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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

4  

Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

वक्त

वक्त

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कवि को कल्पना के पहले,

गृहणियों को थकान के बाद,

सृजक को बीच-बीच में और

मुझे कभी नहीं चाहिए..'चाय'


आज शाम में भी चकित होता सवाल गूँजा

कैसे रह लेती हो बिना चाय की चुस्की ?

कुछ दिनों में समझने लगोगे जब

सुबह की चाय भी मिलनी बन्द हो जाएगी।


चेन स्मोकर सी आदत थी

एक प्याली रख ही रहे होते थे तो

दूसरी की मांग रख देते।

रविवार को केतली चढ़ी ही रहती थी।


पैरवी लगाने वाले, तथाकथित मित्रता

निभानेवाले दिखते थे

ओहदा पद आजीवन नहीं रहता।


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