विश्वामित्र का तप
विश्वामित्र का तप
घनघोर भयांनक तम में कुटिल कनन में
है कौन बैठा जलाये दीप कठिन तपोवन मे
सांय सांय वयनाद छायी खुले जागति अंबर मे
खोलकर बांहे समेटे वन तम मुग्ध गगन मे
चिंता चिता बनकर तप पर है निछावर
जटिल तप में डूबा मानव शाद विछाकर
खोया वह एक नव नवल दुनिया रचने में
दुनिया को नवल दर्पण देना हमारी दायित्व है
जग कि सुखमय लालिमा से हमारा अस्तित्व है
दिन-रात शीत -समर धूप-छांव सब सह कर
काट बन्ध मिटा संशय को बैठा तप कर
और जय जय शिव शिवाय जपने मे
जीवन की सुगमयता का ध्यान अमर करता है
हे संसार तुम्हारी अर्चना में मन वलय करता है।