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BHAWINEE TODI

Abstract

4.7  

BHAWINEE TODI

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दो जानें ख़ास

दो जानें ख़ास

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दिल को अज़ीज़ दो जानें थीं खास,

हर पल हर दम जो रहतीं थीं दिल के पास,

भोली सी सूरत और नज़रें चालबाज़,

मेरे मन को लुभाता उनका हर एक अंदाज़।


कभी चहकतीं कभी फड़फड़ातीं,

चेहरे पर मुस्कान मेरे हर बार ले आतीं,

कभी मुझे काट लेती और गंदगी भी खूब फैलातीं,

तब भी मेरा लाड सबसे ज्यादा पातीं।


उनकी तकलीफ़ देख आंसू मेरे भी आ जाते थे, 

और स्वीटीपाए की लोरी सुनके हम तीनों सो जाते थे,

और किसी की ज़रुरत भी कैसे पड़े?

उन दोनों के साथ खेलते खेलते घंटों जो बीत जाते थे।


पर हमारी खुशी को ना जाने किसकी नज़र लग गई,

देखते ही देखते क्यूटीपाए गुज़र गई।


उस दिन जो कमी खली थी ना, वो पहले कभी न हुआ था,

जिस कमरे में हम तीनों सोते थे, वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ था,

आज ना स्वीटीपाए की लोरी सुनाई दी, ना ही मेरे आंसू रूके,

नींद दोनों की आंखों में ना थी, कितना कुछ थे हम खो चुके।


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