तुम्हारा आलिंगन.......
तुम्हारा आलिंगन.......
दीवारें मौन थी
सन्नाटों का बसेरा था
घर भरा था.....
प्रतीक्षाओं से, धुंध जमी मुस्कुराहटों से
बंजर सी सूखी आंखों से
कहीं कोने में धूल भरी
निर्विकार अनंत संवेदनाओं से......
कुछ आहटें हुई
दीवारों पे लगी
निर्जीव तस्वीरों में झांका
और तुम्हारा प्रतिबिंब......
यकीं ना हुआ
स्तब्ध जड़ सी हुई
तुम्हारा आलिंगन......
और घर खाली हुआ
मन के अंतहीन कोलाहल से....स्वाती

