अपना अपना हक़
अपना अपना हक़
नौकरी,घर -परिवार और बच्चों के साथ सोशल सर्कल को मैनेज करना कोई इजी काम नही है और ये बात किसी भी वर्किंग वुमन से ज्यादा भला कौन बता सकता है?
थोड़े ही दिन पहले उसके पापा की डैथ हुई थी। ऑफिस,घर,और पापा का hospital में admit होना।वह किसी चक्करघिन्नी की तरह भागते जा रही थी और ऐसे ही एक दिन पापा चले गए फिर कभी भी वापस न आने के लिए..
आज वह पापा की डैथ के एक हफ्ते बाद माँ के पास गयी थी।माँ खाली खाली निगाहों से बस उसे देखे जा रही थी।उसके लिए माँ को ऐसे देखना बड़ा painful लग रहा था।पापा का जाना माँ के लिए वाकई एक सदमा था।
दोनों भाई भाभी अपनी अपनी planning कर रहे थे।अपने बिज़नेस और घर को dispose off करना वग़ैरा वग़ैरा।
उसके कान एकदम खड़े हो गए।माँ की नजरों का खालीपन अब समझ में आ गया।वह तो पापा के जाने के साथ उन खाली निगाहों को relate कर रही थी।लेकिन यह क्या?एक हफ्ते के अंदर ही भाईयों ने घर को बेचने की बात कर डाली।इतना ही नही बल्कि टोकन मनी भी एडवांस में ले लिया।
उसने भाई से पूछा,"माँ कहाँ रहेगी?" भाई ने जल्दी से कहा,"मेरे साथ वहाँ रह लेगी।'" वह कहने लगी,"सिंगापुर में?"
हाँ, कुछ दिन मेरे साथ और कुछ दिन छोटे के साथ वहाँ दुबई में।हम कैसे इन्हें यहाँ अकेले रहने देंगे भला?"
उसकी निगाहें उस घर की छत से होती हुई दीवारों की तरफ गयी।दीवारों के कान होते है।सच मे इस बात का आज उसे अहसास हुआ।हमेशा ही मायके की खिलखिला कर हँसने वाली दीवारें पता नही क्यों आज उसे फ़ीकी फ़ीकी और उदास लग रही थी।
वह कुछ बोलना चाह रही थी की पति उसे रोकते हुए कहने लगे,"अरे छोड़ो ये सब।यह इनके घर का मसला है।Let them handle it."
पति की बातों से एक पल में ही वह घर उसे एकदम अजनबी सा लगने लगा।जैसे वहाँ की कोई भी चीज पर उसका कोई हक़ नही रहा हो।
पापा के जाने का बाद और पति के 'उनके घर' का मामला कहते ही पता नही क्यों ये घर और यहाँ की एक एक चीज उसे परायी लगने लगी।
एकदम माँ की निगाहें उसकी निगाहों से टकरा गयीं।उन निगाहों में एक रिक्वेस्ट थी।शायद वह इसी घर मे रहना चाहती थी।
पहली बार उसे खुद को किसी दायरों में बँधे होने का अहसास हुआ।
लेकिन फौरन ही वह भाई भाभीयों के साथ साथ पति के सामने तन के खड़ी हो गयी।माँ के कन्धे पर हाथ रखके वह firm voice में कहने लगा,"माँ जब तक चाहे इस घर मे या जहाँ उनका दिल चाहे वहाँ रहेगी।पापा को गए हुए हफ्ता भी नही हुआ और आप दोनों भाई इस घर को बेचने की बात करने लगे हो।माँ के जज्बातों का थोड़ा तो ख़याल करते।"
माँ ने उसके हाथ को कस के पकड़ लिया और दोनों भाईयों और बहुओं की तरफ देख कर हामी भरी।
आज उसे लगा कि बचपन मे पापा ने जो हक़ की लड़ाई जीतने का जज़्बा सिखाया था आज उस जज्बें की जैसे जीत हो गयी.......