रफ़्तार
रफ़्तार


सुकीर्ति ने फटी आँखों से आँगन में लेटे हुए वासु को देखा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। पिछले हफ़्ते ही पलसर मोटरसाइकल ले कर आया था। कितना खुश था वासु। हालाँकि विनय ने वासु को तेज न चलाने की हिदायत दी थी। पर वासु को तेज मोटरसाइकल चलाना पसंद था। सुकीर्ति की खामोशी से वासु को और भी बल मिलता। सुकीर्ति नहीं चाहती थी कि उसके बच्चे विनय पर चले जायें, दब्बू बन जाए। विनय ने कभी भी नहीं जताया कि उसकी पीठ में रीड़ की हड्डी है, वो हर मौक़े पर समझौता करता चला। चाहे पैतृक जायदाद के बँटवारे की बात हो या पड़ोसी से कोई मसला। आख़िर में सुकीर्ति को ही हक़ के लिए लड़ना पड़ता। विनय की सादगी और दब्बूपन सुकीर्ति को दुनिया का सबसे बड़े दोष लगते। हालाँकि विनय में बहुत सारी अच्छी बातें भी थी, मसलन कोई नशा न करना, हर तरह का खाना पका लेना। बच्चों के लालन / पालन में विनय का बहुत योगदान था। हाई स्कूल तक दोनों बेटे वासु और रजत विनय को अपना आदर्श मानते थे पर हाई स्कूल पास करते ही विनय बेटों के लिए ओल्ड फ़ैशंड, दब्बू बाप बन गया। और इस बदलाव में सबसे बड़ा हाथ सुकीर्ति का था। वासु ने बी॰ कॉम में दाख़िला ले लिया था। ज़िद्द करके पलसर ली थी, विनय के विरोध को वासु, रजत और सुकीर्ति ने दरकिनार कर दिया। लाल रंग की गड़गड़ाते हुए इंजन वाली मोटरसाइकल देख सुकीर्ति फूली न समाई। पूरे मोहल्ले में घूम / घूम कर बताया।
“ सुकीर्ति देख, वासु बहुत तेज बाइक चलाता है। उसको समझाया कर गाड़ी तेज न चलाये, देख रही हो आजकल कितने ऐक्सिडेंट हो रहें हैं ? स्मिता ने एक दिन सुकीर्ति को समझाने की कोशिश क
ी।
“ यही तो उम्र है, चलाने दे। तीन / चार साल में शादी हो जायेगी। फिर तो चलेगा धीरे / धीरे। छोड़ तू यह बता “ यह गुप्ता का क्या लोचा है ? सुना है खाना बनाने वाली रखी है वो भी चौबीस घंटे के लिए, घर में ही रहेगी।
“ सुना तो है !!जवान है और खूबसूरत भी। बुड्डा मज़े कर रहा है। आँख दबाते हुए स्मिता बोली।
सारी जायदाद हड़प जायेगी और बुड्डे को ज़हर दे कर मार देगी वैसे भी कोई आगे / पीछे है नहीं गुप्ता का। अक़्ल पर पत्थर पड़ गए बुड्डे की। एक दिन धोखा खायेगा। सुकीर्ति बेपरवाही से बोली।
अरे नहीं, तीन बेटियाँ है गुप्ता की, अब जब वो आयेंगी तब मज़ा आयेगा। अपनी उम्र से छोटी उम्र की मम्मी देख कर बौखला जायेंगी। पर सुन, वासु को बोल ज़्यादा तेज मत चलाया करे, कल यह बता रहे थे मंदिर वाले मोड़ पर टकराते / टकराते बचा। हेलमेट भी नहीं लगाया हुआ था। स्मिता की आवाज़ में चिंता थी।
“ सब्ज़ी लेने गया था चौराहे तक, हेलमेट कैसे लगाता ? समझा दूँगी कि ज़्यादा तेज मत चलाया करे। सुकीर्ति ने स्मिता का मन रखने के लिए कह दिया। वो अपनी सबसे अच्छी सहेली को नाराज़ नहीं कर सकती। स्मिता की जगह किसी दूसरे ने यह बात बोली होती तो सुकीर्ति उसको दिन में तारे दिखा देती।” ठीक चलती हूँ “ सुकीर्ति अपने घर की तरफ़ चल दी।
“ काश मैंने वासु को समझाया होता, तो वो आज ज़िंदा होता ? सुकीर्ति स्मिता से लिपट कर रोने लगी। “ वासु बाइक की तेज रफ़्तार से नहीं मरा, वो मेरी तेज और अंधी रफ़्तार से मरा है स्मिता। मैंने उसे मार दिया। स्मिता रोते / रोते सुकीर्ति की पीठ सहलाती रही।