Jisha Rajesh

Horror

3.8  

Jisha Rajesh

Horror

अवंतिका

अवंतिका

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  अनाया और साक्षी ‘शांति निकुंज’ गर्ल्स हॉस्टल में रहकर बी० ए० की पढ़ाई कर रहीं थीं। वो दोनों हॉस्टल के एक ही कमरे में रहा करती थीं। एक रात, वो दोनों हॉस्टल की मेस से खाना खाकर अपने कमरे को लौट रहीं थीं की तभी साक्षी की नज़र हॉस्टल के कमरा नंबर 104 पर पड़ी।

"ये कमरा कब से बंद पड़ा है ?" साक्षी ने कमरे के दरवाज़े पर लगे ताले को देखते हुए कहा। "यहाँ कोई रहने क्यों नहीं आता ?"

"ये कमरा वार्डन किसी को नहीं देंगीं।" अनाया ने तेज़ी से कदम बढ़ाये।

"भला ऐसा क्यों ?" साक्षी भी तेज़ी से चलकर अनाया के साथ हो ली।

"क्या तुम्हे नहीं पता, क्यों ?" अनाया ने अपने कमरे की लाइट ऑन की और पलंग पर जाकर बैठ गयी।

"नहीं तो," साक्षी ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और अनाया के पास जाकर बैठ गयी।

"आज से पांच साल पहले, उस कमरे में अवंतिका नाम की एक लड़की रहती थी।" अनाया की आँखों में खौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था। "एक रात, अचानक उसकी मौत हो गयी। उसकी मौत इतने रहस्यात्मक तरीके से हुई थी की सब दंग रह गए।"

"क्यों, ऐसा क्या हुआ था उसके साथ ?" जिज्ञासा के मारे साक्षी के रोंगटे खड़े हो गए थे।

"उसकी लाश, उसके कमरे से लगे वाशरूम के बाथटब में मिली थी। सबको यही लगता था की उसकी मौत पानी में डूबने की वजह से हुई थी। लेकिन पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट जब आयी तो पता चला, उसके फेफड़ों में तो एक बूँद पानी तक नहीं गया। उसकी मौत तो दम घुटने की वजह से हुई थी। मगर, उसके कमरे के सारी खिड़कियां और दरवाज़े अंदर से बंद थे। मतलब कोई बाहर से उसके कमरे में दाखिल नहीं हुआ। और, कमरे में वो अकेली रहती थी। पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट में ऐसी बात सामने नहीं आयी जो उसकी मौत की वजह पर रोशनी ड़ाल सके। किसी को समझ नहीं आया की आखिर उसके साथ क्या हुआ था।"

"फिर ?" साक्षी ने भौहें सिकोड़ ली, "पुलिस ने मामले की छान-बीन नहीं की क्या ?"

"पुलिस की तहकीकात की कहानी तो इससे भी अजीब है," कहते हुए अनाया के चेहरे का रंग उड़ने लगा। "आज तक, पुलिस के कईं अफसरों ने इस मामले की तफ्तीश की है। मगर कोई भी अवंतिका की रहस्यमयी मौत की गुत्थी को सुलझा नहीं पाया। पुलिस की तहकीकात अब भी जारी है।"

"क्या उनके हाथ भी कोई सबूत नहीं लगा ?" साक्षी ने बड़ी कौतुकता से अनाया के चेहरे का रंग बदलते देखा।

"जैसे ही ये सुनने में आता की पुलिस के किसी अफसर के हाथ कोई बड़ा सुराग लगा है या तो उसकी किसी दुर्घटना में मौत हो जाती या फिर केस की तहकीकात को बीच में ही छोड़ अपना तबादला कहीं दूर करवा लेते।"

"ये तो सच-मुच बड़ी विचित्र बात है।" साक्षी सोच में पड़ गयी। "लेकिन, ये तो बताओ, वार्डन ने वो कमरा क्यों बंद करवा दिया ?"

