फौजी का सम्मान
फौजी का सम्मान


सूरज काफी देर से चहल कदमी कर रहा था। उसकी नजरें सड़क पर लगी हुई थी। वह डाकिए का इंतजार कर रहा था। सूरज को फौज में भर्ती हुए 6 महीने ही हुए थे। वह इतने सालों में कभी भी अपने घर से दूर नहीं रहा था । लेकिन, फौज में भर्ती होते हैं उसकी पहली पोस्टिंग श्रीनगर में हुई। ऊपर से आज रक्षाबंधन का दिन था। उसके जीवन में यह पहला मौका था, जब ऐसे शुभ अवसर पर वह अपने परिवार से दूर था। उसकी छोटी बहन, पूर्णिमा ने उसके लिए राखी भेजी थी। सूरज बड़ी बेकरारी के साथ अपनी राखी का इंतजार कर रहा था।
काफी समय तक प्रतीक्षा करने के बाद भी जब डाकिया ना आया तो थक कर सूरज वहीं जमीन पर बैठ गया। पास ही में, सूरज के बड़े अफ़सर मेजर शर्मा बैठे हुए थे। सूरज की बेकरारी देखकर, उन्हें हँसी आ गई। मेजर शर्मा को खुद पर हँसते हुए देखकर सूरज ज़मीन से उठकर खड़ा हो गया और उनके पास चला गया।
"मैंने फौज में भर्ती होकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी, सर।" सूरज से बड़े दुखी मन से कहा। "अगर फौज में भर्ती होने की जगह, कहीं और नौकरी कर ली होती, तो आज मैं अपने परिवार के साथ होता। मेरे जीवन में आज तक ऐसा कोई रक्षाबंधन नहीं गया, जब मेरी बहन ने मेरी कलाई पर राखी ना बांधी हो। मुझे नहीं लगता आज मुझे उसकी राखी मिल पाएगी।"
"थोड़ा धीरज रखो, सूरज।" मेजर शर्मा ने समझाते हुए कहा।
मेजर के कहने की देर थी कि डाकिया आ गया। उसने सूरज को एक छोटा सा पैकेट पकड़ाया जिसमें उसकी बहन की भेजी राखी थी। सूरज उसे पाकर बहुत खुश हुआ। फिर वह डाकिया मेजर शर्मा के पास गया। उसने शर्मा को एक बहुत बड़ा बक्सा दिया और वहां से चला गया। मेजर ने वह बक्सा खोला तो उसमें ढेर सारी राखियां थी। यह देखकर सूरज बहुत हैरान हो गया।
"आप की कितनी बहने हैं, मेजर साहब?" सूरज ने हैरान होकर पूछा।
"मेरे दो छोटे भाई हैं।" मेजर ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो फिर इतनी सारी राखियां आपको किसने भेजी?" सूरज को कुछ समझ ना आया।
मैजर शर्मा ने उस बक्से मैं से एक कागज़ का टुकड़ा निकालकर सूरज को दिया। उस पर कुछ यूं लिखा हुआ था, "मेरे फौजी भाइयों के लिए।"
मेजर शर्मा उस बक्से में से राखियों को एक - एक कर बाहर निकालने लगे। सूरज ने देखा की वह राखियां देश के विभिन्न प्रांतों से अनेक महिलाओं ने भेजी थी।
"अब बोलो, सूरज," मेजर शर्मा ने पूछा, "क्या भी तुम्हें अब भी ऐसा लगता है कि तुमने फौज में भर्ती होकर कोई ग़लती की है? तुम एक बहन के प्यार के लिए तरस रहे थे, ना? देखो, तुम्हें देशभर से कितनी बहनों ने अपना प्यार भेजा है। यही तो है, एक फौजी का सच्चा सम्मान।" मेजर शर्मा ने अभिमान से सर उठा कर कहा।
सूरज को अपनी कही बात पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने मेजर शर्मा के चरण छूकर उनसे माफ़ी मांग ली।