ज़ज़्बात
ज़ज़्बात
जान जाते गर
नियत तुम्हारी
तुम्हे इस कदर
भी चाहा ना होता
आह सी ख्वाहिश
दफ़न करनी ही
थी एक दिन
तो जुर्रत ना करते
की देखे ख़्वाब ऐसा
तन्हाई ही मुक्कदर
जो इतना जान पाते
दिल लगाने की हमने
ना की होती कोशिश
बस अब अश्कों को
यूँ ही है बहता छोड़ा
काबू उन्हें हम करले
वो जज़्बा ढह गया है
यादे तो अब भी
बेवक़्त आती जाती
पर अब तस्सवुर की
कोई आस ही नहीं है।