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Poojaa S

Abstract

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Poojaa S

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अंजानी, अकेली

अंजानी, अकेली

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देख रही थी दुनिया को

मैं कुछ दूर से,

सब देख रहे थे मुझ को

न जाने क्यूँ घूर के ।


अंजानी, अकेली सी मैं

डरी हुई थी उनसे,

क्या था ऐसा खास जो मैं

अलग हुई थी उनसे ।


अहसास कुछ घबराहट का था

कुछ अजीब बेचैनी भी

देख के हथेली भी

कुछ गीली सी महसूस हूई ।


रख हाथ दिल पर सोचा,

जैसी भी हूँ ठीक हूँ उनसे

अलग खडी हूँ जब,

तब खास हूँ उनसे।


देख रही थी दूर...



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