STORYMIRROR

Pratik Rajput

Romance

2  

Pratik Rajput

Romance

वो दिल्ललगी

वो दिल्ललगी

2 mins
448


याद आने लगे बात, सारे उन दिनों की

कैसे गुज़रे वो मंजर, पल में महीनों की

क्या रंगत थी अपनी.? दुनिया भी तो जाने

इश्क़ की उन गली, हम थे कैसे दिवाने?

बीते वक्त़ को जब, मैंने चुपके से देखा

खिंच गयी दिल पे फिर से, तड़पन की रेखा।


वो शामें बाहार में मिलने की कोशिश,

वो आशिक़ी का आलम, साँसों की तपिश,

नौसिखिये दिल की उमड़ती ख़्वाहिश,

उड़ने का मन को होती थी फरमाईश,

वो मिलना बिछड़ना जमाने के डर से,

रातों को निकलना छिपकर, अपने ही घर से।


वो राहे बहार, वो नदी का तराना,

है किस्से पुराने हमारा याराना,

वो आईने में खुद की शक्ल रोज़ ताड़ू,

हँसी भोलेपन की तेरी सूरत पे हारू,

वो सपनों के गगन में तारों की सवारी,

तेरी गलियों से गुजरना बेहिसाब सौ बारी।


अब इल्जामें वफ़ा की जो तुझपे लगी है,

कसम से बड़ा दर्द दिलह,

माने कैसे मेरा दिल, ये लोगो का कहना,

मुश्किल सा हो रहा अब बातों को सहना,

आकर तुम वापस ये खुद से बता दो,

अपने आशिक़ी का, जरा इनको पता दो।

पर अफसोस तू वापस आ भी ना सकती

खेलकर दिल से नजरे, मिला भी ना सकती

हमने छोड़ दिया तुमसे वफ़ा की झूठी उमीदें,

टूटे वादे, बिखरे सपनों का, गढ़ना कसीदे,

खो दिया तूने क़ुर्बत,वो बचा भी ना सकती

ये हसीं चेहरा तू अब दिखा भी ना सकती।


जो लूटा है मुझको वफ़ा के अगन ने,

बन गया खाली झुरमुट, चाहत के गगन में,

अब दिल का लगाना, दिलदारी ना होगा,

झूठ पहियों के बल पे सवारी ना होगा,

फूल खिलते रहेंगे,दिल के बागों में फिर भी,

आना जाना लोगो का हक़दारी ना होगा

आना जाना लोगो का हक़दारी ना होगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance