नस नस में गूंज
नस नस में गूंज
नस नस में गूंज है उस लम्हे की,
रूह में कहीं आज भी छाप है उस लम्हे की,।।
मेरी पायल के घुंगरू टूट कर बिखरे थे,
एक बार नही हजारों बार तेरे शहर खत लिखे थे,
मेरी खातिर ना सही अपने वादे की खातिर आजा,
मेरा अधूरा है श्रृंगार आज भी इसे पूरा कर जा,।।
नस नस में गूंज है उस लम्हे की,
रूह में कहीं आज भी छाप है उस लम्हे की,।।
तू जिस्म से रूह का हिस्सा बन गया,
देखते देखते तो हमारी पहली और आखरी ख्वाहिश बन गया,।।
मेरी झोली में हजारों इम्तेहानो का बसेरा है,
मेरी नसों में बस एक तेरा ही नाम बहता है,।।
नस नस में गूंज है उस लम्हे की,
रूह में कहीं आज भी छाप है उस लम्हे की,।।
इश्क रूहानी और उसपर ये सादगी,
तू वो हसरत है जिसपर हमने अपनी जिंदगी वार दी,
जीने की वजह और सांसों की जरूरत तुम बन गए हो,
इन नसों में गूंजता कोई नगमा बन गए हो,।।
नस नस में गूंज है उस लम्हे की,
रूह में कहीं आज भी छाप है उस लम्हे की,।।
रोग कहूं या संजोग कहूं,
इसे कोई नाम दू या यूं ही बेनाम रहने दूं,
कलम जो थामी तेरा ज़िक्र करना जायज़ हो गया,
इस दिल में ही नही तू नस नस का हिस्सा बन गया ।