कहाँ मिलता ये प्यार है?
कहाँ मिलता ये प्यार है?
ये राहें फलक तक तो जा ही रही है
फिर बैठे मुसाफिर,तुझे किसका इंतेजार है
यूँ ही उलझे रहे जो, हसीं सपनो.. के दरक में
फिर कहते फिरोगे कहाँ मिलता ये प्यार है।
आइने में खुद को, एक बार गौर से...देखो
नजर खुद की नहीं ,नजर, किसी और से देखो
यकीं से कहता हूँ ...
यकीं से कहता हूँ ,ओ ढ़ूढ़नेवाले ,ये वही संसार है
फिर कहते फिरोगे कहाँ मिलता ये प्यार है।
पर्दे के पिछे,जो रंगीनियत में खोए हो
दिन के बिखरे उजालो में भी,अभी तक,तुम सोये हो
तो ओझल हो जाएंगी,दिल से मिलती जो तार है
फिर कहते फिरोगे कहाँ मिलता ये प्यार है।
लोग कहते है .. ढूढने से,खुदा भी मिल सकता है
इन आँखे से,हरपल क्या? तू तकता,ही रहता है
जैसे,किसी बिछड़े लम्हो को,हसीं पल का इंतेजार है
फिर कहते फिरोगे कहाँ मिलता ये प्यार है।
