खुद को
खुद को
क्यों दूसरों पर आशा रखते हो ,
जो नहीं होगी पूरी ऐसी उम्मीद क्यों रखते हो ,
भुलाया है जो तूने खुद को
लोगों ने छीना तुझको
हो तुम इतने असली
बना दिया उन्होंने नकली तुमको
लबों से क्या तारीफ की
मतलबी बना दिया तुमको
बैठो मत कोसते खुद को
बनाया जिसने तुमको
रक्खो भरोसा दिल में
बनाओ तुम खुद को...
बनाओ तुम खुद को...
सब मजाक में ले रहे तुमको
जज़्बात अभी भी बाकी हो
जुनून को अपने बढ़ाओ
बाटेंगे बुराई गिराने तुमको
लौट आना है इतना ना तुम टूटो
कर दिया अब तुमने जुदा उनको
जुड़ा है जिसने तुमको
अब तुम उसके साथ चमको
निखारो अब खुद को...
निखारो अब खुद को...
