वहम छोड़ो।
वहम छोड़ो।
लड़का लड़की को,
प्यार हुआ,
झट मंगनी और फट शादी की,
बात बनी,
आ गई पति के साथ रहने,
उसके शहर में,
दोनों की महौबत,
परबान चढ़ी थी,
इसलिए खुशी की,
अपार सीमाएं,
लाघं चुके थे,
प्यार के हर रोज,
नये से नये पन्ने जूड़ रहे थे।
एक दिन,
पति था आफिस,
एक वास्तु विशेषज्ञ आया,
घर को ग़लत,
दिशा में बना बताकर,
वहम का डंका बजाकर,
चल गया,
सबको आफत में डालकर।
शाम को,
पति घर आया,
पत्नी ने,
साफ कह सुनाया,
ये घर ठीक नहीं है,
इसलिए तुम्हारी तरक्की भी,
अड़ी है,
बदलो इसको,
वरना मैं चली मायके,
नहीं रहूंगी,
इस घर में।
पति बेचारा,
दुविधा में,
थोड़ी सी तनख्वाह,
दोस्त ने दे दिया,
कम किराए पे,
अगर ढूंढेगा नया,
तो पैसा देना होगा अधिक,
जो उसकी क्षमता से बाहर,
बहुत समझाया,
लेकिन पत्नी पर,
कोई असर न हुआ,
उसने सब कपड़े वपड़े,
डाले सूटकेस में,
और बोली,
बुलाओ टैक्सी,
मैं तो चली।
मन में,
पति ने खूब,
वास्तु वाले को कोसा,
तू कहां से,
आ गया आर्किटेक्चर,
पत्नी के हाथ जोड़े,
लेकिन वो न माने।
आखिर एक,
मित्र वास्तुकार को पकड़ा,
और अपनी बात बताई,
उस बेचारे ने,
पति की जान छूड़ाई।
उसने बोला,
भाभी जी,
आप निश्चिंत रहें,
कुछ अपशगुन नहीं होगा,
मैं यहां एक,
चंदन का टुकड़ा रख देता,
तो अपशगुन निश्फल होता।
ये सुन पत्नी मानी,
अपना सूटकेस खोला,
और मुस्कराई,
पति की,
जान में जान आई।