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Anju Singh

Tragedy Inspirational

4.3  

Anju Singh

Tragedy Inspirational

वक्त यह कैसा आया

वक्त यह कैसा आया

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वक्त यह कैसा आया है

जाने कैसा सितम ढाया है


जाने कैसी हवा चली है

सबको ले बहा चली है


ख़ामोशी है दर्द वाली

शोर है चीत्कार वाली


धीरज खो रहा है मानव

मिटा रहा है सब‌ कुछ दानव


शत्रु यह अदृश्य है

कैसा कर रहा कृत्य है


बढ़ते जा रहे हैं फासले

चारों ओर दुःख के काफिले


हर रोज मौत बढ़ रही है

मानवता चीत्कार रही है


चहूं ओर खौफनाक मंजर सा है

गिरती लाशों का ढेर सा है


सब कुछ थम गया सा है

देश के प्रगति में संध्या बेला सा है


अपनी कुछ भूलो से 

इंसान हो रहा है बेदम


 जहाॅं भी देखो वहां इंसान का

 पल-पल निकल रहा दम


अपने संस्कारों को भूल हमने

 पाश्चात्य सभ्यता को अपनाया


 अपने हर रीति-रिवाजों को

 हमने पग पग है बिसराया


है सबकी जान अटकी पड़ी

वायरस फैल रहा हर घड़ी


ऐसा आया है यह संकट

धरा है इसने रूप विकट

 

अकेलेपन से लड़ रहा इंसान

कोई ना आता निकट


घूम रही है चारों ओर 

बीमारी बदलकर कई भेष


तुम बचकर रहोगे अकेले

तभी बच पाएगा देश


उठाकर तुम गलत कदम

निकालोगे कितनों का दम


अपनी इक भूल से

मिट जायेंगे हम धूल में


थोड़ी हिम्मत रखो तुम

वक्त ये गुजर जाएगा


कब तक शोर मचायेगा यह

एक दिन तो थम जाएगा


माना गमों का शोर है

शायद हमारे इम्तिहानों का दौर है


हम ढूँढेंगे फासलों में भी नजदीकियां

लौट आयेगी इक दिन खुशियां



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