अंतर्मन से...
अंतर्मन से...
हम अंतर्मन से
आपका धन्यवाद करते हैं,
श्री रविन्द्रनाथ सावदेकर जी...!!!
जब कई 'मजबूत' दरवाज़े
हमारे 'मुश्किल दौर में
तथाकथित 'स्वार्थी तत्वों' की
'स्वभावतः' दुर्व्यवहार से
'बंद' कर दिए गए,
तब आपने अपने 'निस्वार्थ भाव' से
अपने 'अंतर्मन' का सशक्त दरवाज़ा
हमारे लिए पूर्णतया खोल दिए...
यही फर्क़ है इस 'अत्याधुनिक'
समाज की प्रायः मिलनेवाली
'स्वार्थी' तत्वों की 'दिखावटीपन'
के 'जनसंपर्क' की...
यहाँ जब हमने 'अपने'
तथाकथित 'जानपहचान' के
'आर्थिक रूप में' सबल-समर्थ लोगों से
'आर्थिक सहायता' की
'कातर' कंठों में
'गुहार' लगाई थी,
तो उन लोगों में
कुछेक ने तो
'मजबूर हालात' को
समझते हुए भी
हमारी विनती को ही
बड़ी कठोरता से
'नकार' दिया...
बेशक़ हमें 'दिल से'
चोट पहुँची...
कुछ 'सबल-समर्थ' लोगों की
नकारात्मक जवाब ने
हमारे 'स्वाभिमान' को
बहुत अंदरूनी 'चोट' पहुँचाई...
जिससे हम अब तक
उभर न पाए...।
मगर हमारे मुश्किल दौर में
उन तथाकथित
'जाने-पहचाने' चेहरों की
'विश्वासघात' ने हमें
'आज की' अत्यधिक
सुविधावादी मनोदशा
से रुबरु करवा ही दिया...।
और हाँ, हमारी मुश्किल दौर में
रुपयों की बेहद 'किल्लत' ने
हमें 'आज के दौर में'
रुपयों की बेइंतहा 'अहमियत' को
पूरी तरह समझा दिया...।