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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Tragedy Fantasy

3.5  

Vikram Singh Negi 'Kamal'

Tragedy Fantasy

उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड

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प्रकृति पर्वत हिमाच्छादित,

हिमालय शीष पर चमकता मार्तण्ड ।


दृश्य स्वर्णिम उत्तराखण्ड।।


कल कल सरिता सदानीरा

सुगन्धित समीर अविरल प्रवाह ।

मनोरम दृश्य मनमोहक आभा

आकृष्ट पुष्पित पल्लवित राह ।।

भारत का हृदय प्रकोष्ठ प्रखण्ड।


नयनाभिराम उत्तराखण्ड।।


शंखध्वनि, घंटनाद ढोल नगाड़े

उदघोषित संबोधित देव आवाहन ।

रमणीक मन्दिर मालाएं अतुल्य देवस्थान

कीर्तन,भजन, आरती और पूजन ।।

सनातन संस्कृति में रमा भूभाग अखण्ड।


आलौकिक आध्यात्मिक उत्तराखण्ड।।


वेश-भूषा रीति परिधान परम्परा

गढ़वाल,कुमांऊँ,और जौनसारी ।

संस्कृति विविध भाषा समाहित

जन समुदाय मैदानी या पहाड़ी ।।

राष्ट्र की काया में फैला मेरूदण्ड ।


अद्भुत विलक्षण उत्तराखण्ड।।


सरस सरल सहज सभ्य सा

मानव मूल्य मंचक माधव।

हस्त हस्त कुशल कौशल निपुण

निश्छल निष्कपट साधव।।

भृकुटि तान लूँ आवेग भरता प्रचण्ड।


मर्यादित उत्साहित उत्तराखण्ड।।


वीर हूँ धीर हूँ रक्तवर्ण क्षीर हूँ

प्रेम सौहार्द का हरित घन हूँ ।

मानवता को पोषित करता

मातृ-पितृ गुरू सदृश मन हूँ ।।

धैर्य साहस शौर्य अभिलक्षित दण्ड ।


वीर सुसज्जित उत्तराखण्ड।।


यौवन जल किंचित नही प्राप्त

भाग्य दुर्भाग्य एकाकी वीरान ।

रोजगार अर्थ में अनर्थ को विवश

जन्मभूमि छोड़ परदेश प्रस्थान ।।

स्वपोषण हेतु पलायन पर उद्दण्ड ।


विचलित उद्वेलित उत्तराखण्ड ।।


आपदा त्रस्त स्वजन परस्त

अचर अचल विकास अवरोध ।

निज गौरव समेटे हुए क्षुब्ध

अश्रुपूरित मन में है क्रोध ।।

राज-शून्यता से व्यथित खण्ड खण्ड ।


पीड़ित तिरस्कृत उत्तराखण्ड ।।


आशा अभिलाषा सदैव इच्छित

आकुल व्याकुल वेदन रूदन ।

निराश हताश अपलक दृष्टि

निज वैभव अस्तित्व को क्रन्दन ।।

अभाव, अपकर्ष, विषाद से होता विखण्ड ।


कमल कलम उल्लेखित उत्तराखण्ड ।।


 (उपरोक्त कविता कवि के अपने निजी विचार एवं परिकल्पना है, इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति विशेष, संस्था या समुदाय को आहत करना नही है ।आशा करता हूँ कि इसे किसी भी प्रकार से अन्यथा न लेंगे और उत्तराखंड की संस्कृति,वैभव और उसके विकास के लिए हम सभी अपने स्तर से प्रयास करेंगे ।)

                 


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