छवि प्रिय की
छवि प्रिय की
प्रेम डोर का एक छोर संभाले
साथ खड़ा है जो
आंखों में अपनी प्यार समेटे
सदा पाक रहा है जो
सूरत भोली सी है जिसकी
नटखट जिसके इशारे हैं
बोली में मिठास है और
अंदाज जिसके न्यारे हैं
उस दीवाने को ये बता दो ज़रा
खयाल तुम्हारे साथ हमारे हैं
दिखाते नहीं हैं हर बार लेकिन
दीवाने तो हम भी तुम्हारे हैं।