Dr Jogender Singh(jogi)

Children Stories

4.0  

Dr Jogender Singh(jogi)

Children Stories

हाजमे की गोली

हाजमे की गोली

3 mins
282


" खा लिया सबने ? जो खाना खा लिया वो मेरे कमरे में आ जाए " दादा जी ने डकार लेते हुए घोषणा की। 

मटन बना था, पतीला भर कर। पूरे परिवार ने जम कर मटन / रोटी, मटन / चावल खाया। पूरे सत्रह सदस्यों का परिवार।

अपने भारी बदन को तख़्त पर स्थापित कर दादाजी ने एक पीली प्लास्टिक की शीशी निकाल ली।काले अक्षरों से अंग्रेज़ी में कोई नाम लिखा तो था , पर हम लोग उस नाम को कभी भी जान नहीं पाये ,क्योंकि उसके काफ़ी अक्षर समय के साथ धूमिल हो गये थे।शीशी में गोलियाँ भरी रहती , काले रंग की लम्बी / लम्बी गोलियाँ। शीशी मानो कामधेनु थी , उसकी गोलियाँ कभी ख़त्म ही नहीं होती।जब कभी भी नान -वेज खाना बनता, प्रत्येक सदस्य को एक काली गोली खानी ही होती , यह दादाजी का अघोषित नियम था।

" यह लो , पंकज के हाथ में दादा जी ने एक गोली रख दी। यह ले पानी , यहीं खा। 

" मैं बाहर जाकर खा लूँगा " पंकज ने गिलास रख दिया।

" खा लेना ज़रूर से, किशन चाचा ने चेताया। 

" जी पिता जी, खा लूँगा, पंकज हाथ में गोली दबाए बाहर निकल गया।

मैं जानता था, पंकज को वो काली गोली बिल्कुल पसंद नहीं थी। वो कई बार गोली फेंकने की असफल कोशिश कर चुका था।

मैंने अपनी बारी आने पर पानी से गोली गटक ली। एक / एक कर सारे लोग गोली खा लिए। मैं पंकज को ढूँढने लगा, मुझे पता था वो कहाँ मिलेगा। मैं अनार के पेड़ की तरफ़ चल दिया। अनार के पेड़ के पास पत्थर पर पंकज मुँह फुलाए बैठा था।

" पता नहीं इस बुड्डे को गोली खिलाने का कितना शौक़ है, बैठ जाता है शीशी लेकर, सामने खाओ। इसकी शीशी ही ग़ायब कर दूँगा एक दिन।

पर तूने फेंक दी ना ? क्यों किलस रहा है ? मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा। 

कहाँ फेंक दी ? शिवानी दीदी ने देख लिया फेंकते हुए, उठा कर खानी पड़ी। शिवानी दीदी बुड्डे की बहुत बड़ी चम्मची है। पंकज का चेहरा लाल पड़ गया। बड़ी आई, अभी दादा जी को बता दूँगी। 

पर गोली से हाज़मा ठीक रहता है। मैंने उसे समझाना चाहा।

ख़ाक हाज़मा ठीक रहता है ? पंकज ने अनार की झुकी डाल पर लगा मटकीनुमा फूल नोच डाला। भैंस की गोली देता है बुड्ढा, काली और बड़ी, गले में अटक जाती है। 

" बड़ी तो बहुत है , निगलने में परेशानी होती है। मैंने उसका मन रखने के लिए कह दिया। हवा के झोंके के साथ अनार की डालियाँ हिलने लगी। ठण्डी हवा ने पंकज का ग़ुस्सा कम कर दिया। " लगता है इस बार खूब अनार फलेगा ? पंकज के चेहरे पर ख़ुशी दिखाई पड़ी। 

हाँ यार , पेड़ लदा पड़ा है , बस आँधी न आये। यह इतना बड़ा गड्ढा क्यों बनाया गया इसकी जड़ों के पास ? मैंने अनार के पेड़ के एकदम नीचे बने बड़े से गड्ढे को देखते हुए प्रश्न दागा। हालाँकि जवाब मुझे मालूम था।

तू मूर्ख है क्या , यह अदरक को सूखा कर रखने के लिए बनाया गया है ,इस से अदरक सौंठ बन जाता है , फिर वो जल्दी ख़राब नहीं होता। पंकज को मेरे अज्ञान ने एकदम सामान्य कर दिया।

बड़ी देर तक हम दोनों वहीं बैठे बातें करते रहे।

दूसरे दिन सुबह मैं और पंकज हलके होने जंगल गए। 

पॉटी करने के बाद पंकज ने मुझे अपने पास बुलाया। " देख , हाज़मे की गोली, उसने अपनी की हुई पॉटी की तरफ़ इशारा किया। सचमुच पॉटी के किनारे चिपकी साबुत काली गोली मानो हम दोनों पर हँस रही थी। 

मैं और पंकज भी मुँह चिड़ाती गोली को देख कर हँस पड़े।

काली भैंस वाली गोली, हाज़मे की गोली, जो ख़ुद ही नहीं घुली। मैं और पंकज ज़ोर / ज़ोर से चिल्लाते, फिर हँसते। 

दादा जी की मृत्यु तक यह सिलसिला चलता रहा। हम दोनों नान - वेज खाने के बाद दूसरे दिन अपनी / अपनी की हुई पॉटी में अक्सर हाज़मे की गोली ज़रूर ढूँढ लेते। साबुत गोली। फिर शुरू हो जाता हम दोनों का नारा, हाज़मे की गोली , काली भैंस वाली गोली ———-।



Rate this content
Log in