वीरान सड़क
वीरान सड़क
आज बहुत दिन बाद मैं गुजरा,
कॉलेज की उन पुरानी वीरान सड़कों पर,
जहां कभी गूँजती थी दोस्तों की हँसी,
और भूल जाया करते थे हम सब गम,
पर उस समय रोशनी बल्ब की ही नहीं,
चेहरों पर भी खिलती थी,
दोस्तों पर मिलने की बात कुछ अलग सी होती थी,
पर अब वीरान है रास्ता,
शायद ढूँढता वो हमें ही हो,
बस यूं ही पैदल निकल पड़ने का,
अब नहीं है वक़्त किसी के पास,
ना जाने जहां के किन कोनों में बिखर गए,
वो दोस्तों का हमारा छोटा सा जहां,
कॉलेज से निकले सूखे पत्ते से,
पेड़ से अलग इधर उधर है हम जहाँ,
आओ दोस्तों, आज फिर मिलते हैं,
पुरानी सड़कों पर फिर से गुजरते हैं,
इस कोलाहल वाले वक्त से कुछ पल ले उधार,
आओ फिर इस वीरान सड़क को गुलजार करते हैं।