यह तू क्यों न समझ पाया
यह तू क्यों न समझ पाया
यह तू ! क्यों नहीं समझ पाया।
सब कुछ छोड़ कर आई सबको अपना बनाया।
तेरे हर रिश्ते नातों को मैंने निभाया फिर यह तुम क्यों ना समझ पाया।
कभी कुछ मांगा नहीं हर परिस्थितियों में तेरा साथ निभाया फिर यह तू क्यों ना समझ पाया।
इंसान हूं, मैं भी समझती हूं।
हर रिश्ते को, तेरा हर जगह साथ निभाया।
जो मुझे पसंद नहीं फिर भी करके दिखाया, माना कि यह तेरा घर पर मैंने भी इसे अपना बनाया। फिर ये तू क्यों नहीं समझ पाया।
बीमार होने पर भी उठ खड़ी होकर मैं करती रही हर कामों को पर अपना दुख कभी ना तुझे बताया।
करती रही सेवा सभी की पर जब मेरा नंबर आया तो तू यह क्यों ना समझ पाया।
हद है ! क्यों लिखा हुआ है सिर्फ औरतों के ही नसीब में कि जब तक तू स्वस्थ है यह तेरा घर है, यह रिश्ते तेरे हैं
सिर्फ मशीन की तरह चलते जाना ही तेरा काम,है दु:ख हमें भी होता है।
बीमार हम भी होते हैं सिर्फ एक तू ही ना कभी समझ पाया।