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Swati K

Romance

4  

Swati K

Romance

इक अनुभूति.......

इक अनुभूति.......

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प्रेम फुहारों से बंजर हृदय का भीगना 
गोधूलि की मद्धिम लाली में हृदय का सुर्ख हो जाना
बंसी के मधुर सुरों सा हृदय का गुनगुनाना 
ओस की बूंदो का अंतस को छू जाना

मानो सूखी दूबों में हरियाली आना
मानो गरजती बरसती अठखेलियाँ करती 
बौछारों का स्पर्श और धरा का मुस्कुराना 
मानो स्थिर हृदय का फिर स्पन्दित होना
बिन श्रृंगार स्त्री का अलौकिक सौंदर्य निखरना......

सत्य है या स्वप्न या अंतस के भावों को 
शब्दों में पिरोती कवि की कल्पना......
हां अकल्पनीय......
यथार्थ को चित्रित करता गहन प्रेम

प्रेम में होना......संयोग या नियती 
हर्षित ,अभिभूत हृदय की सुंदर अनुभूति
प्रेम के रंगों में डूबी स्त्री अपलक निहारे प्रिये को 
विस्मय सी स्वयं से पूछे.......

पुष्प अर्पण करुं प्रियतम या सृजनहार को
सांवरे की कृति तुम......
प्रेम से पुष्पित पल्लवित हृदय का राग तुम 
भोर का श्रृंगार ,सांझ ढले दिये की जोत तुम
रोम रोम में रचे मेरे सर्वस्व मेरे प्रेम तुम......स्वाती 







 

 


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