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RAJESH KUMAR

Abstract Drama Fantasy

4  

RAJESH KUMAR

Abstract Drama Fantasy

सांसारिकता से सत्य तक

सांसारिकता से सत्य तक

2 mins
300


कोई भी स्थाई नहीं दुनिया में 

आए हैं, तो जाना ही है

ना, जाने का नहीं बहाना

अमृत पीकर आया नहीं कोई 

मौत पर कोई लगाम नहीं।


उम्र कम या अधिक है

नवजात, वृद्ध, या स्वस्थ

मन में बस एक यही ख्याल है

कब ईश्वर को जाएं प्यारे?

ख्याल है, श्मशान को देखकर

चिताओं को जलता देख कर,


सब में भावनाओं की लहर

उमड़ घुमड़ चल रही है

सब सहानुभूति जता रहे हैं

अंतिम क्रियाओं के बारे में 

बतिया रहे है,


शरीर अस्पताल से घर आएगा

मेहमानों, रिश्तेदारों को बताना है

किन से छुपाना है, नहीं भी!


इंश्योरेंस के पेपर कहां है ?

प्रोपर्टी के पेपर कहां है?

डेथ सर्टिफ़िकेट लेना है?

यह सब के दिमाग में है,,


पड़ोसी खिड़कियों से मुआयना

कर, धीरे से बंद कर रहे हैं,

अंतिम यात्रा, की शुरुआत

खत्म होने को जो है।


लेकिन सांसारिकता चरम पर है

सब अपने नज़रिए से घटना

दुर्घटना को देख रहे हैं!

अपने-अपने कयास लगा रहे हैं।


बाजार से शव यात्रा सामान का 

आयोजन किया जा रहा है

लकड़ी, यात्रा ट्रक सब सटीक 

समय से किया जा रहा है।

समय पर सब चीजें निश्चित है।

वापसी के टिकट, भोज, टेंट, पानी

ये खेल गम को हल्का कर रहे हैं।


रो रहा है, कोई दिल से 

कोई दिखावे के लिए

कोई दिखाने के लिए

कोई सहानुभूति के लिए।


बुजुर्ग जो  नसीहतें दे रहे हैं

कुछ युवा तिरछी निगाहों 

से बुजर्गों को भाव विभोर 

देख रहे हैं, मानो इनके बाद 

इनका नंबर हो!


शरीर के लिए हर चीज 

नई लाई जा रही है,

नए कपड़े, श्रृंगार का सामान 

नई पोशाक(कफ़न) हर चीज 

जैसे जश्न का माहौल हो

क्यों ना हो! इस संसार से

विदाई जो है, ईश्वर के पास 

सज धज के जो है जाना।


कुछ अपनी घड़ियां देख रहे हैं 

उसके बाद कहीं और है जाना

परिवार के कार्य, जिम्मेदारियां।


श्मशान पूर्ण व्यवस्थित है 

वह भी एक बाजार है?

वहां पर चक्र क्रम  है 

कोई क्रिया करके जा रहा है

कोई क्रिया करने आ रहा है।


वहां पहुंचते ही अलग नजारा 

सबको जल्दी से निपटारा हो

दो दिनों से शौक में है, और नहीं!

क्योंकि पंडित जी व्यस्त है 

दूसरी शरीर प्रतीक्षा में है

वहां से भाव नदारद हो रहे हैं

सब कुछ सांसारिक हो रहा है।


सीख की बातें दीवार पर लिखी

ये दुनिया नश्वर है, सब ज्ञान

की बाते मुख पर है, अंदर

का सच कुछ और हैं, गर्मी है

गाड़ी में तेल, सब्जी भी लेनी है

आता ख्याल हैं, ना भी आता हो

तो मोबाइल अपने हाथ है।


फैशन, गाड़ी, बंगले, डिग्री, रिश्ते

कुछ नहीं साथ कुछ जाना ?

लेकिन अगर ऐसा सच हो जाए 

तो फिर बाजार कहां है ?

दुनिया कैसे चलेगी, पता नहीं?


कैसे होगा या हो भी सकता है?

झूठी शानो शौकत की जगह 

अंदर की शान जागृत रहे 

काम कठिन, आसान हो

सब जन एक से होंगे तो! 

मौत भी बड़ा जश्न होगा

जन्नत यहीं भी होगी...

जन्नत वहाँ भी होगी...



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