अफसोस
अफसोस
दो वर्गमित्र बारावीं की परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद अपने-अपने योग्यता, परिस्थिति और रुची के कारण विज्ञान के पढ़ाई के लिए अलग- अलग विज्ञान की शाखाएं चुनते हैं। उनके शहर में सायंस कॉलेज नहीं होता हैं, इसलिए अपने सुविधा के हिसाब से वे अपने गांव से विपरीत शहरों का चयन करते हैं। लेकिन दोनों रोज रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। दोनों की गाड़ियाँ लग-भग एक ही समय पर उन्नेस-बीस के अंतर से आती थी। लेकिन वे विपरीत दिशाओं में चलती थी। अरुण गणित का छात्र था। और उसका मित्र मॅक्रोबॉयोलॉजी का छात्र था। आना-जाना रोज का उनका काम होता था। इसलिए उनके पास पहिले जैसा समय मुलने-जुलने, इधर –उधर की हाँकने, और गप्पे मारने के लिए नहीं होता था। फिर वे रोज जाते समय व्यस्ततम समय में से वक्त निकाल कर रेलवे स्टेशन पर नियमित मिला करते थे। जिसकी गाड़ी पहिले आ जाती थी वो बॉय-बॉय करके जले जाता था। वे दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे। अभी कॉलेज शुरू हो के बहुत समय हो चुका था। दोनों की अपने-अपने कॉलेज में अच्छी जान पहचान हो चुकी थी। वे दोनों जब समय मिलता था, अपने –अपने कॉलेज के मजेदार किस्से एक दूसरे को सुनाते थे। इन्हीं किस्सों का आनंद उठाते हुये खुशी से लोट-पोट हो जाते थे। कभी कभार जब रेलगाड़ी में चेकींग वगैरह हो जाती थी तो उनके मित्र चेकींग कर्मियों को कैसे बेवकूफ बनाते थे। उसके भी किस्से बड़े चाव से साझा करते थे। अभी दोनों को रेल का क्रिया-कलाप, उसकी कार्य-प्रणाली, बिना टिकट से बाहर निकलने के चोर रास्तों की तपशिल जानकारी और अनुभव हो चुका था। वे किसी भी विषम परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए सक्षम हो चुके थे।
अरुण के मित्र ने एक-दो बार उसके कॉलेज में आने की बातों-बातों में अपने मित्र से इच्छा जाहिर की थी। एक दिन दोनों रेलवे स्टेशन पर आये थे। अरुण के मित्र ने देखा की उसकी गाड़ी बहुत ही देरी से चल रही हैं। उसका कॉलेज जाना ही बेकार हैं। वो अपना सा मुँह लेकर खड़ा था। उसने कहाँ आज तो मैं घर वापिस जाऊँगा !। ये सुन कर अरुण चौक गया था। एक पंथ दो काज, उसने सोचा की वे दोनों बहुत समय से खुलकर नहीं मिले थे। फिर अरूण ने उसे अपने कॉलेज में चलने का लालच दिया था। उसने अरूण से कहाँ। अरे तेरा कॉलेज हैं। मैं आकार क्या करूंगा?। अरुण ने अपने दोस्त से मजाकिया अंदाज में कहाँ अरे आज तू गणित पढ़ ले। अरे मुझे गणित आता तो तुझे छोड़ के इस कॉलेज में किस लिए मरने जाता। तेरे साथ में बड़े शहर के कॉलेज का लुप्त उठाता। अरुण हँसते हुये बोला चल आज तेरे लिए कॉलेज को बुट्टी मारते हैं। अधजल गगरी छलकत जाय। उतने में उसकी गाड़ी आई थी। दो यार बड़े शान से गाड़ी में अपने बाप की गाड़ी समझकर सवार हो गयें थे। अन्य मित्र उसके दोस्त को देखकर बोले, हुजूर आप दोनों कहाँ हमला करने जा रहे हैं। जवाब देते हुये अरुण बोला, जब गिदड़ की मौत आती हैं, वह शहर की तरफ रुक करता हैं। अरे इसे जरा मेरे कॉलेज की तफरी करा के लाता हूं। दोनों स्टेशन आने पर झुंड के साथ ही टिकट चेकर के सामने से बाहर निकले थे। हमेशा के स्टुडंट समझकर नियमित रेलवे पास चेक नहीं किया करते थे। वैसे वे बिना टिकट वालों को उनकी शारीरिक भाषा से तुरंत अपने अनुभव के आधार पर पहचान लिया करते थे।
