वो शामें
वो शामें
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कुछ बातें रह गई अधूरी
जो कहनी थी तुमसे
कुछ सुननी थी तुम्हारी
जाने कहां गई वो शामें
जहां मुकम्मल हुई थी
ये इश्क की कहानी
वो शामें जहां चाय संग
अफसानों का सिलसिला
यूं चलता था
जहां रूठने-मनाने के बीच
प्यारी तकरारें होती थी
जहां मैं-तुम से निकल कर
'हम' पे बातें ठहरती थी
जाने कहां गई वो शामें
जहां खिलखिलाती हँसी की गूंज से
गहराई थी प्यार की गहराई
चलो फिर मुकम्मल करें वो शामें
जहां अपनों के संग अपनों के बीच
कभी ना खत्म होने वाली शामें!!!