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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Abstract

4.5  

Vikram Singh Negi 'Kamal'

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बचपन

बचपन

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आओ फिर से जी लें बचपन, खेलें हम राज

दुल्हन बनी है गुड़िया, गुडडा बना सरताज


माँ के आँचल में छुपकर, ऐसे खो जाते हम

नही परेशानी कोई जहाँ पे, न होता गम


पापा के कंधे का झूला, माँ करती लाड दुलार

मुँह फुलाते गुस्सा करते, पल में करते प्यार


वो आँगन में दौड़ लगाना, मुश्किल एक ठिकाना

सो जाते कहीं भी लेकिन, उठकर बिस्तर पाना


वो मिट्टी के खेल खिलौने, हमको थे भाते

टायर को डंडे बजाकर, बहुत दूर ले जाते


ढेरी में चपटे पत्थर से, पिट्ठू एक बनाया

मार निशाना गेंद उस पर, बड़ा मज़ा ही आया


साथी से बच बचकर, वही ढेर लगाना है

कब कोई मारे गेंद, बच बच के जाना है


गिट्टू खेलें बैठे बैठे, सबकी बारी आती

खेल बड़ा निराला था, लड़कियाँ जीत जीती


पौसम्पा भई पौसम्पा बोल, लम्बी चेन बनाई

एक के पीछे एक जोड़ा, खूब ताकत अजमाई


छोटा भाई गिनती करता, हम यूँ छुप जाते

वो ढूँढे सबसे बचकर, हम धप्पा कर जाते


भाग-भाग इधर उधर, खेले पकड़म पकड़ाई

घेरा बना हों बैठे,खेलें कोकला छिपाई


धागा लम्बा कसकर के, पेंच खूब लड़ाएँ

कटी पतंग जिसकी भी, लेकर भाग जाएँ


खाली खेत मैदानों में, खेलें बैट बोल

बैटिंग लेकर के अपनी, फिल्डिंग में होते गोल


बस्ता भरकर,दौड़ लगाकर.. स्कूल हम जाते

साफ़ करते कमरा सारा, खुद ही टाट बिछाते


करें प्रार्थना मिलजुल कर, गुरू पढ़ाने आते

पूरी कक्षा से घुलमिल, सबको दोस्त बनाते


दस पैसे की दो टॉफी, हमने खूब खाई

काले गुलाबी चूरन और, खाते इमली खटाई


पचास पैसे की आइसक्रीम, खूब खाते बेर

कंचा गोली जमा कर के,बड़े लगाते ढेर


अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बोल, सौ में लगा तागा

अगड़म तिगड़म खेल रचाते, वो समय अब भागा


बचपन की वो याद सुहानी, समय गया वो बीत

वो ज़माना छूट गया अब, बनकर आज अतीत


आओ फिर से जी लें बचपन, खेलेम हम राज

दुल्हन बनी है गुड़िया, गुडडा बना सरताज।


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