"कहते हैं, वो कमरा हॉन्टेड है।" अनाया धीरे से फुसफुसाई जैसे मानो कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और भी हो, जो उनकी बातें सुन रहा हो। "उस कमरे में अवंतिका की आत्मा, अब भी मौजूद है।" 

"चल, झूठी !" साक्षी ठहाके मारकर हंसने लगी, "ये आत्मा - वात्मा कुछ नहीं होती। तुमने ही तो कहा न की पुलिस की तहकीकात अब भी चल रही है। इसी वजह से वार्डन ने वो रूम बंद करके रखा होगा ताकि उस कमरे में मौजूद सबूतों के साथ कोई छेड़े-खानी न करे।"

"अरे ! मैं सच कह रही हूँ, साक्षी।" अनाया ने साक्षी के हाथों को कसकर पकड़ लिया। "मेरी ममेरी बहन, वाणी दीदी, ऐसी परनोर्मल चीज़ों पर रिसर्च कर रही हैं। वो पिछली बार जब छुट्टियों में घर आयीं थीं तो उन्होंने मुझे ऐसी बहुत सारी घटनाओं के बारे में बताया था जो उनके रिसेर्च के दौरान सामने आयीं। ऐसे वाक़िया अजीब ज़रूर लगते हैं, मगर हैं बिलकुल सच। मैं तुझे एक चीज़ दिखती हूँ जो मैंने वाणी दीदी के बैग में से चुराई थी।"

"क्या ? तूने चोरी की," साक्षी चिल्लाई, "मगर क्यों ? तुझे शर्म नहीं आयी अपनी ही बहन की चीज़ें चुराते हुए ?"

"तो, तुझे क्या लगता है," अनाया ज़रा अकड़कर बोली, "मैं अगर शराफत से मांगती तो वो मुझे दे देती ?"

"ऐसा कौन सा कोहिनूर चुराया है तूने ?" साक्षी ने अनाया को अपने बैग में कुछ ढूंढ़ते हुए देखा।

"देखो, ये तो कोहिनूर से भी नायाब चीज़ है।" अनाया ने लकड़ी की बनी त्रिकोणाकार कोई चीज़ निकालकर उन दोनों के बीच पलंग पर रख दी।

"ये क्या है ?" साक्षी ने बड़ी कौतुकता से उसे देखा।

"इसे प्लेनचिट कहते हैं।" अनाया ने बड़े गर्व से साक्षी को ज्ञान दिया। "वाणी दीदी कहती हैं की इसके ज़रिये हम आत्माओं से बात कर सकते हैं।"

"फेंकू कहीं की !" साक्षी, अनाया का मज़ाक उड़ाकर हंसने लगी।

"शर्त लगाने को तैयार हो ?" अनाया ने चुनौती दी। "मैं ये बात साबित कर सकती हूँ।"

"कैसे ?"

"इस प्लेनचिट के ज़रिये अवंतिका की मौत का सच पता करके।"

"लेकिन, वो कैसे ?"

"देखो," अनाया साक्षी के बिलकुल करीब आकर बैठ गयी और धीरे से बोली, "हम अवंतिका के कमरे में जायेंगे और उसकी आत्मा को बुलाएँगे। इस प्लेनचिट के ज़रिये उसकी आत्मा से हैं बात करेंगे और ये पता लगाएंगे की उसकी मौत कैसे हुई थी ?"

"लेकिन वो कमरा तो हमेशा बंद रहता है और चाबी वार्डन के पास है।" साक्षी ने शक ज़ाहिर किया, "फिर हम उस कमरे के अंदर कैसे जायेंगे ?"

"तुम वार्डन को बातों में उलझाए रखना," अनाया ने प्लान बनाया, "मैं मौका देखकर वार्डन के ऑफिस में घुस जाऊँगी और साबुन पर उस कमरे की चाबी की छाप ले लूँगी। फिर अपने कॉलेज के पास जो चाबी बनाने वाले की दूकान हैं न, वहां से कल एक नयी चाबी बनवा लेंगे।"

