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Minal Aggarwal

Fantasy

4  

Minal Aggarwal

Fantasy

राजकुमार और परी

राजकुमार और परी

2 mins
372


वह एक सुंदर राजकुमार था 

जैसा मैं चाहती थी 

मेरे सपनों के राजकुमार जैसा ही 

सुंदर 

पृथ्वीलोक के एक विशाल 

साम्राज्य के राजा का बेटा था वह 


मैं परीलोक की 

परियों की एक सुंदर और 

सुकोमल राजकुमारी 

मेरा और उसका 

कोई मेल नहीं था 

यह जमीन के लोग 

होते हैं कठोर और 

हम आसमान में रहने वाले 

कोमल लेकिन 

किस्मत का लिखा कौन 

टाल सकता है 


एक दिन अपनी सखियों के 

साथ 

बस यूं ही अपने महल से 

बाहर 

थोड़ा सा टहलने निकली 

मैं 

बादल के परों पर उड़ते उड़ते 

सतरंगी इंद्रधनुष का झूला 

झूलते झूलते 

न जाने कैसे कहां से 

फिसली और 

अपनी सखियों से बिछड़ते 

हुए 

पृथ्वीलोक पर पहुंच गई मैं 


जंगल में भटक रही थी 

मारी मारी 

दर दर घूम रही थी 

भूखी प्यासी 

इस अजनबी देश में 

बनकर एक जैसे कोई हो दासी

जंगल में आखेट खेलने आये 

राजकुमार की नजर 

मुझ पर पड़ी 

आंखें चार हुई 


पहली नजर में 

मैं तो जैसे दिल हार 

गई 

प्यार भरी बातें हुई 

राजकुमार ने मुझसे 

प्यार किया 

मुझसे विवाह किया 

मुझे अपने दिल में जगह दी 

अपने महल में पनाह दी 


शुरू शुरू में तो 

हर नये रिश्ते की तरह 

यह रिश्ता भी खूब चला

राजमहल में परिवार का और 

राज्य में प्रजा का खूब 

आदर, स्नेह व प्यार मिला 

धीरे धीरे इश्क की खुमारी से बाहर 

निकलकर 


मेरी आंखें आहिस्ता आहिस्ता खुलने लगी 

मुझे घर की याद सताने लगी और 

परदेस की ताजी हवा भी 

जहरीली लगने लगी 

किसी के साथ रहने से ही 

उसके राजों का पर्दाफाश 

होता है 


पहली मुलाकात में तो 

जब आंखों पर पड़ा हो जादुई प्यार का पर्दा तो 

एक दानव भी खुदा लगता है 

यह मेरे सपनों का राजकुमार 

एक राजकुमार तो था पर

साथ में एक बहुत बड़ा 

जादूगर भी

इसकी यह सच्चाई 

अंततः उजागर हो ही गई 


जब एक दिन इसके जादू से 

मैं परी से एक बाज की शक्ल में 

तब्दील हो गई 

कितना रोई मैं 

कितनी मिन्नतें करी

कितना गिड़गिड़ाई

तब जाकर कहीं इसको मेरे पर 

दया आई 

वापिस मैं अपने परी के भेष में 


बड़ी मुश्किल से लौटकर आ पाई

राजकुमार का

यह वीभत्स, रहस्यमयी 

और जादुई रूप देखकर 

मेरे तन बदन का रोम रोम कांप रहा था 

मेरा दिल रो रहा था 

मेरी आत्मा तड़प रही थी 

इससे पीछा छुड़ाने की कोई 

तरकीब मैं सोच रही थी 


प्यार का जाल बिछाकर 

मैंने इसे उसमें लपेटा 

समय लगा पर इससे 

सारा जादू सीखा 

वही जादू एक दिन इस पर 

आजमाया 

पलक झपकते ही 

सब गायब हो गया 

एकाएक सब लुप्त हो गया 


न कोई साम्राज्य 

न महल

न राजकुमार 

न कोई प्रजा

सब जादू था

सब मायाजाल था

जादू के असर से मैं अब 

छूट चुकी थी 

जादू के जोर से 

मैं पृथ्वीलोक से अपने परीलोक की

तरफ लौटने का रास्ता 


एक क्षण भर के प्यार के सपने से 

मुक्त होकर 

खोज चुकी थी।


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