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बेज़ुबानशायर 143

Tragedy Fantasy

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बेज़ुबानशायर 143

Tragedy Fantasy

'' आवारा ''

'' आवारा ''

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उजाले में तो फरेबी चेहरे नजर आते हैं, मद्धम सी लौ में घाव गहरे नजर आते हैं।

सब को लगता था मेरे हम कदम हैं वो, अकेले पन में ही ये धोखे नजर आते हैं।

हर कोई पूछता है मेरी खुशियों का राज़, बस अंधेरे में ही आंसू मेरे नजर आते हैं।

बहुत रौशनी की है शहर में आज की रात, कोनों में दुबके क्यों अंधेरे नजर आते हैं।

शिकायत करने कि आदत नहीं आवारा, शिकवे सबके फिर भी घेरे नजर आते हैं।



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