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Poojaa S

Romance

4  

Poojaa S

Romance

जलेबियां

जलेबियां

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चौक पर छोटी सी 

हर रोज़ दुकान सजाती थी,

जिस में बैठी दिन भर वो

जलेबियां बनाती थी,

मैं दूर बैठा बस उसको 

देखता ही रहता था

और बीच-बीच में वो

अपनी लटों को हटाती थी,

इक मासूम सी मुस्कान 

चेहरे पे उसके होती थी,

जिसे देख कर मेरी भी

बाछें खिल जाता करती थीं।


घर चलाने को मुझे

परदेस कमाने जाना था,

जाने से पहले मां ने

मुझसे जलेबियां मंगवाया था।


सोचा इस बहाने उसको

अलविदा कह आता हूं,

पर पहुंच उसकी दुकान पे मैं

पेड़ सा जम जाता हूं,

कोस रहा था, हंस रहा था, 

उस पल अपनी हालत पर,

भूल गया ये भी मैं

कि आया क्यूं था दुकान पर।


तभी नज़रों को नीचे रख

पूछा उसने क्या दे दूं?

सुन कर मीठी बोली उसकी

सोचा के बस अब कह दूं।


मुंह खोला और बोला

तो‌ निकला, जलेबियां और आप


सुन कर वो मुस्का उठी

नज़रें तब भी नीची थीं,

एहसास हुआ कि कहने में

मैंने कुछ तो ग़लती की।


लेते हुए जलेबियां नज़रें 

उससे टकरायीं थीं,

इक पल को ही दोनों कि 

नज़रें बस कुछ यूं

मिल पाईं थीं,

जैसे नदी कोई जाकर

गहरे सागर में समाई थी।


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