धुंधले चश्मे सी जिंदगी
धुंधले चश्मे सी जिंदगी
धुंधले चश्मे सी है ज़िंदगी,
कभी किसी कोने से देखूँ ,
सारा जहान दिखता है,
कभी पूरी कोशिश के बाद,
इंसान का चेहरा नहीं,
कभी पोंछता हूं तो कभी दिखता नहीं,
कभी कसी से समय पुछता है,
कोई बताता नहीं,
और समय किसी के लिए रुकता नहीं,
धुंधले चश्मे सी है ज़िंदगी,
कभी इधर तो कभी उधर,
कभी ख़ुद को संभलता हूं,
कभी भागता रहता हूं,
क्यूं छुपी हो तुम,
क्यूं नज़र से बेरुखी हो तुम,
ज़िन्दगी में इतना कोहरा है,
की ना दो कदम आगे बढ़ कर रहे हैं,
ना पीछे छूटे हुए दिन नजर आते हैं,
बस तेरा साथ होता अगर,
कुछ गम दूर हो जाते ,
धुंधले चश्मे सी है ज़िंदगी।
