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वक़्त

वक़्त

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वक़्त ने धीरे-धीरे भर दिया,

उस घाव को।

नजरें फिर ताकने लगी है,

अनजानी राह को।


आँखों का समंदर,

सूख गया है क्या।

या फिर दिल ही नहीं चाहता,

अब और रोने को।


मन में कोई गम नहीं,

जी चाहता है अब,

फिर खुलकर हँसने को।


जो है मेरे पास उसे,

ना छोडूंगी खोने को।

ना जाने वक़्त फिर छीन ले,

मौका पाने को।


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