जख्म
जख्म
मेरे आँसुओ का कोई मोल नहीं रहा है अब
सुख गयी पलके रो- रोकर गम से गम तक
आदत सी हो गयी है. बिना सिसकियों के
रोना हाँ अब कहीं कोई बोल नहीं रहा है।
खामोश होकर गलती की है मैंने कुछ ऐसी
खुद की आवाज सुनने को, तरसता ऐ दिल
तस्वीरों में खुद को कुछ और पाया है. मैंने
कितनी दफा बातें की है. न जाने कैसी कैसी
डर लगता हैं बोलने से कहीं कुछ खो न जाये।
सुनने से घबराता ऐ दिल. कहीं रो न जाये ।
क्या बयां करूँ. दर्द ऐ दिल को. भूल गया हूँ
बिना दर्द के जीना. जैसे कोई दर्द रह न जाये।
जख्म बड़े अनोखे मिले मुझे, बयां दर्द नहीं होता।
कुरेद- कुरेद कर महसूस किया है. बस नहीं होता।
जख्मों की कहानी सुनाते - सुनाते ढक लेता हूँ ।
ऐसे सभी को लगता है इसे कोई दर्द ही नहीं होता।