वक्त की आँधी
वक्त की आँधी
वक्त की आँधी उड़ा कर
ले गई छप्पर
जिंदगी फुटपाथ पर।
पाँव में छाले बिलगते
ताप सर को है जलाता
पूछता है वो स्वयं से
वेदना के गीत गाता
दूर कितना रह गया घर
सूखे सभी अधर
जिंदगी फुटपाथ पर।
बिखरी पड़ी बैसाखियाँ
कौन किसको दे सहारा
भूख का किस्सा है लंबा
बोल कैसे हो गुजारा
गाँव शहर के बीच फँसा
ये कैसा मंजर
जिंदगी फुटपाथ पर।
एक मुट्ठी रोशनी ले
चल सकेगें हम कहाँ तक
खुल गई सपनों की गठरी
ढो सकें इसको कहाँ तक
तन हारा है, मन जर्जर
साँस हुई भँवर
जिंदगी फुटपाथ पर।