"ये ठीक रहेगा।" साक्षी बड़े उत्साह से बोली।


अगली रात, अमावस की रात थी। रात के खाने के बाद, हॉस्टल में सब सो चुके थे। सारे कमरे की बत्तियां, हमेशा की तरह दस बजे के बाद बुझा दी गयी थी और पूरा हॉस्टल अँधेरे की चादर ओढ़े खड़ा था। करीब बारह बजे, अनाया और साक्षी उठे और कमरा नंबर 104 की तरफ चल दिए। चारों तरफ सन्नाटा था। कभी - कभी हॉस्टल के गेट के बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़, इस सन्नाटे को चीरते हुए आती थी। अनाया ने अपनी नयी चाबी से कमरे का ताला खोला और वो दोनों कमरे के अंदर आ गए। अनाया ने मेज़ पर एक मोमबत्ती जलाई और प्लेनचिट उसके पास रख दिया। प्लेनचिट के पास ही एक कागज़ भी रख दिया। फिर वो दोनों, वहीँ बैठ गयीं और मन - ही - मन, अवंतिका की आत्मा को पुकारने लगीं। तभी ज़ोरों से आंधी चलने लगी और मोमबत्ती बुझ गयीं। कमरे में रखी हर एक चीज़ कांपने लगी जैसे मानो भूकंप आया हो। अनाया और साक्षी डर गयीं और दोनों ने एक - दूसरे का हाथ कसकर पकड़ लिया। थोड़ी देर में सब शांत हो गया और आंधी -तूफ़ान भी बंद हो गया। तूफ़ान के शांत होते ही बुझी हुई मोमबत्ती खुद -ब - खुद जल उठी। उसकी रोशनी में अनाया ने देखा की प्लेनचिट के पास रखे कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था। उसने साक्षी को वो कागज़ दिखाया और वो दोनों साथ मिलकर पढ़ने लगी। उस पर कुछ यूँ लिखा हुआ था -


"मेरा नाम अवंतिका है। मैं, बी० ए० फाइनल ईयर की स्टूडेंट हूँ। मुझे मेरी क्लास में पढ़ने वाले अमित नाम के लड़के से प्यार हो गया था। अमित भी मुझे बहुत प्यार करता था। पढ़ाई खत्म होते ही हम एक - दूसरे से शादी करना चाहते थे। वर्षा मेरी सबसे अच्छी सहेली थी। लेकिन, एक दिन मैंने उसे अमित से बहुत अजीब तरह से बर्ताव करते देखा। वो अमित के बहुत करीब आने की कोशिश कर रही थी। उसकी आँखों में अमित के लिए प्यार साफ़ नज़र आ रहा था। मुझे वर्षा की इस हरकत का बहुत बुरा लगा। लेकिन, अमित ने उसकी ये ग़लतफहमी दूर कर दी। हमने तीनों ने आपस में बात करके आपसी मन-मुटाव दूर कर लिया और फिर से एक-दूसरे के दोस्त बन गए। कम- से - कम, मुझे तो यही लग रहा था।


  एक रात, मैं सोने जा रही थी की हॉस्टल के मेरे कमरे की खिड़की पर किसी ने दस्तक दी। मैंने खिड़की खोली तो देखा की वर्षा मिठाईयों का डब्बा लिए, मेरे कमरे की खिड़की के बाहर खड़ी है। उसने बताया की उसकी शादी तय हो गयी है और उसने मुझे मिट्ठाई खिलाई। वो ये खुशखबरी मुझे सुनाने के लिए बेक़रार थी इसलिए रात को ही पीछे के रास्ते से हॉस्टल आ गयी। मैंने उसे अंदर आने को कहा तो उसने मना कर दिया। वो बोली की रात बहुत हो गयी है और उसे वापस घर जाना है। उसके जाने के बाद, मैंने खिड़की बंद कर दी। मैं वर्षा की शादी की बात को लेकर बहुत खुश थी और उसके लिए एक अच्छे और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हुए मैंने उसकी दी मिठाई खा ली। लेकिन, वो मिठाई खाते ही मेरा दम घुटने लगा और मेरी मौत हो गयी। वर्षा ने उस मिठाई में ज़हर मिलाया था। वो मुझे अपने रास्ते से हटाकर अमित को पाना चाहती थी। उसकी शादी की बात भी झूठ थी। मेरी मौत के बाद उसने अमित से सहानुभूति दिखाकर उसे अपने प्यार के जाल में फाँस लिया है। उसकी बहुत जल्द अमित से शादी होने वाली है। लेकिन, ऐसा नहीं होना चाहिए। उसने मेरे साथ विश्वासघात किया हैं और उसे इसकी सजा ज़रूर मिलनी चाहिए।"


