ऐसी होली वीरों की
ऐसी होली वीरों की
हम रंगों की होली में ज़ब्र हो रहे हैं
खेल खून की होली वो अमर हो रहे हैं।
फीका है सब रंग उनकी कुर्बत के आगे
देशभक्ति का रंग जो गहरी वर्दी पे लागे।
होली के हंगामों में खुशियाली की आँधी
हथेली पे जान और कफ़न सर पे बाँधा।
लोग होली में रंगों का तमाशा करेंगे
कही दूर वो सरहद पे दुश्मन से लड़ेंगे।
सीना ताने खड़ा, चले दुश्मन की गोली
हर एक रोज होती रणबाकुरों की होली।
होली का त्यौहार, साथ मौसम भी प्यारा
हमारी नींदों की खतिर वो जगा रात सारी।
हम सुकून से घरों में बैठे खाए मालपुए
वो देश खातिर आज वीर गति को प्राप्त हुए।
मौज-मस्ती का आलम, होली का तराना
उनकी होली दिवाली, तिरंगे का लहराना।
लौटी चहूँ ओर रंगत हजारों खुशिया समेटे
जान देने को तत्पर रहते माँ के वीर बेटे।
चढ़ा रंग फिर भी खास रंगत ना आया
देश के आगे बाकी सब फीका सा पाया।
माँ-पिता, भाई, पत्नी सब एकटक निहारे।
लौट गए वो ये कहकर, माँ सरहद पे पुकारे।
सीने में ज्वाला अब चिंगारी सी भड़के
चुकाना है कर्ज मिट्टी का जाबाज़ी से लड़के।
खबर सरहद की एक चौपाटी से आई
माँ के बेटों ने होली फिर खूँ से मनाई।
खेल गये वीर अब तो लाल रंगों से होली
खूँ से लथपथ शरीरों पे ज़ख्मो की रंगोली।
जब करुणा से माँ की ममता ने बुलाया
देख बेटा तेरा तिरंगे में लिपटा है आया।।
