यह कैसा राजा है
यह कैसा राजा है
यह कैसा राजा है
अंधा है, लूल्ला-लंगड़ा,
बहरा राजा है
शायद बहरा है,
तभी इसे प्रजा की
चीत्कार सुनाई नहीं देती या
फिर अंधा भी है
उस धृतराष्ट्र की तरह
जिसका पुत्र मोह
पूरे राज्य का सर्वनाश
कर गया !
यह तो कुर्सी की माया से लिप्त है
इसे प्रजा की व्यथा दिखाई नहीं देती
और सुनो! लूल्ला लंगड़ा भी है
चिपका रहता है कुर्सी से, उठ नहीं सकता
जनता के साथ खड़ा हो नहीं सकता
फिर क्यों विकलांग को राजा बना रखा है ?
राज्य में त्राहिमान मचा रखा है
क्या करे ! किसी बड़े मंत्री चापलूस की
चापलूसी करके आया है
चप्पल चाट भी रहा है और चाटकर आया है !
प्रजा की कमाई से इसके महल बन रहे है
गरीब जनता की छत के पत्थर हिल रहे है
आज देश का तभी तो पतन हो रहा है
भ्रष्टाचार का पौधा फल फूल रहा है
ये एक अच्छा काम करके गिनाते हैं
हज़ार बुरे काम कर बचकर निकल जाते हैं
तो अब क्या होगा ?
बस, हम भी मेहनत कर रहे हैं
और किस्मत के धनी लोगों से लड़ रहे हैं
तकदीर का लिखा भी बदलता है
राजा भी कभी रंक बनता है !
तब तक तो सबको यही कहना है
अँधा, लूल्ला लंगड़ा, बहरा
ऐसे ही राजा को सहना है !
ऐसे ही राजा को सहना है !