"हाँ, अवंतिका," वो काग़ज़ हाथ में लिए अनाया बोली, "तुम्हे न्याय ज़रूर मिलना चाहिए।"

"अगर हम ये काग़ज़ पुलिस को दिखा दे तो वो वर्षा को गिरफ्तार कर लेंगे, हैं न ?" साक्षी ने कहा।

"नहीं, साक्षी," अनाया परेशान थी, “पुलिस ऐसे सबूतों को नहीं मानती। उनको यही लगेगा की हम दोनों ने मिलकर कोई मनगढंत कहानी लिख दी है।"

"तो अब हम क्या करेंगे ?" साक्षी ने पूछा।

"मुझे वर्षा से मिलना होगा।"



  जब से हॉस्टल की दो लड़कियों ने वर्षा को फ़ोन कर अवंतिका की मौत के बारे बताया था, तब से वर्षा थोड़ी परेशान थी। लेकिन, फिर भी, उसे ये विश्वास था की जैसे उसने आज तक हर अड़चन को अपने रास्ते से हटाया है, उसी तरह इन दो लड़कियों को भी ठिकाने लगा देगी। उसने उन्हें मिलने के लिए अपने फार्महाउस बुलाया था। वर्षा ने अपनी घडी देखी।


"अब तक तो उन लड़कियों को आ जाना चाहिए था।" वर्षा खुद से बोली और फिर चहल - कदमी करने लगी।


तभी दरवाज़े की घंटी बजी और वर्षा ने जल्दी से दरवाज़ा खोल दिया।


"अपना जुर्म कुबूल कर, खुद को कानून के हवाले कर दो, वर्षा," अनाया ने वर्षा से कहा, "वार्ना तुम्हे बहुत दर्दनाक सज़ा मिलेगी।"


"अरे जा, जा !" वर्षा बड़े घमंड से बोली, "आज तक कोई पता कर पाया है की अवंतिका की मौत कैसे हुई। फिर तुम क्या बिगाड़ लोगे मेरा ? मैंने कोई सबूत ही नहीं छोड़ा। मैंने उसे ऐसा ज़हर दिया था जो कुछ ही घंटों में खून से गायब हो जाता है। इसीलिए, तो पोस्टमॉर्टेम में पकड़ा नहीं गया। अवंतिका की मौत की तहकीकात कर रहे, जिस पुलिस अफसर ने भी मेरा राज़ जानने की कोशिश की, उसे मैंने या तो डरा - धमकाकर या रिश्वत देकर अपने रास्ते से हटा लिया। और जो सच सामने लाने की ज़िद्द पर अड़े थे, उन्हें मैंने मार डाला। अब तुम्हारा भी यही हाल होगा।" कहकर वर्षा ने अपनी बैग में से पिस्तौल निकाल ली।


वो लड़कियों पर गोली चलाने ही वाली थी की ज़ोर से आँधी चलने लगी। हवा के साथ धूल - मिट्ठी भी उड़कर अंदर आ गयी। वर्षा का दम घुटने लगा। वो ज़ोर - ज़ोर से खांसने लगी।

"खिड़कियां बंद कर दो," वर्षा ने किसी तरह अनाया से कहा, "मुझे धूल से एलर्जी है। मेरा दम घुटने लगता है।"


  अनाया ने खिड़कियां बंद करने की कोशिश की मगर हवा इतनी तेज़ थी की साक्षी और अनाया दोनों मिलकर भी खड़िकियाँ बंद नहीं पाए। फिर भी वो दोनों कोशिश करते रहे। थोड़ी देर बाद, आंधी रुक गयी और दोनों ने मिलकर खिड़कियां बंद कर दी। फिर उन्होंने मुड़कर जब वर्षा को देखा तो उनके होश उड़ गए। वर्षा फर्श पर पड़ी हुई थी। दम घुटने की वजह से उसकी मौत हो गयी थी ठीक उसी तरह से, जैसे आज से पांच साल पहले उसने अवंतिका की हत्या की थी। 



 




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