा दे। और तू हाथ पैर धो कर बैठ, महाराज ने कड़छा चलाते हुए बोला।
आराम से खा चबा / चबा कर, मास्टर जी बारह कोस रात में नहीं जाने देंगे, खाने का स्वाद तो ले ले। महाराज हँसते हुये बोले।
जाऊँगा तो मैं पक्का, बस बाबू जी आ जायें। राजेश ने हाथ धोते हुये महाराज की तरफ़ देखते हुये कहा। खाना तो लाजवाब, मज़ा आ गया।
बेटा ख़ानदानी ख़ानसामे के हाथ का खाना है, मज़ाक़ नहीं।
प्रणाम महाराज, मैं चलता हूँ।
ख़ुश रहो, रात में मत जाना।महाराज ने टोका।
जी! देखता हूँ।
उजागर चाचा ! पिताजी आये ?
अभी नहीं, आ बैठ, देख अंधेरा हो गया है, गाँव का रास्ता सुनसान है, सुबह चले जाना, रास्ते में बुरी शह घूमती रहती है।
सिर पर चढ़ गयी तो उतारे नहीं उतरती।फिर तांत्रिक / ओझा का फेर,लाल मिर्चों का धुआँ देते हैं, खाँस / खाँस बुरा हाल हो जाता है, साँस नहीं आती।
क्यों डरा रहे हो ?? भूत बंदूक़ से डरते हैं, यह है ना काली माँ साथ में, बंदूक़ दिखाते हुये राजेश हँसते हुये बोला।
जब आयेगा ना सामने, बंदूक़ धरी रह जायेगी, पैंट गीली हो जायेगी, मुँह बिचकाते उजागर बोला।लो मास्टर जी आ गये, जाओ।
प्रणाम ! राजेश ने मास्टर जी के पैर छुये।
चिरंजीवी भव। कैसे आये ?
वो ! चाचाजी ने कुछ रुपये मंगाये है ?
अच्छा, चल कमरे में चलते हैं।
यह, सम्भाल कर रख, बिहारी को दे देना।इस खटिया पर सो जा, मैं खाना खा कर आता हूँ।
मैं, अभी निकल जाता हूँ।राजेश धीरे से बोला।
दिमाग़ ख़राब है ! चुपचाप सो जा, तड़के निकल जाना।
मन मसोस कर राजेश लेट गया, नींद आ ही नहीं रही।
मास्टरजी, खाना खा कर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे, राजेश सोने का नाटक करते इंतज़ार करता रहा।
जैसे ही हुक्के की गुड़गुड़ाहट बंद हुयी, राजेश ने बिस्तर लपेटा ( यह सोच कर कि पिताजी सोचेंगे वो तड़के उठ कर गया ),बंदूक़ उठाई धीरे से दरवाज़ा खोला, बाहर आ जूता पहना, तेज़ी से गेट पर।
अरे मास्टरजी ने तुम्हें जाने दिया? उजागर हैरान था।
ज़रूरी काम है, चाचा ! गेट खोलो।
खोलता हूँ ! संभल कर जाना ! ऐसा भी क्या ज़रूरी काम निकल आया।
प्रणाम चाचा, चलता हूँ।
मन ही मन राजेश ख़ुश था ! तेज़ी से महल के बाहर निकला। अमावस की रात, अभी तो थोड़ी रोशनी थी।
रास्ते में क्या होगा ? एक झुरझुरी सी राजेश के पूरे बदन में आयी, कुछ नहीं होता मन को पक्का कर मानो ख़ुद से बोला।
झींगुरो की आवाज़ें आ रही थी, राजेश के जूतों की आवाज़ सन्नाटा तोड़ आगे बढ़ती जा रही थी।बार बार महाराज और उजागर की बातें याद आ रही थी।कभी हिलती डाली साया लगती, कभी जानवर की आवाज़ डराती। ऊपर से धुप्प अंधेरा। मौसम में हल्की ठंढक थी पर राजेश के पसीना निकल आया।
तीन चौथाई रास्ता पार कर एक नयी समस्या सामने आ गयी, पंडितों के शमशान से रास्ता गुजरता। क्या करूँ ? लम्बा रास्ता मतलब दो कोस और। हिम्मत करके शमशान का रास्ता चुना। लगभग भागते हुये राजेश ने रास्ता पार किया, अपने ही पैरों की आवाज़ से लगता मानो कोई पीछे पीछे आ रहा। गला सूख गया।
शमशान पार कर थोड़ा दम लिया, और आगे चल दिया।
घर के एकदम पास पंहुचा, तो कुत्ते भोंकने लगे। आधी रात होने को आयी, चाचा जी पूछेंगे तो क्या जवाब दूँगा ? राजेश सोच में पड़ गया, क्या करूँ ? क्या करूँ? हाँ यह ठीक रहेगा, रखवाली के लिये ख़ेत में जो मचान बनी है, वँही रात काट लेता हूँ। चाचा को बता दूँगा खाना खा कर आया था, तो रखवाली के लिये ख़ेत चला गया। यह ठीक रहेगा। राजेश ख़ेत की तरफ़ मुड़ गया। मचान पर चड़ खेस ओड़ लेट गया। थका होने से तुरंत आँख लग गयी।
किसी जानवर के चरने की आवाज़ से राजेश की आँख खुल गयी।फिर हिनहिनाहट, लगता है किसी की घोड़ी है, पलट कर राजेश सोने की कोशिश करने लगा।
तभी किसी ने मचान को हिलाया ! यह ज़रूर बहादुर है, इसको मेरे आने का पता लग गया, डराने की कोशिश कर रहा है, कर ले बेटा कोशिश।
तभी आवाज़ आयी ओह हो, ओह हो, ओह हो !
