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Vimla Jain

Action Inspirational

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Vimla Jain

Action Inspirational

सूरज का खत मेरे नाम

सूरज का खत मेरे नाम

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प्रिय सखी,


पिछले दिनों से नहीं हो सकी मुलाकात,

सुबह-सुबह जब मैं आता हूं, मेरे साथ।

तुम जो पहले खिड़कियां, दरवाजे खोलती थी,

मेरी किरणें घर में आने को बोलती थी।


तुमने मेरी प्रतिकृति, घर में सजाई,

उस पर मेरी किरणें जब भी छाईं।

सुनहरी किरणों से भर जाता था घर,

स्वागत में तुम करती थी मधुर स्वर।


गाती थी तुम:

"उठ रे जीवड़ा, हट प्रभात,

जाना है शत्रुंजय, टूक।"

चिड़ियों की चहकती ध्वनि सुनती,

हर कोने में खुशियां बुनती।


फिर अपने काम में लग जाती थी,

पर अब क्यों वह बात नहीं रही?

दरवाजे बंद, घर सूना है क्यों?

क्या हुआ है सखी, क्या तेरा मन मौन?


चालीस वर्षों का यह सिलसिला,

सूर्योदय के संग तेरा मेरा मिलन चला।

इसे न तोड़, ब्रह्म मुहूर्त में उठ,

हर सुबह की सुनहरी छवि में घुल।


खुश रह, आबाद रह, यही है कामना,

तुम्हारा सखा, तुम्हारा सूरज,

हमेशा रहेगा तुम्हारे साथ।




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