वक़्त से..
वक़्त से..
सबके भरने का दम भरता है मेरे भी तो भर...
कुछ जख़्म तकलीफ़ देते हैं, उनका कुछ कर !
तेरे गुज़रने पर सुना है सब कुछ भूल जाता है,
शायद वो सदमे भी जो दिल में बना चुके घर !
बुरा बन कर तो बहुत राब्ता रख लिया दोस्त,
किसी रोज़ अच्छा बन कर निकल आ इधर !
यह क्या ज़िद है कि चला गया तो आता नहीं,
कोई प्यार से बुलाए तो कभी पलट आया कर !
हर ग़लत बात पर लोग तेरा ही नाम लेते हैं,
क्यों इतने इल्ज़ाम लिए फिरता है अपने सर ?