अरुण अपने मित्र के साथ कॉलेज में पहुंच चुका था। उसके वर्ग के मित्र उसके साथ नये अजनबी मित्र को देखकर अचंभित हो उठे थे। उसके इशारों से वे समझ गये थे कि वो उसका लँगोटी मित्र हैं। उन्होंने उनका वहां पहुंचने पर स्वागत किया था। नये मित्र को, मित्रों ने अपना कॉलेज, ग्रंथालय, प्रयोगशालाएं, खेल मैदान, बगीचा और सांस्कृतिक मंदिर भी दिखाया था। उसका मित्र इतना भव्य कॉलेज देखकर बहुत प्रसन्न हुआ था। अभी उसकी सभी के साथ जान-पहचान हो चुकी थी। सभी का हलका नाश्ता करने मूड हो गया था। तभी अरुण ने अपने दोस्त आगमन के शान में हल्के-फुल्के दावत की पेशकश की थी। जिसे दोस्तों ने बहुमत के साथ ध्वनीमत से स्वीकार किया था। अरूण सभी को ले के फिर से स्टेशन पहुंचा था। वहां के दाल-बड़े बहुत ही प्रसिद्ध थे। सभी को दाल-बड़े और चाय का सेवन कराया गया था। सभी खुश हुये थे। बहुत समय बीत गया था। सभी ने निर्णय लिया की आज कॉलेज को नये दोस्त के आने के खुशी में छुट्टी मारी जाएगी !।वे सभी हमें छोड़कर अपने-अपने घर चले गये थे। हम भी अपने गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों इधर –उधर की हाँक रहे थे। तभी देखा की नागपुर जानेवाली गाड़ी आनेवाली हैं। दोनों के दिल में एक ही बात चल रही थी कि नागपुर जाकर राजेश खन्ना की नई फिल्म देखी जाए !। दोनों ने अपनी बात एक साथ कही और वे नागपुर जाने के लिए गाड़ी में प्रवेश कर चुके थे। वहाँ से भी कई स्टुडंट नागपुर आन-जाना करते थे। हम उनके साथ हो गये थे। सामान्य तौर पर सभी गाड़ियाँ सिंग्नल न मिलने के कारण लोहा पुल के पास धीरे हो जाती थी। ज्यादातर आन-जाना करने वाले रेलवे पास धारक वही उतर जाते थे। हम भी उतरने लग थे। तभी गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी। इधर कुआँ उधर खाई थी। फिर भी हम दोनों ने साहस करके घिसटते हुये उतर गये थे। सही सलामत उतरने के कारण राहत की सांस ली थी। वहाँ से हम सिनेमा टॉकिज गये। टिकट निकाला था। अभी फिल्म शुरु होने में कॉफी समय था। समय बिताने के लिए पास के बड़े हॉटेल में गये थे। दोपहर का समय था। ज्यादा गर्दी नहीं थी। वहाँ के दही-बड़े बहुत विख्यात थे। दोनों की दही-बड़े खाने की ख्वाहिश थी। दही-बड़े का सेवन और साथ में चाय पीये। बिल लेकर हम कैश काउंटर पर पहुंचे थे। हमने एक दो बार कैश काऊंटर पर उपस्थित सज्जन को पैसे देने का प्रयास किया था। लेकिन वो महत्वपूर्ण बातें फोन करने पर आमादा था। हमें फिल्म शुरू हो जाने का डर सता रहा था। बिल के पैसे छोड़ के हम वहाँ से निकल गये थे। फिल्म शुरू ही होने वाली थी कि हम अपने स्थान पर स्थानापन्न हो गये थे।
