वक़्त और यादें
वक़्त और यादें
सोचता हूँ कि
काश वो बचपन के दिन फिर लौट आते
जहाँ सारे दोस्त एक साथ होते,
कितनी मस्तियाँ होती और होते कई शरारतें
और साथ ही वो बीते दिन फिर से जिन्दा हो जाते।
फिर सोचता हूँ
जो पल कब के गुजर गये हो
वो पल दुवारा कंहा से, कैसे लायेंगे,
मुमकिन तो नहीं है
उन पलों का लौटना
हाँ, उन सुनहरे पलों के सुनहरी यादें जरूर आएंगे।
अब तो सब कहीं न कहीं बस गए होंगे
यहाँ से दूर नगरें और गाँवों की अपनी आशियाने में,
अब भला उनके पास वो वक्त ही कहाँ
उन बचपन की पुरानी पन्नों को दुबारा पलटाने में।
