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वापसी

वापसी

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तुम पर लिखी नज्म फाड़ दी मैंने

वो बयां नहीं करती थी तुम्हें


कागज पर बस मेरे ही जज्बात बिखरे थे

तुम उनमें कहाँ समा रही थी


बड़ी हो रही हो तुम धीरे-धीरे

पूरे 3 वर्ष की होने को होती अगर,


आज यहाँ होती तुम ,

याद हैं मुझे तुम कितनी जल्दी में रहती थी


उंगली छुड़ा कर सब कुछ छोड़ कर पीछे

आगे बढ़ जाती थी, दौड़ती हुई, खुश होती थी


बीच-बीच में मुझको मुड़ के देखा करती थी

जैसे दिखाती हो मुझे


कैसे तुमने पीछे छोड़ दिया

जब दूरी बढ़ती तो घबरा कर वापस आ जाती थी


वैसे ही गए वर्ष को चली गयी थी तुम

मैं इंतजार में हूँ कि तुम मुड़ कर देखो


दूरी बहुत है, अब लौट के वापस आना है।।


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