आओ कोई शाम गुज़ारें
आओ कोई शाम गुज़ारें
आओ कोई शाम गुज़ारें फ़क़त एक दूसरे के लिए
कुछ पल बस चाँद निहारें हम एक दूसरे के लिए
खिलते हुए गुलाब की खुशबू बसा ले अपनी रूह में
बर्ग-ए-गुल से सजा ले आशियाँ ख़्वाब सुनहरे के लिए
भिगोकर चेहरा बारिश में तुम शाम को छत पर जो आओ
नमी फिर अपनी आँखों में सजा लूँ नज़र तेरे के लिए
कोई आज़माइश ना करना तुम हमसें दूर जाने की
बस छोड़ जाना कुछ नफ़स ज़ीस्त के हमारे के लिए
पूछता हूँ जो तेरा नाम तो फ़क़त इतना ही कहना ‘वेद’
कुछ बातें छोड़ दो सनम अब बस कल सवेरे के लिए।