रंग हुनर के
रंग हुनर के
आज चेतन को गए पूरे 3 महीने हो चुके हैं। इतने दिनों में मैं आज पहली बार हिम्मत जुटाकर उसके कमरे में दाखिल हुई हूं। कितने अरसे से उसका कमरा बंद पड़ा है। सोचा आज उसके कमरे की सफ़ाई ही कर दूं। कमरे के अंदर गई तो देखा सारी चीज़ें वैसी ही पड़ी हुई हैं जैसा वो छोड़कर गया था। उसकी अलमारी खोली तो उसके कपड़ों से आती उसकी महक, मेरे अंदर गहराई में उतर गई। दिल में दर्द सा उठा और आंखों में आंसुओं की एक परत जम गई।
लेकिन तभी मैंने उसकी अलमारी में कुछ ऐसा देखा जो आज तक मुझे कभी नज़र नहीं आया था। कपड़ों के ढेर के नीचे, उसने बहुत सारी बेमिसाल पेंटिंग्स छुपा रखी थी।
"चेतन इतनी अच्छी पेंटिंग्स बनाया करता था?" मुझे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ।
मैने उन पेंटिंग्स को अलमारी से निकाला और घर के पासवाली दुकान पर फ्रेम करवाने ले गई।
"बहन जी, आप कहो तो मैं इन पेंटिंग्स को एग्जिबिशन में भेज दूं?" दुकानदार ने पूछा। "वहां एक बहुत बड़ा कंपटीशन होने वाला है। सारी दुनिया देखेगी आपके बेटे के हुनर को।"
मैने हामी भर दी।
कुछ दिन बाद मुझे दुकानदार का फोन आया, "बहन जी, आपके बेटे की पेंटिंग को पहला पुरस्कार मिला है। जजेस चाहते हैं कि वो कल अपना इनाम लेने आये।"
"अब वो कभी नहीं आयेगा।" मेरा गला भर आया।
"क्यों?"
"हमने उसे मार डाला !"
"क्या?"
"हमारी महत्वाकांक्षाओं के बोझ तले दबकर उसने आत्महत्या कर ली। हम उसे डॉक्टर बनना चाहते थे। पर वो बन न सका। इस पर उसके माता पिता, अध्यापको, परिजनों और इस समाज ने उसे निकम्मा और नकारा करार दिया। इस दुख से आहत होकर उसने खुद अपनी जान ले ली। पर उसके जाने के बाद सारी दुनिया ने जाना कि वो कितना होनहार था !"