अभिलाषा
अभिलाषा
खिली धूप आंगन में उतर आई
कुम्हलाए पत्तों से बारिश की नमी झांक रही
अपलक निहारती आंखें और
कल्पनाओं में तुम्हारा चित्रण.......
अभिलाषा थी स्वप्न से परे
यथार्थ के पन्नों पे
शब्दों में पिरोऊं तुम्हें
कविताओं में ढल गये तुम
मेरी आकांक्षाएं अभिलाषाएं साकार हुई......
तुम्हारी प्रीत में ऐसी रंगी
विरह की वेदना धूमिल हुई
अंतस में अंकुरित होती हर्ष की कलियां
वसंत का संदेशा लाई
मिलन का सौभाग्य पाई......
और अखंड जोत सी तुझमें प्रज्वलित हुई......स्वाती

