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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Others

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Others

मेरे लगते हो

मेरे लगते हो

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इतने रंगीन दिखते हो 

प्रेम के शौकीन लगते हो

आंखों में ताप भरे हो 

शायद तुम मंजिल लगते हो

एक बार को सत्य भी दम तोड़ दे 

ज़र्रे ज़र्रे में बह रहा इंसानियत का लहू

तुम तो कृष्ण, मुहम्मद, 

मसीह, गुरु नानक से झलकते हो 

क्या कहूं अब ऐ भींगे सारस से जज़्बात

सामान्य तो बता रहे पर मुझे तुम ईश्वरीय योजना लगते हो 

ये स्वप्न तो नहीं पर क्यूं मुझे 

इतना अल्प लगते हो 

कमज़ोर भी नहीं तुम 

हष्ट पुष्ट स्वेत बदन तुम्हारा 

खाये पीये घर से लगते हो 

अच्छा एक बार सोचने दो 

कहीं तुम मेरे गुज़रे कविताओं से तो नहीं हो 

शब्द शब्द में एक जिंदा आवाज़ है 

हां हां तुम मेरे लगते हो । 


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