कोई नहीं ! निकाल ले आवाज़ें मैं नहीं डरूँगा।
फिर आवाज़ हूँ हूँ हूँ हूँ।
कोई नहीं कर ले सारे नाटक बहादुर तू आज।
राजेश को लगा कोई मचान की सीढ़ियां चड़ रहा है।आ ऊपर एक खींच कर लात मारूँगा इसके, सारी हेकड़ी निकल जायेगी। बड़ा आया डराने वाला।
राजेश एकदम तैयार, लात मारने के लिये। किसी ने उसके दाएँ पैर की ऐड़ी को पकड़ा, एक उँगली और अँगूठे से। राजेश का पूरा ज़िस्म सुन्न। वो गालियाँ देने की कोशिश कर रहा था। पर गूँ गूँ की आवाज़ ही निकल पा रही थी। उसको अपना शरीर भारी लग रहा था, जैसे कोई बोझा उसके ऊपर रखा हो।अब उसने ज़ोर ज़ोर से हनुमान चालीसा पड़नी शुरू की। धीरे धीरे शरीर हल्का होने लगा। मानो कोई बोझ हट गया। राजेश ने बंदूक़ उठाई और मचान से कूद गया।
चारों तरफ़ अंधेरा था। ख़ेत के बीचों बीच एक धुएँ की लकीर सी दिखाई दी। राजेश ने उसी को निशाना बना गोली चला दी।
एक ज़ोरदार गर्जना हुयी। आसपास की मचानो के सभी रखवाले जाग गये। बुजुर्ग चतर सिंह जो सबसे पास की मचान पर थे
बड़बड़ा रहे थे " क्या कर रहा है तू, इन लोगों पर गोली का असर नहीं होता। भूत /प्रेत गोली से नहीं मरते" पागल हो गया है तू।
उधर राजेश ने बंदूक़ छोड़ लाठी उठा ली, और चिल्ला रहा था, माँ का दूध पिया है तो सामने आ। आज या तो तुम नहीं ,या मैं नहीं।
सुबह राजेश से पहले, उसके कारनामों की ख़बर चाचा बिहारी के पास पन्हुच गयी। राजेश ने प्रणाम कर के रुपये उनको दिये। बिहारी बस इतना बोला" शाबाश, इसी दिन के लिये तुम्हें पैदा किया था कि तू भूत / प्रेतों पर गोली चला "।
वो चाचा !!! राजेश लाख कोशिश करता रहा, पर चाचा ने पूरे दो साल उस से बात नहीं की। ( इकलौते बेटे की जान की चिंता जो थी ) दो साल बाद एक दिन जब राजेश और बिहारी साथ / साथ ख़ेत में काम कर रहे थे तो बिहारी बोला " बेटा!! उस दिन बुरा तो मुझे बहुत लगा था, पर आराम हो गया, उस दिन से रखवाली करते कभी भी दबाव महसूस नहीं हुआ "। उस से पहले कम से कम हफ़्ते में एक बार ऐसा ज़रूर लगता था, मानो किसी ने शरीर पर बोझ रख दिया हो।
राजेश बस मुस्कुरा दिया ! एक लम्बी सी राहत की मुस्कुराहट। उसके चाचा जो वापिस मिल गए थे ।