Dr Jogender Singh(jogi)

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4.5  

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नूर (भाग १)

नूर (भाग १)

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पतली कमर पर कम से कम ज़ोर देकर चलना , हाथ हिला कर बोलना । जब चुप बैठती तो उसकी गहरी काली आँखें रूह तक झाँकती ।कुर्सी पर बैठने का अन्दाज़ ऐसा , मानो कुर्सी उसी को बिठाने के लिए बनी हो । लम्बी टाँगे यूँ बदन के वज़न को सम्भाल लेती , कि उसके बैठने में भी एक नशा नज़र आता । ज़्यादातर मैचिंग सूट पहनती , पर कभी कभार सफ़ेद लेग्गिंग के साथ कुर्ता पहन लेती ।गोरा रंग , चौड़ा माथा और माथे पर मध्यम आकार की मैच करती बिंदी । काला या गुलाबी पर्स । आवाज़ हल्की भारी पर सुनने में अच्छी लगती । नॉलेज के मामले में उसका कोई मुक़ाबला नहीं ।

"तो आज क्या बनाया आपने ? शेखर ने नूर से पूछा ।" शेखर मध्यम क़द का गेंहुए रंग का अधेड़ । सामने के ऊपर वाले दो दाँत बाक़ी दाँतो से बड़े थे । मुँह बंद रखता तो ठीक दिखता था , पर जैसे ही मुँह खोलता उसकी शक्ल औसत से ख़राब दिखने लगती ।शेखर को अपने वरिष्ठ होने का बहुत घमंड था । अपनी हांकने के लिए बे सिर पैर की बातें बनाता रहता । ख़ास कर नूर के सामने तो ज़रूर ।

“ बैंगन आलू और पराँठे" , नूर ने बेमन से जवाब दिया । तभी रक्षा आती दिखी , नूर ने चैन की साँस ली । रक्षा दोहरे बदन की गोल चेहरे वाली , गोरी लड़की । अभी नयी नयी शादी हुई है । होंठों पर लाल रंग की लिपस्टिक पोते रहती । पहलवान की तरह चलती , क़द साड़े पाँच फ़ुट से भी कुछ निकलता हुआ । रक्षा के बदन से पुरुषों की तरह एक ख़ास बदबू आती थी । नूर को रक्षा पसंद थी , क्योंकि रक्षा कभी भी किसी की चुग़ली नहीं करती थी । जो भी बात कहनी होती , सामने बोल देती ।नूर ने कई बार उसको इत्र , डीओ भेंट किए । पर रक्षा कभी भी डीओ या इत्र लगा कर नही आती । नूर अपने रूमाल में सेंट लगा कर आती । 

"कौन क्या बनाया , भई हमें भी बताओ ?" रक्षा ने अपना पर्स सामने पड़ी टेबल पर रखते हुए प्रश्न किया ।

नूर ने अपना रूमाल नाक के पास कर लिया । “ बैंगन / आलू की सब्ज़ी बनाई है । शेखर सर को वो ही बता रही थी ।" 

शेखर सर दूसरों के टिफ़िन की बहुत छानबीन करने लगे हैं , भाभी जी से मिलना पड़ेगा एक दिन । रक्षा ने एक ठहाका लगाया । वैसे भी जिसका नाम ही बेगुन हो उसको खाने का क्या फ़ायदा । 

शेखर चिड़ कर अपना काम करने लगा । “ देख लूँगा इस मोटी को एक दिन , ख़ुद ही कद्दू लगती है , जब देखो बीच में कूद जाती है । शेखर मन ही मन बुदबुदाया । “ चाय मँगा दूँ ? दिखावे के" लिए उसने रक्षा से पूछा । 

“ अभी नहीं सर , पहले थोड़ा काम कर लिया जाये ।" रक्षा ने अपनी ड्रॉर खोलते हुए कहा ।

नूर धीमे / धीमे मुस्कुराती हुई पूरे वार्तालाप का आनंद ले रही थी । मीठी सी मुस्कान ने उसे और भी खूबसूरत बना दिया था ।एकाएक कूलर का पंखा खड़खड़ाते हुए बंद हो गया । “ यह लो यह महाशय भी थक गये , मरो गर्मी में अब ।” रक्षा ने फ़ाइल को हिला कर ख़ुद को हवा देते हुए कहा । 

“बिशन , बिशन" , शेखर ने आवाज़ लगाई , "ज़रा स्केल से पंखे को चला दे ।" 

बिशन दुबला सा अधेड़ , जिसके सिर के अधिकांश बाल ग़ायब हो गये थे । बचे हुए बालों ने खोपड़ी के चारों तरफ़ एक घेरा बना लिया था । मानो एक उजाड़ पठार के चारों और पेड़ों की क़तार सलीके से रोप दी गई हो । पान मसाले को मुँह में दबाये बिशन ने लकड़ी के स्केल से पंखे को हिलाया । दो / तीन प्रयासों के बाद पंखा फिर से चल पड़ा । सभी ने चैन की साँस ली ———



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