दोनों मित्र फ़िल्म का आंनद ले रहे थे। मध्यांतर होने पर मैं अपने सर के बाल बनाने के लिए कंगी निकाली तो देखा की उस होटेल का बिल हमारे पास ही हैं। जिसे, हमें उसे काउंटर पर देना था। फिर हम दोनों के दिमाग़ में एक शैतानी आईडिया ने जन्म लिया था। फिल्म छुटने पर उस पर अमल करने का मन दोनों ने बना लिया था। दोनों सज-धज के फिर उसी हॉटेल में गये थे। योजनानुसार हम कॅश काउंटर के पीछे एकदम अंत में खाली टेबल पर जा बैठे थे। वहाँ बैठकर हमने ऐसे-ऐसे स्वीट आयटम मंगाये जिसको हमने कभी खाया नहीं था। इच्छा तृप्ति होने पर एक चाय मंगाई थी। उसे बिल भी लाने को कहाँ था। वेटर हमारे पास खडा था। उसे लगा की पेमेंट होने पर कुछ टिप मिलेगी। हमने उसे बॉथरुम किधर हैं पुछा था। उस के बताने पर हमने बिल उठाकर जेब में रखा और उसे टिप देते हुये बाथरुम की और निकले पड़े थे। वेटर ने दुसरे ग्राहक संभाल लिए थे। वो टिप मिलने से बहुत खुश था। बाथरुम जाकर हमने अपने आप को ताजा-तवाना किया और बालों को संभाला था। अरुण के दोस्त ने पुराने बिल को सामने के जेब में रखा था। काऊंटर पर जाकर पुराना बिल का भुगतान किया था। गर्दि होने के कारण काउंटर वाला बिल की राशी लेकर धन्यवाद देकर जल्दी –जल्दी ग्राहकों से बिदाई ले रहा था। हम सिना चौवडा करके अपने आप को किसी नटवरलाल से कम नहीं आक रहे थे। हम दोनों दोस्त रेलवे स्टेशन पहुँचे थे। किसी आकस्मिक चेकिंग में पकड़े जाने के संभावना से बचने के लिए, हमने दो प्लॅटफर्म खरीदे थे। गाड़ी आने का इंतजार कर रहे थे।
हम सुबह से किये कारनामों के लिए एक दूसरे के तारीफ के पुल बांध रहे थे। उतने में ही हमारी सवारी गाड़ी आ चुकी थी। हम ने पुरी गाड़ी का बाहर से मुआयना किया था।
जिस बोगी में रोज के आने-जाने वाले सवार थे। उसी बोगी के पास खड़े थे। जैसे ही गाड़ी छुटने के संकेत मिले हम दोनों उसी बोगी में जाकर उनके पास बैठे थे। उनके कारण हम सुरक्षित थे। कभी चेकर आने पर सभी एक साथ एम.एस.टी कह देते थे। वो चेकर चेला जाता था। अंत में हमारी गाड़ी अपने स्टेशन पर पहुंची थी। दोनों तिसमार खां की तरह शान से उतरे और अपने- अपने घर पहुंचे थे।
उस वक्त हम जो कर रहे थे वह हमारा जवानी का जोश था। जवानी के जोश में दोनों ने बहुंत गलत काम अपने जीवन में किये थे। अब पछ्ताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। उस दिन अगर गलती से रफ्तार पकड़ी ट्रेन के पहिये में अगर चले जाते तो जिंदगी भर के लिए विकलांग की जिंदगी जीना पड़ता। हॉटेल की मिठाइयां खाकर हमने हराम की खाने की आदत लगा सकते थे। अगर रेलवे चेकिंग में पकड़े जाते और पुलिस केस बनता तो जिंदगी भर के लिए किसी सरकारी नौकरी पाने के लिए अवैध हो जाते। आज उस बात का हम दोनों को सही माने में तहे दिल से अफसोस हैं।