उसमे रात अकेली
उसमे रात अकेली
तन्हा तन्हा देखे आँखों की पुतली,
चलते चलते पैरो को राहे पड़े अधूरी,
आसमान है नूरी,
उसमे रात अकेली
वाह दुनिया रही है जज्बातो से रही खेली
ज़िन्दगी बुराई कर , कर के
खुदकी और दूसरों की कर रहे है मैली,
तन्हा तन्हा देखे आँखों की पुतली,
चलते चलते पैरो को राहे पड़े अधूरी,
क्या है घुरी घुरी,
उसमे रात अकेली
ईतनी मुश्किलात को रही झेली
बेमानी के सामने हो रही भोली
तन्हा तन्हा देखे आँखों की पुतली,
चलते चलते पैरो को राहे पड़े अधूरी,
वादिया है खुली,
उसमे रात अकेली
बस नज़रो पत्थर और हवाएं ठंडी
जिस्म ही रहा सूखा पर आँखे है बहती
तन्हा तन्हा देखे आँखों की पुतली,
चलते चलते पैरो को राहे पड़े अधूरी,
एहसास गा रहे लोरी,
उसमे रात अकेली
उलझने हो रही है घड़ी घड़ी
अब ही ना जाये बिगड़ कर बड़ी
बुझा दे पहेली, ओ मेरे इलाही
तन्हा तन्हा देखे आँखों की पुतली,
चलते चलते पैरो को राहे पड़े अधूरी,
ना होगी वो बुरी रखी जो रब पर सबुरी,
ना होगी रात अकेली।
